भारत रत्न राजीव गांधी की जयंती 20 अगस्त पर विशेष
लेखक : वेदव्यास
लेखक साहित्य मनीषी व वरिष्ठ पत्रकार हैं
www.daylife.page
राजीव गांधी को याद करते हुए मुझे लगता है कि 21वीं शताब्दी के भारत की परिकल्पना को जगाने वाले ऐसे व्यक्ति थे जो संयोग से अपनी मां प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की शहादत 31 अक्टूबर, 1984 के बाद रातोंरात भारत के प्रधानमंत्री पद पर बैठाए गए थे। इस तरह राजीव गांधी का प्रधानमंत्री पद पर आगमन बेहद दुखद स्थितियों में और सिख विरोधी दंगों के रूप में शुरू हुआ था। इसके कुछ समय बाद ही भारत के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को भारी बहुमत से विजय भी मिली थी। राजीव गांधी को 1944 से 1991 का जीवनकाल (47 वर्ष) हमें बताता है कि वे एक दूरदर्शिता और सूझबूझ वाले साफ और सहज मन के इंसान थे और गंदी राजनीति के किसी भी गंदे खेल से परिचित नहीं थे। शायद इसी कारण उन्हें ‘मिस्टर क्लीन‘ के रूप में भी जाना जाता है।
हमें याद है कि प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी ने ही सबसे पहले देश की जनता को भारतीय राज्य व्यवस्था का यह रहस्य बताया था कि विकास के नाम पर दिए जाने वाले 1 रुपए में से 15 पैसे ही गांव तक सही सलामत पहुंचते हैं। हमारी इस भ्रष्ट व्यवस्था पर उनकी इस टिप्पणी पर आज भी चर्चा है तथा देर-सवेर हमें ‘सूचना का अधिकार कानून‘ इसी रहस्योद्घाटन के बाद ही मिला है। राजीव गांधी ने ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 100 वर्ष पूरे होने पर 1985 में मुंबई के महाधिवेशन में कहा था कि -अब समय आ गया है जब कांग्रेस से भ्रष्ट और अपराधी तत्वों को बाहर निकाल फेंका जाए। 1947 से निरंतर केंद्रीय और राज्यों की सत्ता पर काबिज कांग्रेस के सामने सबसे पहले राजीव गांधी ने ही यह सवाल उठाया था कि-‘गरीबी हटाना आवश्यक है, लेकिन यह अकेली कसौटी उन्नति की परख के लिए काफी नहीं है। अगर कहीं राष्ट्र की सफलता की यह कसौटी होती तो आर्थिक रूप से संपन्न देश स्वर्ग ही बन जाते। आज धन संपन्न राष्ट्रों में भी भारी सामाजिक तनाव है, वहां औद्योगिक समाज के दबाव में, वे दिशाहीन हैं, वे पर्यावरण और विषमता के खतरे से त्रस्त हैं। आदमी सिर्फ रोटी से ही तो नहीं जीता। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी जानते थे कि भौतिक गरीबी दूर करना ही काफी नहीं है, हालांकि यह जरूरी है। अतः आगामी अनेक वर्षों में देशवासियों के जीवन में सुधार लाने के लिए हमें अपनी अगली शताब्दी का कार्यक्रम और संकल्प तय करना चाहिए।‘
यह सही है कि राजीव गांधी को जवाहरलाल नेहरू जैसी वैज्ञानिक समाजवाद और गंगा जमुनी भारतीय संस्कृति की विरासत मिली थी तथा इंदिरा गांधी जैसा अनुशासन, दूरदृष्टि और दृ़ढ़निश्चिय की परंपरा का शासन भी मिला था, लेकिन वे 21वीं शताब्दी के वैज्ञानिक भारत के युवा सूत्रधार थे। आज जिस कंप्यूटर का कमाल भारत के घर में देख रहे हैं और पूरी दुनिया में जिस सूचना- प्रौद्योगिकी (आईटी) की तूती बजा रहे हैं, उसके स्वप्नदृष्टा राजीव गांधी ही थे। आज जिस संचार क्रांति और मोबाइल प्रौद्योगिकी का आनंद हम उठा रहे हैं वह राजीव गांधी की पहल से ही साकार हुई है। इस दिशा में ‘सैम पित्रोदा‘ जैसे ज्ञानवान व्यक्ति को राजीव गांधी ने ही खोजा था और यही सैम पित्रोदा भारत में स्थापित ‘ज्ञान आयोग‘ के अध्यक्ष थे। कहने का अर्थ यही है कि राजीव गांधी एक वैज्ञानिक अवधारणाओं के जनक थे और जवाहरलाल नेहरू की तरह अपने भीतर एक महान भारत का सपना देखा करते थे। ‘मेरा भारत महान‘ जैसे नारे और वाक्य की प्रतिध्वनियां भी हमें बार-बार याद दिलाती हैं।
