महिलाएं कदम-कदम पर असमानता का शिकार हो रही है...!

8 मार्च, महिला दिवस 

नारी के सम्मान में हमारा कोई सानी नहीं, महिलाओं के खिलाफ अपराध

लेखक : डॉ. सत्यनारायणसिंह 

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं 

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भारतीय इतिहास के वैदिक युग में स्त्रियों की स्थिति सुदृढ़ थी। उन्हें कुलदेवी का स्थान प्राप्त था। शिक्षा का समान अधिकार मिला था। सम्पति पर भी उनका समान हक था। उनका कार्य क्षेत्र घर तक सीमित नहीं था। सनातन काल से हम गर्व करते थे नारी के सम्मान में हमारा कोई सानी नहीं है। पुरूषों ने अपने लिए जो नियम कानून बनायें स्त्रियों को उनसे वंचित कर दिया। पुरूषों ने उन्हें पराधीन, हेय और अशिक्षित करके घर में कैद कर दिया। उनकी हर सांस पर अपना अधिकार जमा लिया। वे एक निर्जीव पदार्थ के समान हो गई जो अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों के विरूद्ध उफ भी नहीं कर सकती। इसके बावजूद कि भारत में शक्ति के रूप में उपासना होती है भारत में महिलाओं की हालत बदतर है। अपराध और हिंसा का शिकार भी उन्हें सबसे ज्यादा होना पड़ता है। 

आज भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों का आकड़ा बढ़ रहा है। आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में, सार्वजनिक जीवन में नर-नारी समानता की बातें चाहे जितनी की जाए अधिकतर महिलायें इस बदलाव से अछूती है। समान कार्य के समान वेतन की नीति सिर्फ कागजों में है विश्व में कुल उत्पादन में लगभग 160 खरब का योगदान केयर (देखभाल) का है उसमें भारतीय महिलाओं का योगदान 110 खरब का है। राजनीति में महिलाओं का असर अत्यन्त कम है। संसद, मंत्री मण्डल, न्यायपालिका, प्रशासन व मानव विकास के अन्य उच्च स्थानों से वंचित है। भारत में मातृ मृत्युदर, स्वास्थ्य रक्षा, पौषक आहार, देखभाल में कमी के कारण प्रति लाख 540 है। बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या, प्रचलित है, बालिका पोषण, स्वास्थ्य देखभाल बहुत पीछे है। ग्रामीण महिला को स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्णय लेने में भी असमर्थ है। कदम-कदम पर असमानता का शिकार हो रही है। 

नेशनल क्राइम ब्यूरों के 2014 के आंकड़ो के अनुसार पिछले 10 वर्षो में महिलाओं के खिलाफ अपराध दो गुने हुए है। पिछले एक दशक में महिलाओं के खिलाफ 22.40 लाख अपराध दर्ज हुए है। इडिंया स्पेंड के सर्वेक्षण के मुताबित देश में हर घन्टें में महिलाओं के खिलाफ 26 हिंसक मामले दर्ज होते है। हर दो मिनट में एक शिकायत दर्ज होती है। अपराधों में धारा 498 ए के तहत पति या सम्बन्धियों द्वारा की गई क्रूरता, शीलभंग करने हेतु हमला, छेड़-छाड़ के 315074 मामले दर्ज हुए। बलात्कार व दहेज उत्पीड़न के 66000 से अधिक मामले दर्ज हुए। हिंसा के कई रूप और प्रभाव है। स्कूलों में लड़कियों को यौन हिंसा का खतरा रहता है। केवल 10 प्रतिशत महिलायें पुलिस में शिकायत दर्ज कराती है। बलात्कार हिंसा का वीभत्सतम रूप है अधिकतर बलात्कार अपरिचित नहीं, परिचित द्वारा किया जाता है। ऑनर किलिंग, एसिड फेकना, डायन बताकर हत्या की घटनायें भी बढ़ती जा रही है।

