रामचरित मानस के अपमान पर लोग चुप क्यों हैं : ज्ञानेन्द्र रा़वत

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार, पर्यावरणविद  एवं राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा समिति के अध्यक्ष हैं

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यह देश हिन्दुस्थान है या कुछ और यह बात मेरी समझ में अभी तक नहीं आ रही। उस हालत में जबकि अक्सर यह कहा जाता है कि यह राम का देश है, कृष्ण का देश है, बुद्ध का देश है, महावीर का देश है और नानक का देश है आदि आदि। तात्पर्य यह कि यह देश हिन्दुओं का देश है। वह देश जिसमें हिन्दुओं की रक्षा के लिए सिक्खों के दशवें गुरू गोविंद सिंह जी ने न केवल अपने नौनिहालों को बलिदान कर दिया बल्कि हिन्दू धर्म की रक्षा की ख़ातिर मरते दम तक संघर्ष किया और यह साबित कर दिया कि सिख हिन्दुओं की रक्षा की दिशा में अपने प्राणों का भी बलिदान करने में कोई कोर कसर नहीं रखेंगे। इतिहास इसका जीता जागता सबूत है। जहाँ तक धर्म का सवाल है, धर्म सदैव मानवता, प्रेम, सौहार्द और सामाजिक सामंजस्य के स्थायित्व का संदेश देता है। 

वह चाहे कोई भी क्यों न हो। कोई भी धर्म आपस में बैर, दुर्भाव व वैमनस्य की शिक्षा नहीं देता। यहां तक कि देश का संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता। समझ नहीं आता कि यह सब जानते-समझते हुए भी देश में कुछ लोग और तबके ऐसे भी हैं जो धर्म की व्याख्या अपने स्वार्थ, हितों को दृष्टिगत रखते हुए अपनी वोटों की राजनीति के स्थायित्व के लिए करने में किंचित मात्र भी संकोच नहीं करते। और तो और वे अपने कृत्यों-आचरण से देश के वातावरण को विषाक्त करने,  भले उससे सामाजिक प्रेम, सौहार्द, सद्भाव और समरसता खण्ड-खण्ड हो जाये, ऐसा प्रयास करने में संकोच नहीं करते। 

ऐसा वह इसलिए भी करते हैं ताकि सत्ता की राजनीति में वे दर-गुजर कर दिये गये हों या फिर हाशिए पर पहुंचा दिये जाने की दशा में पुनः चर्चा में आयें, मीडिया में बने रहें और अपनी जाति के अहं की तुष्टि कर जाति के पहरुआ बन राजनीति की रोटी सेंकते रहें। ऐसे स्वार्थी, सत्तालोलुप,विकृत मानसिकता वाले और दिग्भ्रमित लोगों की देश में कमी नहीं है जो यदा-कदा अपने आचरण से,टिपप्णी कर या फिर मतांतरण के जरिये देश के जनमानस को उद्वेलित कर समाज में भ्रम पैदा करते रहते हैं। यह भी कटु सत्य है कि मतांतरण भी ऐसे लोगों का इस दिशा में राजनीति का एक अमोघ अस्त्र बन चुका है। 

बीते दिनों एक समय उत्तर प्रदेश में मायावती नीतित बसपा सरकार व तदुपरांत भाजपा सरकार में मंत्री पद सुशोभित करने वाले जो वर्तमान में समाजवादी पार्टी के नेता, विधान परिषद् सदस्य व हाल ही में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बनाये गये हैं, श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने ऐसा ही किया है जिसके चलते समूचे देश के हिंदू धर्मावलम्बियों में रोष तो व्याप्त हुआ ही, उनके धार्मिक ग्रंथ रामचरित मानस,जिसकी चौपाइयां उनके मन की पीड़ा हर लेती हैं, के अपमान से क्षुब्ध हो वे आंदोलित हो सड़क पर आ गये हैं, हिन्दू संत-पुरोहित और आचार्य संतों पर उनकी टिप्पणी से शास्त्रार्थ की चुनौती देने लगे हैं।संतो ने स्वामी प्रसाद से प्रयागराज मेला क्षेत्र में आकर मानस की हर चौपाई के मर्म पर चर्चा करने की चुनौती भी दे डाली  है और ऐसा न करने पर उनके धार्मिक, सामाजिक बहिष्कार की चेतावनी दी है। 

दरअसल स्वामी प्रसाद मौर्य ने विगत दिनों हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ तुलसीदास कृत रामचरित मानस पर अमर्यादित टिप्पणी की थी। उनका कहना है कि रामचरित मानस में वर्णित "ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, यह सब ताड़न के अधिकारी " नामक चौपाई में एक विशेष जाति की बड़ाई व पिछड़ी -अनुसूचित जाति का अपमान किया गया है। स्वामी प्रसाद यहीं नहीं रुके, उन्होंने अपने गृह जनपद प्रतापगढ़ में कालाकांकर के परियांवा में आयोजित एक स्वजातीय सामूहिक विवाह समारोह में यह कहकर और घमासान मचा दिया कि उन्हें इस मसले पर देश के 80 फीसदी लोगों का समर्थन हासिल है। 