राजीव गांधी की सोच केवल राजनीतिक ही नहीं थी, अपितु मानवीय थी। वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की परंपरा को, लोकतंत्र के महत्व को, सांप्रदायिक सद्भाव को और विज्ञान तथा टेक्नोलाॅजी के इस्तेमाल पर बहुत अधिक बल देते थे। राजीव गांधी भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश की राजनीति में जिस मजबूरी और अनिच्छा से आए थे, उस बात को तो हम सब जानते हैं, लेकिन हमें इस बात को भी कभी नहीं भूलना चाहिए कि राजीव गांधी का उदय, देश की उथल-पुथल भरी आक्रामक स्थितियों में हुआ था तथा पंजाब और असम में पृथकतावाद की गंभीर चुनौतियां थीं। इसके साथ ही पड़ोसी देश श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश भी अशांत और उपद्रवग्रस्त थे।
लोग भूल जाते हैं कि भारत में पंचायतराज व्यवस्था को मजबूत बनाने की जो पहल राजीव गांधी ने की थी वह आज गांवों के विकास की परिवर्तन रेखा बन गई है। संविधान में 73वां और 74वां संशोधन कर राजीव गांधी ने ही यह सुनिश्चित किया था कि महिलाओं, अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा अन्य पिछड़ा वर्गों को जनप्रतिनिधित्व में 33 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए। सरकार के कोई 24 काम ग्राम पंचायतों को सौंपने का निर्णय राजीव गांधी ने ही किया था, ताकि पंचायतीराज और महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज मजबूत हो सके। लोकतंत्र में सत्ता और विकास का विकेंद्रीकरण इनकी ही समझ का प्रमाण है। लेकिन मेरी समझ से हमने और राजनीति ने राजीव गांधी के साथ एक बहुत बड़ा अन्याय यह किया है कि उन्हें बहुचर्चित बोफोर्स तोप खरीद के मामले में आरोपित करके बदनाम किया है। विश्वनाथ प्रताप सिंह और भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रवापी दुष्प्रचार की राजनीति इसी का परिणाम रही है। राजीव गांधी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हम इस अन्याय के प्रचार अपराधी जरूर हैं। मेरे अनुसार तो राजीव गांधी ने अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल में एक ही राजनीतिक भूल यह की थी कि उन्होंने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले को संसद से प्रस्ताव पास कर प्रभावहीन बना दिया था जिससे करोड़ों मुस्लिम महिलाएं आज भी दासता और गुलामी का जीवन जी रही हैं। भारतीय राजनीति में धर्मांध ताकतों का दबदबा इस बात को ही फिर से प्रमाणित करता है कि-लोकतंत्र में वोटों की राजनीति सत्ता और व्यवस्था पर किस तरह हावी है। लेकिन फिर भी हम यही कहेंगे कि राजीव गांधी भारतीय राजनीति में एकमात्र ऐसे ‘मिस्टर क्लीन‘ हैं जो मन, वचन और कर्म से गैर राजनीतिक थे और 21वीं शताब्दी के ‘मेरा भारत महान‘ का सपना देखते थे। श्रीलंका के पृथकवादी आतंककारी गुट एलटीटीआई द्वारा उनकी हत्या भी इसी प्रतिशोध का परिणाम है कि हम इतिहास को पढ़ते अधिक हैं, लेकिन समझते बहुत कम हैं।
राजीव गांधी आज उसी एक शहादत का नाम है जिससे महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी ने स्थापित किया था। राजीव गांधी मुझे आज भी एक ऐसे सहज आदमी ही नजर आते हैं जो कभी समझे नहीं गए और देश में जारी कांग्रेस विरोधी राजनीति का शिकार बना दिए गए। राजीव गांधी का विस्तृत अध्ययन और अनुसंधान आज हमें बताता है कि यह एक रचनात्मक विकास की आधारशिला थे और अपने छोटे से जीवन में भारत के सच्चे सपूत बन गए। हमने तो उनके साथ न्याय नहीं किया, लेकिन इतिहास उनके साथ न्याय अवश्य करेगा। क्योंकि हमारा समाज कमियों को ढूंढ़ने का आदी है, इसलिए हम आज भी-किसी व्यक्ति के अवगुण ही अधिक गिनाते हैं। लेकिन मेरा विश्वास है कि राजीव गांधी इस देश में 21वीं शताब्दी के युवा और वैज्ञानिक भारत के सपनों के ऐसे पहले शिकार हैं, जिन्हें अब उनके मानवीय रंगों और रेखाओं से ही याद किया जाएगा तथा राजनीति में उत्साही और भारत के लिए समर्पित शहीद ही कहा जाएगा। शायद मेरा भारत इसलिए भी महान हैं कि वह राजीव गांधी को उनके जाने के बाद अब एक अभाव भरी वेदना से याद कर रहा है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)