कैसे कायम रहे खूबसूरत शहर जयपुर का सौन्दर्य

लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं 

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जयपुर शहर की आबादी अब लगभग 35-40 लाख आंकी जा रही है। आबादी के अनुसार नगर का विस्तार एवं विकास की गति नहीं होने से नियोजित, सुन्दर शहर में अनियोजित विकास, अवैध निर्माणों ने वास्तुकला को नष्ट कर दिया है। अलाइमेन्ट व ले-आउट के विपरित निर्माण व सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमणों की वजह से सुन्दर शहर की सुन्दरता दिनोदिन समाप्त होती जा रही है, सर्वाधिक गन्दा शहर बनता जा रहा है। मुख्यमंत्री ने अनेक अवसरों पर इन बातों पर गहरी चिंता व दुःख प्रकट किया है परन्तु स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ती ही जा रही है।

जयपुर नगर की आबादी, 5 प्रतिशत की दर से बढती जा रही है जबकि राजस्थान राज्य की 4 प्रतिशत एवं देश की 3 प्रतिशत है। बढती हुई आबादी की वजह से कृषि भूमि व वन भूमि समाप्त होती जा रहा है, वनों को काटा जा रहा है। कच्ची बस्तियों व अनाधिकृत बस्तियों की संख्या बढती जा रही है। बेतरतीब विकास योजनाओं से नगर मे पीने के पानी की कमी, गंदगी व सीवरेज की समस्या दिनोदिन उग्र होती जा रही है। नगर के निवासियों विशेषकर बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरित असर पड रहा है एवं अनेक बीमारियां फैल रही है। वाहनों की संख्या में लगातार हो रही बढोतरी, कच्ची बस्तियों की बढती संख्या, खुले में शौच जाने की प्रवृति, जगह-जगह गंदगी के ढेर, अनियंत्रित घ्वनि प्रदूषण से लोगों में गंभीर बीमारियां बढती जा रही है।

नगर में यातायात पूर्णतः अनियंत्रित है। ट्रक, बस, मिनी बस, टू व्हीलर, थ्री व्हीलर, बैलगाड़ी, धोड़ागाड़ी, ऊंटगाड़ी, रिक्षा, ई-रिक्शा, साईकिल, स्कूटर, मोटरे, पैदल चलते अनुशासनहीन लोगों से यातायात पूर्णतः अनियंत्रित होता जा रहा है। जयपुर के चारों ओर फैली हाईवेज तो ’’डेथ ट्रेैक’’ बन चुकी है, नगर के बाहर प्रतिदिन दुर्घटनाएं बढती जा रही है।

नगर के बाहरी क्षेत्रों में सीवरेज लाईन नही होने व पुराने टूटे फूटे शॉकपिटों की वजह से ग्राउंड वाटर पीने लायक नही रहा। ग्राउंड वाटर की मात्रा कम होती जा रही है। सीवरेज के पानी से होने वाली सिंचाई व उससे पैदा होने वाली सब्जियों से पेट की बीमारियां बढती जा रही है। पेट की बीमारियों की सबसे अधिक दवा जयपुर शहर में बिकती है और पेट में कीड़े होनेेे की आम षिकायत मिलती है।

नगर में सफाई व्यवस्था बिगडती जा रही है। नालियों की नियमित रुप से सफाइ नही होती है, कूड़े के ढेर बढ़ते जा रहे है, जहां इच्छा होती है लोग कचरा डाल देते है, बच्चे पखाने बैठते है, कचरा उठाने की नियमित व्यवस्था नही हैं, मक्खी-मच्छरों की भरमार है। नगर में भयंकर बीमारियां व संक्रामक रोग बढते जा रहे है। लोग घरों की छत से कचरा गली में डालते है, कर्मचारी पूरे समय सफाई नही करते है। अब पुस्तकों में भी अंकन होने लगा है कि हिन्दुस्तानी स्वयं गन्दे रहते है परन्तु बातें अनावश्यक रूप से संस्कृति व साफ सुथरा रहने की करते हैं। पिंक सिटी अब स्टिंक सिटी कहलाने लगी है।

नगर में अनाधिकृत व बेतरतीब निर्माण बेरोकटोक होते रहते है। जिसे देखो वास्तुकला को चैपट करने पर तुला हुआ है। मनमर्जी से रंगरोगन होता है और घरों की सीलिंग रखी जाती है, बरामदे, दरवाजे शो-रूम बनाते है। आवासीय घरों में अनाधिकृत निर्माण, वास्तुकला की समाप्ति, गंदगी का साम्राज्य बढ़ता जा रहा है। विशेष नागरिक शिक्षा के अभाव की वजह से नागरिकों का कार्यो के प्रति पूर्णतः असहयोग रहता है। कर्मचारियों की मिलीभगत से अतिक्रमणख् अनाधिकृत निर्माण, वास्तुकला के विपरित निर्माण हो रहा है, गंदगी बढ़ती जा रही है। नगर निगम अब नर्क निगम कहलाने लगा है और विकास के नाम पर विनाश हो रहा है। प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है।

सडकों पर आवारा पषु घूमते रहते है और बीच सडक में बैठे मिलते है। मुख्य मार्गाे व स्थानों पर कचरा व घास डालने से भी यह समस्या बढती जा रही है। आवारा पशुओं को पकडकर षहर से बाहर भेजने की व्यवस्था नही होने से एवं अनेक लोगों का निहित स्वार्थ होने की वजह से यह समस्या घटने की बजाय बढती जा रही है।

