डॉ. सत्यनारायण सिंह की नज़र में राजस्व अदालतें व न्याय

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

पूर्व सदस्य, राजस्व मंडल राजस्थान

www.daylife.page 

मुख्यमंत्री अशोक गहलेात ने राजस्व प्रशासन व न्याय की समीक्षा करते हुए सही रूप  से टिप्पणी की है कि लाखों मुकदमे राजस्व मंडल व राजस्व अदालतों में पेंडिंग पडे है। पीढ़िया गुजर जाने के पश्चात भी मुकदमों में अंतिम फैसला नहीं हो रहा। अघ्यक्ष राजस्व मंडल ने इसकी जिम्मेदारी, समाचारों के अनुसार वकीलो पर डाली है। मैं राजस्व मंडल का सदस्य रहा हूं और नीचे की राजस्व अदालतों को भी देखा है, वास्तविकता कुछ ओर है।

राजस्व मंडल व राजस्व न्यायालयों में ऐसे प्रजाइडिंग अधिकारी लगाये जा रहे जो राजस्व कानूनों से अनभिज्ञ है। ये प्रजाइडिंग अधिकारी अन्य मुतफरीक कामों में लगे रहते है जिससे राजस्व मुकदमें पेंडिग रहते है, समय पर उनका निपटारा नहीं होता।

देशी रियासतों के विलिनीकरण के समय गावों व किसानों की स्थिति, शोषण, गरीबी, अकाल और बेरोजगारी से त्रस्त किसानों को विशेष संरक्षण की आवश्यकता महसूस करते हुए, सरकार द्वारा नये राजस्व कानून बनाऐ गए और किसानों को जमीन के खातेदारी अधिकार दिए गए। किसानों की कठिनाईयों के तुरंत निराकरण के दृष्टिकोण से राजस्व अदालतों का गठन किया गया व शीघ्र सुनवाई के लिए पृथक राजस्व न्यायालयों के साथ पृथक प्रक्रिया व सरलतम नियम बने। इनकी पालना कराने के लिए पटवारी से लेकर राजस्व मण्डल तक को पाबन्द किया गया व जिम्मेदार ठहराया गया और विशेष रूप से तहसीलदारों को राज्य की ओर से कृषि भूमि का स्वामी ;स्ंदक सवतकद्ध के रूप  में रखा गया। इस प्रकार राजस्व विवादों व मुकदमों का निस्तारण कृषि भूमि जोतने वाले किसान के हितों को सर्वोपरी मानकर शीघ्र निस्तारण हेतु किया गया।

दुर्भाग्य से प्रशासनिक प्राथमिकताऐं बदल गयीं। राजस्व कर्मचारी अधिकारी किसान की अनभिज्ञता व अशिक्षा के कारण पोषक से शोषक बन गयें। इन न्यायालयों में प्रारम्भ में राजस्थान की पृष्ठ भूमि से वाकिफ, प्रशिक्षण प्राप्त, राजस्व कानून के जानकार, अनुभवी प्रशासनिक अधिकारी, अनेक वर्षों तक एस.डी.ओ., भू-प्रबन्ध अधिकारी, ए.डी.एम, कलेक्टर व कमिश्नर, पदस्थापित किये गये। आज के राजस्व अधिकारियों को न तो राजस्व कानून की जानकारी ही है और न ही जानकारी प्राप्त कर निष्पादन करने की इच्छाशक्ति व क्षमता। राजस्व मामलों का निष्पादन उनकी पदोन्नति, ख्याति व योग्यता का मापदंड भी नहीं रहा।

