लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं
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लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष के हमलों का जबाब देते हुए कहा ‘‘कांग्रेस टुकडे-टुकडे गैंग की लीडर, बांटना इसका चरित्र, कांग्रेस फाइल में खो जाती थी, हम लाइफ बना रहे है, कांग्रेस ने अंग्रेजों का चरित्र अपनाया, कांग्रेस ने मन बना लिया 100 साल सत्ता में नहीं आना, विभाजनकारी मानसिकता उनके डीएनए में घुस गई, अंग्रेज चले गये, बांटो और राज करो की नीति को कांग्रेस ने अपना चरित्र बना लिया है।’’
गरीबों ने कांग्रेस को हटा दिया, विश्व में भारत को बदनाम करने की साजिश कर रहे है। कांग्रेस न होती तो सिखों का संहार, परिवारवाद व आपातकाल नहीं होता, कांग्रेस ने बुनियाद डाली और भाजपा ने उसमें झंडा गाड दिया, कांग्रेस अर्बन नक्सल के जाल में फंस गई है। इससे पूर्व मोदीजी कांग्रेस मुक्त का नारा दे चुके है।
आजादी के आन्दोलन में कांग्रेस का क्या योगदान था और मोदीजी की पार्टी का क्या रोल था, इन्हीं साम्प्रदायिक ताकतों के कारण साम्प्रदायिकता फैली, अंग्रेजों को बल दिया, इस पर यहां न जाकर आजादी के बाद की बात करना अधिक उपयुक्त होगा।
15 अगस्त 1947 को भारत स्वाधीन हुआ तब 9 प्रान्त थे, 584 रियासते थी। आजादी के 2 वर्ष के भीतर 584 रियासतों को भारत का आंतरिक भाग बना दिया। देश के बंटवारे पर हुई स्थिति को संभाला। दुनिया की कोई भी हुकुमत हालात के बोझ से दब जाती, बिखर जाती, जैसा कि विदेशियों ने सोचा था। दुनिया का बेहतरीन संविधान बनाया, 1952 में सम्पूर्ण देश में वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचन कराया। आजादी के समय मुल्क में अनाज की कमी थी।
आर्मी, नेवी, ऐयरफोर्स मजबूत नहीं थी, उद्योग और व्यवसाय की कमी, बेरोजगारी, अकाल की स्थितियां, आर्थिक साधनों पर विश्व युद्ध का प्रभाव, आजादी के पूर्व की आट्रोकेसी, सत्ता का दुरूपयोग, पूरे देश में शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, हिन्दुस्तान में कोई चीज नहीं बनती थी, अनाज कपड़ा पूरा नहीं मिलता था। दौ सौ सालों में गिरे पड़े हिन्दुस्तान को उठाने के लिए मजबूत फौज, मजबूत सेंट्रल गवर्नमेंट के नेतृत्व में बनी। हमारे नेताओं के अथक प्रयासों से लोकतंत्र मजबूत हुआ।
योजना आयोग की स्थापना कर योजनाबद्ध विकास प्रारम्भ हुआ। बड़े-बड़े उद्योग स्थापित करने, भारी मशीनों का उत्पादन करने का कार्य प्रारम्भ हुआ। दुर्गापुरा, भिलाई, राउलकेला में बड़े-बड़े प्लांट स्थापित किये, विज्ञान और तकनीकि विकास, अणुशक्ति का विकास, वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं की स्थापना, उच्चस्तरीय शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं प्रारम्भ हुई। सिंचाई एवं विद्युत उत्पादन की वृद्धि के लिए बड़े-बड़े बांधों का निर्माण प्रारम्भ हुआ।
प्रजातांत्रिक गणराज्य की स्थापना, संवैधानिक संस्थानों की स्थापना, स्वतंत्र न्यायपालिका बनी, सामाजिक व आर्थिक न्याय का अधिकार प्राप्त हुआ। गुटनिरपेक्ष की नीति से विश्व शांति के प्रयास किये, सम्पूर्ण विश्व में भारती की प्रतिष्ठा बढ़ी। राजाशाही, जागीरदारी, जंमीदारी समाप्त कर किसान को सम्पूर्ण मालिकाना हक मिले। सामुदायिक विकास कार्यक्रम, पंचायती राज व्यवस्था में ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक क्रांति हुई।
1947 में 123 मेगावाट बिजली उत्पादन होता था जो 200 गुना बढ़कर 3.28 लाख मेगावाट हो गया। विद्युत व्यवस्था केवल 3000 गांवों में थी जो साढे 6 लाख से अधिक गांवों में पंहुची। देश भर में 2 लाख विद्यालय थे जो 10 गुना बढ़कर 20 लाख, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 20 विश्वविद्यालय व 500 महाविद्यालय थे जिनमें एक लाख छात्र पढ़ते थे जो बढ़कर 700 से अधिक विश्वविद्यालय व 35000 से अधिक महाविद्यालय हो गये। आईआईटी, आईआईएम, एआईआईएमएस आदि प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना हुई। साक्षरता दर 12 प्रतिशत थी जो 75 प्रतिशत हो चुकी है।
