विद्वान विज्ञान जिम्मेदारी से करें विकास

लेखक : राम भरोस मीणा 

प्रकृति प्रेमी  व समाज विज्ञानी है। Mobile no - 7727929789 Email - lpsvikassansthan@gmail.com

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विकास की ओर समाज, राष्ट्र को लेकर जानें वाले विद्वान, विज्ञान आज अपने रास्ते से भटकते हुए सृष्टि के विनाश के पथ पर बड़ी रफ्तार से दौड़ लगाने लगें, जो विनाश का रास्ता साफ करते हुए  विकास की बात कर गुमराह कर रहे हैं,  जबकि धरातलीय समाज विज्ञान के अपने विकास के अनुभवों के सामने आधुनिक टेक्नोलॉजी नगण्य है। सामाजिक व्यवस्थाओं से जैसे समाज हटता गया और उसकी जगह सरकार प्राप्त करतें ही कुछेक दशकों में विकास ने सभी सामाजिक नियमों, कानुनों, व्यवस्थाओं को नकारते हुए बिना परिणामों की चिंता किए अपने पथ पर आगे बढ़ते  सभी को इस भौतिक वाद में जकड़ा दिया। जिससे आम व्यक्ति जो विकास की सही परिभाषा भी नहीं जानता, ना ही विकास को समझने की कोशिश किया,  वर्तमान परिस्थितियों में विकास को श्रेष्ठ बताना शुरू किया, वर्तमान में विकास की परिभाषा ही बदल चुकी जिससे हर क्षेत्र में विनाश प्रारम्भ हो गया।

तीनों का अपना अलग महत्व, पहचान कार्य है आज के विद्वानों की तुलना 50 से 100 साल पहले के विषय विशेषज्ञों से करें तब ज्ञात होता है कि आज का ज्ञान केवल पुस्तिकाएं पढ़ कर अर्जित किया ज्ञान है, उन्हें धरातलीय ज्ञान नहीं जबकि विकास के काम हाथ लेने से पहले व्यक्ति को भौगोलिक, पर्यावरणीय अध्यन के साथ भूगर्भीय संरचनाओं तथा स्थानीय परिस्थितियों का गहनता से अध्ययन, शैक्षिक भ्रमण, स्थानीय जनता के विचारों से अवगत होना जरुरी होता है एसा करने वाले विद्वानों की कार्यशैली सैकड़ों वर्षों तक एक ऐतिहासिक उदाहरण बनकर समाज, सरकार, राष्ट्र के सामने अपनी सफलता का परिचय देते रहे वे अपने आप में परिपूर्ण रहें, राजनैतिक, प्रशासनिक, सामाजिक दबाव को नहीं माने वही आज के विद्वान अपने कार्य के प्रति सजगता नहीं दिखा रहे, दबाव में काम करते दिखाई देते हैं, बांधों, सड़कों, पुलों, एतिहासिक भवन निर्माण, पर्यटन विकास, औधोगीकरण, परिवहन जो किए जा रहे उनसे त्राहि मची हुई है, क्योंकि राजनैतिक प्रशासनिक दबाव के साथ कार्य के प्रति आज के विद्वानों की अनैतिक जिम्मेदारी प्रमुख कारण है।

अब बात करें विज्ञान की, विज्ञान ने अपने अनुसंधान, तरक्की इस हद की की सम्पूर्ण जल थल नभ पर अपना एकाधिकार कर लिया, कहीं कोई  स्वच्छंद विचरण नहीं कर सकता, विज्ञान की वज़ह से ना हिमालय सुरक्षित ना गंगा सुरक्षित, ना समुन्दर सुरक्षित ना धरती स्वच्छ, ना  पाताल में पानी बचा ना आकाश में बादलों का रूख़ सही रहा यही विज्ञान ने सिखाया सबका दोहन हुआं और नाम मिला विकास।

वर्तमान विकास ने प्राकृतिक संसाधनों, प्राकृतिक स्थलों, पर्वतों, पहाड़ों, नदियों नालों, समुद्रों के साथ जल जंगल जमीन का उस कदर शोषण किया की आज चारों ओर विनाश के संकेत दिखाई देने लगे हैं। प्रकृति किसी के कन्ट्रोल में नहीं रहना चाहती, ना रहेगी, चाहें विज्ञान कितना ही अपना विकास कर लें, हमें वास्तविक विकास की ओर आगे बढ़ना चाहिए जिससे सभी जीव जन्तु, वनस्पतियां, पेड़ पोंधे, नदी नालें सुरक्षित रह सके तथा प्राकृतिक पर्यावरण संरक्षित सुरक्षित रह सके, अन्यथा बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग, गिरते जल स्तर, बिगड़ते मौसम चक्र, पर्यावरण प्रदुषण के साथ घटते आंक्सिजन की मात्रा से एक दिन  विनाश होना सम्भव है। इससे कोई बचा नहीं सकता।  हमें समय रहते विकास की परिभाषा बदलनी होगी, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना होगा, बढ़ते प्रदुषण, औधोगिक व मानवीय दबाव को कम करना होगा जिससे सभी सुरक्षित रह सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)