लेखक : राम भरोस मीणा
प्रकृति प्रेमी व स्वतंत्र लेखक हैं।
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सरकारी भवन निर्माण में कोताही बरतने व जिम्मेदार जिम्मेदारी नहीं समझते, इसलिए दो से पांच वर्ष में जर्जर हो जाते सरकारी भवन।
ठेकेदार तथा ग्रामपंचायत की बजाए विद्यालय समिति कों बनाएं भवन निर्माण में जिम्मेदार
पिछले दो चार दिनों से राजस्थान में तोबा तोबा हों रहीं हैं, बादलों के आगमन से रेड अलर्ट एलो अलर्ट के संकेत सोशल मीडिया पर दिये जा रहें हैं, सरकारी भवन गीर ना जाएं, अनहोनी से बचाने के लिए विद्यालयों को बार बार बंद रखने की हिदायत दी जा रही है, जों है भी सही, पहले ही झालावाड़ जिले के पिपलोदा गांव में कक्षा कक्ष की छत ढहने से सात बच्चों की मौत और इक्कीस घायल हो चुके, हादसा हो चुका, और भी हों सकता है, कौन गारंटी ले, उससे भला स्कूल बंद करा दिये जाएं, सब ठीक ठाक रहेगा, ना जांच करनी पड़ेगी ना, ठेकेदार को पुछा जाएगा, ना मास्टर जी से रिपोर्ट मांगी जाएगी। लेकिन आखिर कब तक ? स्कूल बन्द होने से मास्टर जी ख़ुश मिजाज नजर आ रहे हैं, बच्चे अठखेलियां कर रहे हैं, अभिभावक पढ़ाई-लिखाई को लेकर चिंतित होते दिख रहे हैं, क्योंकि सत्र के दस बारह दिन वर्षा के चलते बंद रह चुके और आगे पता नहीं कब तलक रहेंगे, इन सब से यह माना जा रहा है कि जिम्मेदार स्कूल बन्द करा अपना पल्लू झाड़ रहे हैं।
सत्य है कोई समस्या के कारणों को जानना नहीं चाहते, वे से पता सभी को है, सरकार और सरकारी तंत्र। समस्या क्यों पैदा हुईं, कहां पैदा हुईं, जानने की कौशिश जनता भी कर रही है, ठेकेदार बातों ही बातों में बता भी रहें हैं कार्यकारी सिस्टम भी जानते हैं वो केवल सिस्टम या तंत्र हकीकत बताने में फेल है, और आखिरी क्यों? क्योंकि शायद ठेकेदारों और पंचायत के कामों में उनका हस्तक्षेप रहा होगा। और यह केवल स्कूलों के साथ कनेक्ट नहीं चाहे आप हॉस्पिटलों , होस्टलों, सामुदायिक भवनों, प्लेग्राउंड, पुल निर्माण, रोड़ निर्माण जैसे कोई कार्य हो, ग्राम पंचायत स्तरीय, ब्लाक स्तरीय, जिला स्तरीय, राज्य स्तरीय और चाहे जहां का जों भी कार्य हो आखिर सिस्टम के साथ कनेक्टिविटी जरुर है, इसलिए जहां शिकायत वहीं जांच और वह भी लिपापोती, बाकी टाए टाए फिस।
विद्यालयों को बार-बार बन्द करने की बजाए यदि कार्य शैली में बदलाव की सोच बनाईं जाए तो बेहतर होगी, स्थाई समाधान होगा, पड़ाई लिखाई बाध्य नहीं होगी। शैक्षिक सत्र पुरा चल सकेंगा, इसके लिए हमें बिचोलिया पद्धति को हटाना पड़ेगा, यही बिचोलिया आज निर्माण की क्वालिटी में बाधक और साधक बनकर समस्या की जड़ बना हुआ है जैसा जनता ठेकेदार तथा विद्यालय समितियों के आत्मिय अंदाज से निकल कर बहार आ रहा है, जहां जिस विभाग में कार्य हुआ वो स्वमं जिम्मेदार नहीं बनना समस्या का मुख्य कारण और कार्यकारी एजेंसियों की मनमानी अफसर साही, लालफीताशाही, घुसखोर, एक से दुसरे को पर्सेंटेज पर काम देना, मोनिटरिंग में लिपापोती आज हमारे विकास और निर्माण की धज्जियां उड़ती दिखाई दे रही है और इन सब को साबित करने में विद्यालयों की छुट्टियां नेक काम कर रही है।
हमें जनता में जो विकास को लेकर अविश्वास पैदा हो रहा है उसे विश्वास में तब्दील करने के लिए एक चुनौती का सामना करना पड़ेगा वह सामना प्रकृति से नहीं सभी बिचौलियों से सुलझाना पड़ेगा, प्राकृतिक परिस्थितियां कब बदल जाए यह मौसम अथवा समय विशेष पर निर्भर करता है, वर्तमान में प्राकृतिक ही नहीं मानवीय दखलन से भी आपदाओं का जन्म होता नजर आ रहा है और वह राजस्थान में बड़ते शहरीकरण से टोंक निवाई, कोटा बूंदी बारां के शहरी क्षेत्रों में वर्षा से बनी आपदाओं से समझा और जाना जा सकता है, इस लिए निर्माण की नितियों में बदलाव करना पड़ेगा, एक ठोस क़दम, सख्त कानून के साथ लागू कर उन सभी के हाथों कमान सौंपी जाए जो सम्बन्धित विभाग के जिम्मेदार बन बैठे हैं, निर्माण की गारंटी पिरियड में संसोधन हों, शर्तें विशेष हों जिससे एक खोफ बना रहे, जिम्मेदार जिम्मेदारी समझनें लगें, ठेकेदार व पंचायतों का हस्तक्षेप खत्म हो तब ही विकास विकास कहलाएगा अन्यथा विनाश में तब्दील होने में समय नहीं लगता और अवकाश स्थाई समाधान नहीं हो सकता। ऐ लेखक के अपने निजि विचार है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)