राजस्व मण्डल में अनइच्छुक व राजस्व कानून व नियमों से अनजान अध्यक्ष व सदस्यों का पदस्थापन होने लगा और उनके नीचे के राजस्व अधिकारियों पर उनका नियंत्रण समाप्त हो गया। प्रारम्भ में मुख्य सचिव स्तर के अध्यक्ष व सचिव स्तर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जिन्होंने लम्बी अवधि तक उच्च स्तर पर सेवा प्रदान की है सदस्य नियुक्त किए जाते रहे। निर्णयों का प्रकाशन होता था, उच्च न्यायालय में उनके विरूद्ध अपील रिवीजन होती थी। राजस्व मण्डल राजस्व मामलों का उच्चतम न्यायालय था। अध्यक्ष व सदस्य ग्लेमर से दूर रहते थे। कुछ समय से विभिन्न कारणों से भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी सदस्य के रूप में नियुक्ति पसन्द नहीं करते थे मुकदमो का निस्तारण नहीं होता था, इसलिए ज्यूडीशिल मेम्बर्स व अधिवक्ताओं को सदस्य के रूप में नियुक्ति दी गई। भारतीय प्रशासनिक सेवा के बजाए आर.ए.एस. के सुपरटाइम स्केल के अधिकारियों को विशेष चयन से पदस्थापित किया जाने लगा। राजस्व मण्डल की प्रतिष्ठा गिरती गई। राजस्व मण्डल के अध्यक्ष व सदस्यों का राजस्व अपील अधिककारियों पर नियंत्रण नहीं रहा। निरीक्षण बंद हो गये। डाक्टरी या इंजीनियरिंग की डिग्री के लोग राजस्व कानूनों से अनभिज्ञ व बगैर किसी जमीनी अनुभव राजस्व न्यायालयों व प्रशासन में पदस्थापित हो तो राजस्व प्रशासन व न्याय का स्तर किस प्रकार उच्च स्तर का हो सकता है? अनइच्छुक अधिकारियोें को दण्डस्वरूप नाराजगी के तौर पर अन्य महत्वपूर्ण प्रभावशाली महकमों व पदों से स्थानांतरण कर, उनकी इच्छाओं, क्षमताओं, आवश्यकताओं व योग्यताओं का ध्यान रखे बगैर पदस्थापिन किया जाने लगा तो किस प्रकार का स्तर रह सकता था ? राजस्व मण्डल में पदस्थापन दण्ड रूप में अथवा प्रशासनिक निर्णयों में अकुशलता के रूप में जाना जाने लगा।

आज राजस्व न्यायालयों व राजस्व कार्यालयों की स्थ्तिि अत्यंत दयनीय है। उनकी सुविधा, सहूलियत व सुरक्षित रूप से कार्य की आवश्यकता की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा।  प्रशासनिक अधिकारियों के साथ नियुक्त अभिभाषको ने भी प्रक्रिया को सरल बनाने के बजाय अपेक्षाकृत कठोर बना दिया गया। राजस्व मैन्युयल दरगुजर कर सी.पी.सी. व उसके कठिनतम कानूनी प्रावधानों के अनुसार निर्णय होने लगे हैं। सीधे-सीधे प्राकृतिक न्याय की अवधारणा व जमीनी हकीकतों को अनदेखा कर व समाप्त कर जटिलतम पद्धति व प्रावधान अपनाऐं जाने लगे। मुकदमात लम्बित रहने लगेै। राजस्व मामलों का निबटारा ओर अधिक धीमा, जटिल, कष्टप्रद, किसानों की समझ से परे व पूरी तरह  दुष्कर हो गया। उच्चतम न्यायालयों के अधिक हस्तक्षेप से राजस्व मण्डल जो राजस्व सम्बन्धी मामलों की उच्चतम अदालत थी का प्रभाव व सम्मान समाप्त हो गया है। राजस्व न्यायालयों का निरीक्षण, उन पर नियंत्रण समाप्त हो गया।

वर्षों तक प्रक्रियाओं की पूर्ति में मामलें खर्चीले व लंबित हो गए, गरीब किसान का आज सस्ते, सुलभ, शीघ्र व प्राकृतिक न्याय में बहुत कम विष्वास बचा है। किसान पक्षपात, दखलंदाजी, अनेक प्रकार के वैधानिक, अवैधानिक खर्चे, लम्बी यात्राऐं, बार-बार के अनावश्यक स्थगन व पेशियों की तब्दीली से आहत महसूस कर रहा है और इस फिराक में रहता है कैसे भी उसे शीघ्र राहत व न्याय मिलें।

यदि राज्य सरकार किसानांे के हितों में राजस्व प्रशासन व न्याय को सुदृढ़ करना चाहती हैं तो जिलाधीश, कमिश्नर, सदस्य राजस्व मंडल व राजस्व अपील न्यायालय के पदों पर राजस्व कानूनों की जानकारी रखने वाले अनुभवी व इच्छुक लोंगों का पदस्थापन करना आवश्यक है। जिनकी निष्पक्षता, ईमानदारी, कर्तव्य परायणता, संदेह से परे है उनका पदस्थापन दंड के रूप में नहीं उन्हें कुशलता के आधार पर पदस्थापन करना होगा।