नगर के फुटपाथ टूटे पडे हैं, कोइ भी विभाग जब चाहे इन्हें तोड सकता है। इन पर पूर्णतः अतिक्रमण हो चुका है, दुकानदारों ने अतिक्रमण कर रखा है, विषेषकर मिस्त्रियों के कारखाने बन चुके है अथवा वाहन पार्क कर दिये जाते है। नगर के मुख्य मार्गो पर पार्किंग की कोई सुचारु व्यवस्था नही है और मुख्य मार्ग पर ही वाहनों की पार्किग होती है, दुकानदार अपनी दुकान के बाहर 2-3 वाहन हमेषा खडा रखना चाहता है यहां तक कि भारी वाहनों की पार्किंग, पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मालिक भी अपनी दुकानों के बाहर अपने वाहनों को पार्क करते है। पार्किंग के लिए कई तरह की योजनाएं बनाई गई परन्तु पार्र्किंग के लिए कोई नया स्थल नही बनाया गया।

सड़कों की हालत दिन ब दिन खराब होती जा रही है। कोई भी विभाग अपने विभागीय कार्यो हेतु तोड़फोड़ कर देता है और उसके पश्चात महिलों तक उसकी मरम्मत नहीं होती है जिसकी वजह से गहरे गड्डे बन जाते है और उसमें पानी भरता रहा है जिससे डामर उखड़ता रहता है। बगैर परमिट, बगैर लाईसेन्स वाहन चलाये जा रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएं जिन्हें वाहन चलाने का लाइसेन्स भी नहीं मिला है, वाहन चला रहे हैं। गांव से आने वाला हर बेरोजगार व्यक्ति रिक्शा, ठेला उठाकर शहर में चला रहे है। नव धनाढ्य लोगों के छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएं बगैर प्रशिक्षण के कारें व स्कूटर बड़ी तेजी से चला रहे हैं। बसें व गाड़ियां लगातार हाॅर्न बजाती हुई तेजी के साथ व्यस्त सड़कों पर चलती रहती है, इनके लिए तो कोई पुलिस रही ही नहीं।

जयपुर की सबसे अधिक बर्बादी अनियंत्रित निर्माण, अतिक्रमण से हुई हैं जिसकी उत्तरदायी यहां की हाउसिंग सोसायटियां है। भू-माफियों के नियंत्रण में चल रही ये सोसायटियां अनियंत्रित, अव्यवस्थित, बेतरतीब निर्माण व अतिमक्रमण के लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार है। इन लोगों की सांठ-गांठ जयपुर विकास प्राधिकरण, हाउसिंग बोर्ड, नगर निमगम आदि के अधिकारियों/कर्मचारियों से लगातार बनी हुई है जो स्वयं भू-माफियों के साथ अपनी हिस्सेदारी रखते हैं और लगातार मिलने वाली राशि के कारण धनिक वर्ग में गिने जाने लगे हैं। ये लोग नगर के आस-पास की कृषि भूमि को कोड़ियों में खरीद कर अपनी इच्छानुसार एवं लाभ की दृष्टि से प्लान तैयार कर एक-एक प्लाट को कई-कई लोगों को बेच देते है और इसमें भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी व अघिकारी भी पूरा साथ देते हैं। जयपुर विकास प्राधिकरण व नगर निगम को जहां इन पर सख्ती करनी चाहिए वहीं सख्ती का उपयाग करने के बजाय गरीबों के निर्माणों को तोड़कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। लोगों का यह मानना है कि निर्माण के लिए यदि नक्शा दे दिया गया तो वह स्वीकृत नहीं होगा। अतः बगैर नक्शा पास कराये ही निर्माण कराना उचित एवं आवश्यक मानते हैं।

नगर की जनता को व्यवस्थित यातायात हेतु कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस शहर का कोई धणी धोरी या मालिक नहीं रहा। जिसकी जो इच्छा हो वही करे, कोई पूछने वाला नहीं है। विकास की बात तो दूर नगर को बर्बादी की ओर ले जा रहे हैं। नगर के पार्को पर अतिक्रमण हो चुका है और वे शौचालय बनते जा रहे हैं, वहां पर हरियाली का काई नाम नहीं है। नगर के चारों पहाड़ियों की हरियाली समाप्त होती जा रही है। सभी पहाड़ियों से पत्थर निकाले जा रहे है, पत्थर काटने या पेड़ काटने की मशीनें लगाई जा रही है।

आवश्यकता है चार दीवारी की बदतर व बिगड़ती हालत व वास्तुकला को बिगड़ने से रोकने की, आवासीय भवनों को व्यवसायिक भवनों में बदलने को रोकने की और अलाइमेंट व ले-आउट के विपरित निर्माण किसी भी कीमत पर नहीं करने दिये जाने की, सड़कों व रास्तों को चैड़ा करने, चारी दीवारी के बाहर सीवरेज लाइन डालने, आवासीय कालोनियों में व्यवसायिक केन्द्र स्थापित करने एवं अनियंत्रित विकास को रोकने के लिए कम कीमत पर प्लाट व मकानों के आवंटन की, अधिकाधिक वृक्षारोपण की, यातायात नियंत्रण की, प्रभावशाली ढंग से अतिक्रमण रोकने की, शौचालयों के निर्माण की, अनाधिकृत कच्ची बस्तियों में सुधार व आगे बढ़ने से रोकने की।

यदि समय रहते उपरोक्त समस्याओं पर विचार किया जाकर समुचित हल नहीं निकाला गया तो वह दिन दूर नहीं जब सुन्दर शहर सबसे गन्दा शहर कहलाने लगेगा बल्कि अपना महत्व खो देगा और यह पुरानी धरोहर हम कायम नहीं रख सकेंगे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)