स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि के कारण औसत आयु जो 1947 में 32 वर्ष थी अब 70 वर्ष के करीब हो गई। देश में सड़क, रेल, टेलीफोन, सीमेंट, स्टील, सकल घरेलु उत्पाद में वृद्धि हुई। विदेशी मुद्रा भण्डार व निर्यात बढ़ा। हरिक क्रांति हुई, श्वेत क्रांति हुई, अनाज, दूध, फल, सब्जी, उत्पादन में पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर पंहुचा। प्रति व्यक्ति आय 1947 में मात्र 250 थी जो 74920 से अधिक पंहुची।
बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रिवीपर्स की समाप्ति, पंचायती राज की स्थापना, 18 वर्ष की आयु में मतदान अधिकार, रोजगार का अधिकार, सूचना का अधिकार, मनरेगा का शुभारम्भ, शिक्षा का अधिकार आदि कांग्रेस सरकारों की देन है। दुनियाभर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कमान आज भारतीयों के हाथों में है। लोकतंत्र में धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक सहिष्णुता, सामाजिक न्याय, सामाजिक समरसता, गरीबी निवारण, समानता इस देश की पहचान बन गई।
पं. नेहरू ने लोकतंत्र को मजबूत किया। योजनाबद्ध विकास, बुनियादी बहुउद्देशीय ऊर्जा व सिंचाई योजनाएं, वैज्ञानिक एवं शिक्षा स्वास्थ्य की उच्चतम संस्थाओं की स्थापना की। शास्त्री जी ने 1965 का युद्ध जीता, हरित क्रांति, दुग्ध क्रांति प्रारम्भ की। इन्दिरा जी ने इतिहास ही नहीं भूगोल बदल दिया, बीस सूत्री कार्यक्रम, जनजाति अधिकार, खालसा आन्दोलन की समाप्ति की। राजीव गांधी ने पंचायतराज में महिला व पिछड़ा वर्ग आरक्षण, कंप्यूटराईजेशन, टीवी, मोबाइल, एशियाद का आयोजन, श्रीलंका व आसाम में शांति स्थापित की। दो प्रधानमंत्री व एक मुख्यमंत्री की कुर्बानी दी। क्षेत्रवाद, जातिवाद, साम्प्रदायवाद के समाप्ति के लिए गंभीर प्रयास किये।
वर्तमान मोदी सरकार के सात साल में रूपये का अवमूल्यन हुआ, जीएसटी लागू हुई। कोरोना महामारी में लाखों जाने गई, उद्योग धंधे बन्द हुए, बेकारी, बेरोजगारी, भुखमरी, धार्मिक कटुता, साम्प्रदायिकता, अपराध, अत्याचार बढ़े, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति का अधिकार कम हुआ। अमीर अधिक अमीर हो रहा है, पैट्रोल पदार्थो व गैस के दाम बेतहाशा बढ़ाये गये। 116 देशों के वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत 101 वें स्थान पर, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल से नीचे पंहुच गया, 69 करोड़ लोगों को खाली पेट सोना पड़ा जबकि 1992 में 76 वें स्थान पर था।
पिछले साल भारत की विकास दर शून्य से 7.3 फीसदी कम रही। बेरोजगारी की दर 7.91 फीसदी बढ़ गई, शहरी बेरोजगारी दर 9.34 पंहुच गई। थोक मंहगाई ज्यादातर वक्त दहाई अंकों में बनी रही। 64.1 फीसदी लोगों की आमदनी घटी, 77 प्रतिशत बेरोजगारी बढ़ी। 60 करोड़ नौकरियों की आवश्यकता है जबकि केवल 40 करोड़ बताई जा रही है, 20 करोड़ नौकरियों की कमी है। सीएमआई के अनुसार 29 साल से कम उम्र के 3.18 करोड़ युवा बेरोजगार नौकरी को तरस रहे है।
सरकार 5 साल में 60 लाख नौकरियों का वायदा कर रही है, 22.1 प्रतिशत महिलाओं का रोजगार कम हो गया। हॉं इन सालों में बड़ी-बड़ी मूर्तियां लगी, धार्मिक स्थानों पर पैसा खर्च हुआ, फास्ट ट्रेनों की उम्मीद बढ़ी, नया पार्लियामेंट हाउस, प्राइम मिनिस्टर हाउस का निर्माण कार्य जारी है। आजादी के बाद के सात साल व मोदी शासन के सात साल देश की भावी स्थिति को स्पष्ट करते है। विकास के नाम पर पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, पर्यावरण विनाश की कीमत पर विकास योजनायें क्रियांवित की जा रही है। आज देश में प्रति व्यक्ति 1000 पर एक डाक्टर है, 80 फीसदी स्वास्थ्य सेवायें निजी हाथो में है। स्वास्थ्य पर जीडीपी का मात्र 3.6 प्रतिशत व्यय हो रहा है। अस्पतालों में केवल 50 फीसदी मरीजों के लिए ही बेड है।
केन्द्र ने संसद में जो आंकडे रखे उसके अनुसार आर्थिक तंगी के चलते दीवालिया होने व बेरोजगारी के कारण आत्महत्या करने वालों की संख्या 2018 से 2000 के बीच क्रमशः 16000 व 9140 रही। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने निजी विचार हैं)