उच्चतम न्यायालय केवल सिविल कोर्ट व क्रिमिनल कोर्टों के कार्यों का ही मूल्याकंन करता है। उनकी सुविधा या असुविधाओं का ध्यान नही रखता है, परन्त राजस्व मण्डल तो राजस्व प्रशासन व न्यायालयों का लगातार निरीक्षण, कंट्रोल, सुपरवीजन व मूल्यांकन नहीं कर रहा है। उसकी सिफारिशे सरकार में जाकर दब जाती है। राजस्व मण्डल राजस्व अधिकारियों की मुस्किलात मुकदमों के शीघ्र निस्तारण का ध्यान रखने में सक्षम नहीं रह गया है। पूर्व में ए.सी.एम. तक के न्यायालयों का निरीक्षण राजस्व मंडल अध्यक्ष, सदस्य थे व निरीक्षण रिपोर्टों पर कार्यवाही होती थी। इनका प्रबंधन व मान्यता अदालतों की तरह थी। कनिष्ठतम राजनेताओं व उच्च अधिकारियों की इच्छाओं पर निर्भर नहीं। निस्तारण मामलो की पूरी सूचना मण्डल अध्यक्ष का प्रेषित की जाती थी जो समीक्षा करते थे।

मुझे याद है ए.सी.एम. के रूप में सन् 1962 में आम चुनाव, पंचायत चुनाव, अन्य महत्वपूर्ण विभागों व कार्यक्रमों की व्यस्तता के कारण जब मुकदमों का फैसला मापदंड से कम रहा तो सम्पूर्ण आधिकारिक स्पष्टीकरण के बावजूद राजस्व मंडल का उपदेश मिला था कि ’’आप प्रथम राजस्व अधिकारी है अन्य महत्वपूर्ण राजकीय ड्यूटी करना तो मूल कर्तव्य के साथ जुड़ा है। अन्य कार्यों के नाम पर मूल कार्य को दरगुजर नहीं किया जा सकता।’’ आज तो ए.सी.एम. से लेकर जिलाधीश व कमिश्नर तक महीनों कोर्ट में नहीं बैठते। प्रोटोकाल, मुतफरिक कार्यों के नाम पर राजस्व मामले वर्षों से लंम्बित पडे रहते हैं। समय पर न्याय नहीं मिलता, बार-बार पेंशियाॅ बदलने से किसान दुःखी होता है, उसका अनावश्यक खर्चा होता है वह शासन और प्रशासन के रवैये पर आंसू बहाता है। मेरे मित्र अभिभाषकों की भी इस तौर-तरीके के कारण संवेदनशीलता पूर्णतया समाप्त हो गई है।

मैं दो वर्ष राजस्व मण्डल का सदस्य रहा हूं, हजारों मुकदमों मे फैसला दिये है राज्य सरकार ने मुकदमों के निस्तारण पर योग्यता प्रमाण-पत्र दिया है सेवा वृद्धि का निर्णय लिया था, परन्तु राजस्व मण्डल के कार्य को गति देने सम्बन्धी सिफारिशों पर ध्यान नहीं दिया गया। उन दो वर्षो में चार राजस्व मण्डल अध्यक्ष बदले गये। अनइच्छुक अधिकारियों को या रिटायर होने वाले अधिकारियों को सदस्य नियुक्त किया गया। सरकार को प्रशासनिक कार्य व न्याययिक कार्य में अन्तर समझना होगा। फैसला लिखकर सुनाना व उसकी बार व बेंच द्वारा समीक्षा आसान नहीं है इसे ध्यान रखना होगा, राजस्व मण्डल का कार्य जिम्मेदारी भरा है।

यदि सरकार वर्तमान दृष्टिकोण में बदलाव कर कुछ सुधार नहीं कर सकती है तो उसे राजस्व व न्याय को पृथक कर सीधे उच्चतम न्यायालय के अंतर्गत सिविल कोर्ट व क्रिमिनल कोर्टों की तरह कर देना चाहिए जिससे कम से कम इन न्यायालय धणी-धोरी हो और सुचारू रूप से कानून के जानकर न्याय कर सकें। किसानों को राहत एवं न्याय, देर-सबेर मिलने की आशा बंधे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)