व्यक्तित्व को आकर्षक बनाए

(डे लाइफ डेस्क)


आज का युग वैश्वीकरण का युग है। वैश्वीकरण के युग में सब जगह प्रतिस्पद्र्धा है। प्रतिस्पद्र्धा में वहीं सफल हो सकता है जो सबसे योग्य है। योग्यता का आधार व्यक्तित्व है। अगर व्यक्ति अपने को योग्य नहीं सिद्ध कर सकता तो वह प्रतिस्पद्र्धा से बाहर मान लिया जाता है। मनुष्य के व्यक्तित्व का अंकन अनेक गुणों के आधार पर होता है। उसमें व्यक्तित्व भी एक महत्वपूर्ण गुण है। व्यक्तित्व आधुनिक मनोवैज्ञानिकों का बहुत ही महत्वपूर्ण एवं प्रमुख विषय है। सामान्यतः व्यक्तित्व से अभिप्राय व्यक्ति के रूप, रंग, कद, लम्बाई चैड़ाई, मोटाई अर्थात् शारीरिक संरचना तथा उसके व्यवहार से लगाया जाता है। व्यक्तित्व के संबंध में अनेक धारणाएं हैं। बोलचाल की भाषा में व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग शारीरिक बनावट और सौन्दर्य से लिया जाता है।


शारीरिक सुन्दरता के आधार पर प्रायः कहा जाता है कि इस मनुष्य का व्यक्तित्व सुन्दर, आकर्षक और प्रभावशाली है। अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के लिए व्यक्ति विविध उपाय करता है। किन्तु उसके अधिकांश प्रयास बाह्य व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के लिए होते हैं। आन्तरिक व्यक्तित्व के अभाव में बाह्य व्यक्तित्व बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हो पाता। अतः आवश्यक है बाह्य व्यक्तित्व के साथ-साथ आन्तरिक व्यक्तित्व पर भी ध्यान दिया जाये। आन्तरिक व्यक्तित्व विकास की प्रक्रिया हैं- योग। योग आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया है, किन्तु आज योग को दैनिक जीवन में समाविष्ट करने का प्रयत्न किया जा रहा है, जिससे व्यक्ति तनावमुक्त, व्याधिमुक्त, कष्टमुक्त, स्वस्थ, संतुष्ट और श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण कर सके।


किसी व्यक्ति विशेष को जानने के लिए उसके व्यक्तित्व कि समग्रता जाननी जरूरी है। कोई दो व्यक्ति एक जैसे नहीं होते। जीवन का प्रारंभ माता के डिम्ब और पिता के शुक्राणु के संयोग से होता है। व्यक्ति के आनुंवशिक गुणों का निश्चय क्रोमोसोम द्वारा होता है। क्रोमोसोम अनेक जींस का समुच्चय है। ये जींस ही माता-पिता के आनुवंशिक गुणों के संवाहक है। इन्हीं में व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक क्षमताएं संनिहित होती है। ऐसी कोई भी क्षमता प्रकट नहीं हो सकती है जो जींस में ना हो। व्यक्तित्व को जानने और अच्छा बनाने की रूचि हजारों वर्षों से जनमानस में रही है। व्यक्तित्व अंगे्रजी के पर्सनलिटी शब्द का रूपान्तर है। आज ‘पर्सनलिटी’ शब्द बहुत प्रचलित है। यह आज के युवा मानस का प्रिय शब्द है। प्रत्येक युवक चाहता है कि उसकी पर्सनलिटी अच्छी बने, आकर्षक बने। यह आज की युवा पीढ़ी की चिन्ता है। पर्सनलिटी का सामान्यतया अर्थ लिया जाता है-व्यक्तित्व का बाह्य रूप।



व्यक्ति की वेश-भूषा, शारीरिक गठन व बाह्य सौन्दर्य आदि। यह बाह्य रूप व्यक्तित्व का अंशमात्र है। सर्वांगीण व्यक्तित्व तब निखरता है जब उसके सारे आंतरिक आयाम और बाह्य पक्ष उज्जवल बनते हैं, उनमें निरन्तर निखार आता है और सभी पक्षों का संतुलित विकास होता है। व्यक्तित्व के स्वरूप पर आनुवांशिक कारकों का प्रभाव पड़ता है अतः गर्भकालीन परिस्थितियों को जन्म के बाद प्राप्त होने वाली व्यक्तित्व संरचना की नींव के रूप मंे माना जाता है। ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि गर्भकालीन दशा में मां की संवेगात्मक दशाओं जैसे-चिन्ता, भय, आवेश आदि का प्रभाव जन्मोपरान्त बच्चे पर परिलक्षित होने लगता है। मां की आयु का भी बच्चों के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। व्यक्तित्व विकास की समग्र प्रक्रिया योग है। योग का प्रारम्भ शरीर शुद्धि से होता है और इसके निरन्तर अभ्यास से मनशुद्धि, भावशुद्धि तथा आत्मशुद्धि की प्राप्ति होती है।


व्यक्तित्व के प्रमुख घटकों में सहनशीलता, त्याग की भावना, प्रामाणिकता, ईमानदारी, वर्तमान में जीना, नेतृत्व का गुण आदि प्रमुख घटक है। सहनशीलता एक प्रमुख गुण है। अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में, निन्दा और प्रशंसा में समान रहना सहनशीलता है। त्याग की भावना व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण गुण है। आज अधिकतर व्यक्ति बिना मंजिल के जीवन यात्रा कर रहे हैं। जीवन जोकरों का खेल नहीं है जिसे मनुष्य मौन होकर भाग्य भरोसे कुछ होते हुए देखता रहे। जीवन को सार्थक बनाने के लिए सतत पुरूषार्थ और उद्देश्य की खोज आवश्यक है। जीवन में उद्देश्य की खोज ही जीवन की सबसे बड़ी चुनौती है। बहुत कम व्यक्ति जीवन में  उद्देश्य की खोज कर पाते हैं। अधिकांश व्यक्ति अपने जीवन का मूल्यांकन नहीं कर पाते है। व्यक्ति अपने जीवन में उद्देश्य को जितना जल्दी खोज ले उतना ही अच्छा है।


हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति में  जीवन-उद्देश्यों पर गहन चिन्तन मनन होता रहा है। उसी के अनुरूप जीवन-दृष्टि और जीवनशैली का प्रतिपादन हुआ है। यदि पवित्र उद्देश्य और स्पष्ट दृष्टिकोण जीवन का मार्ग दर्शन नहीं करते है तो मिथ्या स्वप्न और ख्याली पुलाव ही जीवन के मार्ग दर्शक बन जायेंगे। यदि जीवन रूपी खेत में सार्थक मूल्यांकन फसल सलक्ष्य नहीं बोई जाती है तो निरर्थक और मूल्यहीन घास-फूस और दुःखद कांटे स्वतः पैदा हो जायेंगे। इसलिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति सलक्ष्य प्रयत्न करे। एक बार यदि जीवन का उद्देश्य और नैतिक मूल्य स्पष्ट हो जाये तो वैयक्तिक स्वार्थ और सामाजिक दायित्व के बीच होने वाले आन्तरिक संघर्ष में  एक नैतिक संतुलन आ जाता है। व्यक्ति में जागरूकता आ जाती है कि कब उसे दृढ़ रहना है एवं कब उसे लचीला रह कर सामंजस्य स्थापित करना है। 



प्रो. (डॉ.) सोहन राज तातेड़


पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान