कांशीराम महान दार्शनिक, दूरदर्शी, जिम्मेदार और मानवता के प्रतीक थे : डॉ कमलेश मीणा

हम कह सकते हैं कि वे सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक समानता, संवैधानिक भागीदारी और लोकतांत्रिक मूल्यों, शिष्टाचार, नैतिकता के लिए आज के समय के सबसे प्रिय व्यक्ति थे।

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भारत के हीरो जांबाज स्वर्गीय कांशीराम की 89वीं जयंती के पावन अवसर पर हम इस महानायक को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। साहेब कांशीराम को बहुजन नायक, मान्यवर, साहेब के नाम से जाना जाता है। वह एक भारतीय राजनेता,समाज सुधारक थे, जिन्होंने बहुजनों के उत्थान और भारत में जाति व्यवस्था के निचले भाग में अछूत समूहों सहित पिछड़ी और निचली जातियों के लोगों के लिए काम किया और राजनीतिक लामबंदी के लिए काम किया। उन्होंने भारत पिछड़ी और निचली जातियों के लोगों के लिए समाज और लोकतंत्र की मुख्यधारा, रेखा और जीवन में मुख्य उत्पीड़ित लोगों के उत्थान के लिए कई संगठनों की स्थापना की। ये संगठन बामसेफ, दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएस4) बहुजन समाज पार्टी हैं। 

89 वीं जयंती के अवसर पर हम भारतीय लोकतंत्र के इस महान व्यक्ति को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिन्होंने वास्तव में एक सच्चे लोकतांत्रिक मूल्यों, संसदीय प्रणाली, आम जनता की भलाई, समानता के लिए एक सच्चे सामाजिक न्याय मिशन, आंदोलन की स्थापना की। जनता की चिंताओं और सभी मनुष्यों को सम्मान पाने के लिए वकालत की। कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को ख़्वासपुर, रोपड़, पंजाब में एक रैदासी सिख परिवार में हुआ था। 1958 में बीएससी स्नातक होने के बाद कांसीराम पूना में रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक के पद पर नियुक्त हुए।  

कांशीराम साहब ने संवैधानिक समानता, न्याय, समान भागीदारी, समानुपातिक साझेदारी और विभिन्न टूटे हुए समाजों की एकता के लिए आवाज दी। कांशीराम स्वतंत्रता के बाद के सामाजिक न्याय आंदोलन के मैन ऑफ द मैच थे, जिन्होंने हमें समावेशी समाज एकता, एक-दूसरे के प्रति वफादारी, न्याय, समानता, सम्मान, शांति, गरिमा और हमारी पहचान का मार्ग दिखाने के लिए प्रेरित किया। स्व. कांशीराम साहब ने हमें जाति, पंथ, क्षेत्र, धर्म, संस्कृति, रीति-रिवाजों, परंपराओं, भाषाओं और रूढ़िवादी अनुष्ठानों के आधार पर कई टुकड़ों और समूहों में हमारे अलग-अलग टूटे हुए समाजों के लिए एक निडर आवाज दी। उन्होंने हमें री-यूनियन, एकता, पुनर्मिलन, सुधार, दुरुस्त बनाने और सामाजिक कायाकल्प के उद्देश्य के लिए और लोकतंत्र में समान भागीदारी लेने के लिए बुलाया। 

मान्यवर का जीवन हमारे समाज में अब तक का सबसे अच्छा उदाहरण और आदर्श सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति जो समर्पित  ईमानदार, बुद्धिमान, चतुर, बुद्धिमान, समझदार, सत्यनिष्ठा त्याग और निष्ठा का उत्कृष्ट उदाहरण और  समर्पित था। उन्होंने ‘सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति’ को अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया तथा इसकी प्राप्ति के लिए अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर दिया। जब उनकी मां ने उन्हें शादी करने के लिए कहा तो "कांशीराम ने मां को समझाया कि उन्होंने समाज की भलाई के लिए ख़ुद को समर्पित कर दिया है। नौकरी छोड़ने पर उन्होंने 24 पन्ने का एक पत्र अपने परिवार को लिखा। उसमें उन्होंने बताया कि अब वे संन्यास ले रहे हैं और परिवार के साथ उनका कोई रिश्ता नहीं है। वे अब परिवार के किसी भी आयोजन में नहीं आ पाएंगे। उन्होंने इस पत्र में यह भी बताया कि वे ताजिंदगी शादी नहीं करेंगे और उनका पूरा जीवन बहुजन समाज के उत्थान को समर्पित है।