अकेली महिला चाहे विधवा हो, तलाक शुदा हो या अविवाहित हो उनसे सामाजिक लाछन जुड़ा होता है। ग्रामीण महिलाओं के पास शौचालय सुविधा नहीं है सामाजिक रूप से बहिष्कृत माना जाता है, उन्हें पराधीनता का सामना करना पड़ता है। लड़किया असुविधाओं, बोझ, भय के डर के तले जीवन बिताती है। दुष्कर्म व यौन उत्पीड़न, मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न के भय का सामना करना पड़ता है। अधिकांश सि़्त्रया गरीब ग्रामीण घरों की अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्गो की होती है। मजदूरी पर जाने वाली होती है। मौका मिलते ही मकान मालिक, बेटा, भाई, बाप, चाचा, भतीजा, ठेकेदार राक्षस बन जाता है। 

छोटी बच्चियों के साथ रेप कर कत्ल किये जाने की वारदात हमारे यहां अब नई बात नहीं रहीं। अजनबी के साथ मानसिक रूप से बीमार करीबी रिश्तेदार से कैसे दूर रखें इसका तरीका भी इजाद करने की आवश्यकता पड़ रही है। हमारे यहां पर यह रिवाज सा बन गया है। कि जो विक्टिम है हम उसके साथ हुए खोफनाक वारदात के लिए उसे जिम्मेदार ठहरा देते है। दुष्कर्म की घटनायें सामाजिक व्याधि है, और अब सामाजिक समस्या बन गई है दुष्कर्म के सम्बन्ध में अनुमान है ऐसे अपराध गरीब, भ्रष्ट्राचारी अशिक्षित लोगों में अधिक होते है। अश्लीलता दुष्कर्म के मामले बढ़ाने में योगदान देती है यौन हिंसा के 80 प्रतिशत मामलों में पॉर्न की मौजूदगी फेडाल ब्यूरों ऑफ इन्वस्टीगेशन ने पाई है। ’थ्योरी एण्ड प्रेटिक्स पार्नो ग्राफी एण्ड रेप‘ में भी व्यवहारिक रूप से दुष्कर्म के रूप में अजाम दिया है।

दुष्कर्म की घटनाओं में पुलिस संवेदनशीलता हमेशा कठ घरें में रही है। अपराध मुक्त व्यवस्था का उत्तरदायित्व पुलिस प्रशासन पर है, इसे स्वीकार कर आचरण में लाना आवश्यक है। दुष्कर्म की घटनायें सामाजिक क्रान्ति से खत्म नहीं हो सकती। पुलिस प्रशासन, न्यायपालिका के उत्तरदायित्व में सुधार को ढूढ़ना होगा। बेटियों  को सशक्त करना आवश्यक हैं। शिक्षण व्यवस्था में, आत्मरक्षा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना, शारीरिक व मानसिक रूप से लड़कियों को सृदृढ़ करना व गुडटच,  बैडटच को पाठ्यक्रम में ऊपर लाना आवश्यक है। पुलिस बल में महिलाओं को बढ़ाने, पीड़ित को तत्काल राहत देने, चिकित्सकों और सरकारी अधिकारियों को अधिक जवाबदेह बनाने, पीड़ित महिलाओें के पुर्नवास, कानूनी व मेडिकल सुविधा देने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने से अत्याचारों का दुस्प्रभाव कम हो सकता है।

एंटीरोमियो स्वकायड, अपराधियों के पोस्टर, फास्टटैक कोर्ट, नारी शक्ति अभियान पैंनिक बटन, विशेष महिला सैल, पुलिस रेस्पांस व्हीकल दुर्घटनाओं, को रोकने में सहायक हो सकते है।

कानूनों को कडाई से लागू कर समय बद्ध कार्यवाही की जानी चाहिए। बर्बरता के मामलों में किसी मानवता या मानवाधिकारों की जगह नहीं होनी चाहिए। वासना के भेडिए जहां चार छः माह की बच्चियों की जिन्दगी बर्बाद करते है तो कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्याय पालिका को मिलकर ऐसे अपराधियों को बिना किसी हिचक कम से कम समय में सख्त से सख्त तुंरन्त सजा देनी चाहिए। जनता अपराधियों से स्वयं निपटेगी तो भारतीय सभ्यता, संस्कृति मानवियता व मानवाधिकार, संवेदनशीलता सब समाप्त हो जाएगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)