स्वर्गीय कांशीराम, महात्मा ज्योतिबा फूले, डॉ बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर, पेरियार साहब के वैचारिक नेतृत्व में भारत में सामाजिक न्याय आंदोलन के प्रमुख खिलाड़ी थे। कांशीराम साहब ने स्वतंत्रता के बाद भारत में हमारे पूर्वजों को मान्यता दी और स्थापित किया। कांशीराम साहब ने सर सैयद अहमद खान, गुरु गोविंद सिंह, फातिमा बीबी, रास बिहारी मंडल, जोगेंद्र नाथ मंडल, बीपी मंडल, शिवदयाल चोरसिया, सर छोटुरम चौधरी, छत्रपति साहू महाराज, ईवी रामस्वामी पेरियार, संत गाडके जैसे आदि हमारे पूर्वजों को मान्यता दी और स्थापित किया। कांशीराम साहब ने महात्मा बुद्ध, संत कबीर, गुरु नानक, रविदास और रैदास की मिशनरी विचारधारा को पुनर्जन्म दिया। 

कांशीराम साहब ने हमारे सैकड़ों पूर्वजों को पुन: स्थापित किया जिन्होंने भारत में जाति व्यवस्था के नाम टूटे हुए समाजों के हमारे सबसे पिछड़े समुदायों, लोगों के लिए समानता, न्याय, समान भागीदारी और साझेदारी के लिए संघर्ष किया। कांशीराम साहब की कभी भी जाने-अनजाने में भी किसी के द्वारा उपेक्षा नहीं की जा सकती है। उन्होंने न केवल खुद को भारतीय लोकतंत्र के एक जननेता के रूप में स्थापित किया बल्कि 15वीं से 20वीं सदी में सामाजिक क्रांतिकारी के हमारे सैकड़ों पूर्वजों को बहाल करने, फिर से स्थापित करने और सही जगह पर स्थापित करने का द्वार भी खोल दिया। वह हमारे समाजों और विचारधारा की वास्तविक पौराणिक विरासत है जिसे हमारे तथाकथित बुद्धिमान लोगों, नेताओं और सुधारकों ने स्वतंत्रता के बाद भारत में स्वीकार नहीं किया था। 

कांशीराम की इस जिद का ही परिणाम था कि साधनहीन कांशीराम ने फुले-शाहू-पेरियार-अम्बेडकर मिशन जो साजिश और षड्यंत्रकारियों द्वारा बाबा साहब के निधन के साथ दफन और लगभग मृत या समाप्त कर दिया गया था या हो चुका था। मान्यवर कांशीराम ने उस मिशन को जीरो से शुरू कर पुनर्जीवित कर दिया। बहुजन आदर्श और बहुजन साहित्य को पहचान दिलाकर मान्यवर कांशीराम ने सम्राट अशोक के भारत का सपना भारत का बहुजन समाज को दिखाया। 

मान्यवर कांशीराम साहेब जीवन भर केवल स्वाभिमान, आत्म सम्मान, सम्मान, आदर, समानता, न्याय और शिक्षा, प्रशासनिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक समानता के लिए ही जिए। अपने पूरे जीवन में उन्होंने अपना जीवन केवल भारत के शोषित, निराश, वंचित, हाशिए पर, गरीब लोगों के न्याय के लिए जिया। स्वर्गीय मान्यावर कांशीराम साहब स्वतंत्रता के बाद भारतीय समाज के लिए एक चमत्कार थे अन्यथा जाति, पंथ, रंग आधारित भारतीय जाति व्यवस्था को तोड़ने के लिए अब तक कुछ भी कल्पना नहीं की जा सकती थी। सच्चे लोकतान्त्रिक मूल्यों और संसदीय प्रणाली की स्थापना करने वाले भारतीय लोकतंत्र के इस महान व्यक्ति को भावभीनी श्रद्धांजलि। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)

लेखक : डॉ कमलेश मीना

सहायक क्षेत्रीय निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र खन्ना पंजाब। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

एक शिक्षाविद्, शिक्षक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता और संवैधानिक विचारक।

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