उनके अनुसार तुलसीदास को देश की महिलाओं का अपमान करने का किसने अधिकार दिया है। उन्होंने एक चौपाई का और उल्लेख किया जिसमें कहा गया है कि "पूजहिं विप्र सकल गुण हीना, शूद्र न पूजहु वेद प्रवीना" इसके साथ ही स्वामी प्रसाद के उस ट्वीटर ने जिसमें संतों,महंतों,धर्माचार्यों व जाति विशेष के लोगों को आतंकवादी, जल्लाद व महाशैतान जैसे शब्दों से संबोधित किया गया है, ने आग में घी डालने का काम किया है। स्वामी प्रसाद की इस टिप्पणी पर प्रयागराज में संतों व सनातनी धर्मावलंबियों ने सपा मुखिया अखिलेश यादव से कार्यवाही की मांग की है। परमहंस प्रभाकर जी महाराज का कहना है कि इस मसले पर सपा मुखिया की चुप्पी साध लेने से प्रतीत होता है कि स्वामी प्रसाद के बयान पर उनकी सहमति है। वहीं सपा महासचिव शिवपाल सिंह यादव के इस बयान कि यह स्वामी प्रसाद का व्यक्तिगत बयान है,  संतों में खासी नाराजी है। 

उनके अनुसार अखिलेश द्वारा स्वामी प्रसाद को महासचिव पद देना, कई सवाल खडे़ कर रहा है। काशी सुमेरू पीठाधीश्वर स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने ऐसे व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार किये जाने की अपील की है। बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र शास्त्री  का कहना है कि रामचरित मानस का अपमान करने वाले को ऐसा जबाव देना चाहिए ताकि फिर कोई लौटकर टेड़ी निगाह से न देख सके। ऐसे लोग जो हमारे राष्ट्रीय ग्रंथ रामचरित मानस का अपमान करते हैं, उन्हें देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है। 

अयोध्या स्थित हनुमान गढी़ के महंत राजू दास कहते हैं कि राजनेताओं का काम सभी को जोड़ना होता है, समाज को जाति-मजहब में बांटना नहीं। स्वामी प्रसाद को यह भलीभांति समझ लेना चाहिए कि यह सनातन धर्म में ही संभव है कि रामचरित मानस, भगवान राम, सीता मइया, पवनसुत हनुमान आदि पर टिप्पणी करके वे सुरक्षित हैं। इस बारे में एक महिला पत्रकार का कहना है कि ऐसा इसी देश में संभव है। उनके अनुसार स्वीडन में कुरान जली तो दुनिया के 65 देश उसके विरोध में उतर आये। लेकिन यह विडम्बना नहीं तो और क्या है कि हमारे देश में रामचरित मानस जलायी गयी लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है। 

हालात की गंभीरता में वृंदावन के चिरैय्याबाग के बस अड्डे में हुई घटना ने उस समय और बढ़ोतरी कर दी जबकि बीते रविवार को वहां स्वामी प्रसाद समर्थकों जो अपने को अखिल भारतीय ओ बी सी समाज का प्रतिनिधि बता रहे थे द्वारा रामचरित मानस की प्रतियां जलायीं गयीं। और प्रतापगढ़ उ.प्र. के सपा विधायक आर के वर्मा द्वारा रामचरित मानस की चौपाइयों को संविधान विरोधी बताते हुए उन्हें ग्रंथ से व संत तुलसीदास के पाठ को पाठ्यक्रम को हटाने की मांग की गयी। उनके अनुसार इससे आज का पिछडा़, अनुसूचित, महिला वर्ग व संत समाज अपमानित होता है। 

गौरतलब है कि हिन्दुओं का पवित्र ग्रंथ रामचरित मानस और उसकी चौपाइयां संविधान विरोधी कैसे हो गयीं। जबकि हमारे संविधान के प्रथम पृष्ठ पर ही भगवान श्री राम का अंकन है। इस बारे में बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री की मानें तो जिस संविधान के प्रथम पृष्ठ ही भगवान राम और उनके आदर्शों से प्रारंभ होता हो, उन भगवान राम की जीवन गाथा श्री रामचरित मानस जो हमारे देश का पावन ग्रंथ है, वह संविधान विरोधी कैसे हो सकता है। उसके प्रति ऐसे कृत्य घोर निंदनीय हैं। यह एक सुनियोजित षडयंत्र का हिस्सा हैं। अब बहुत हो चुका। ऐसे तत्वों के खिलाफ देश के सनातन वर्ग को अब एक होने का समय आ गया है। जब तक तन में प्राण हैं, ऐसे कृत्य करने वालों का हम पुरजोर विरोध करते रहेंगे। 

जहां तक इस प्रकरण में प्रशासन और हिन्दू धर्मावलंबी भक्तों का प्रश्न है, इसके खिलाफ देश के अलग- अलग शहरों में स्वामी प्रसाद मौर्य, उनके समर्थकों, ओ बी सी महासभा के सदस्यों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराये गये हैं और कुछ गिरफ्तारियां भी की गयी हैं। कुछ की तलाश में छापे भी डाले जा रहे हैं। इस बाबत रिपोर्ट दर्ज कराने वाले हिन्दू धर्मावलम्बियों का कहना है कि इसके पीछे हिंदू समुदाय की भावना को आहत करने, सांप्रदायिक दंगा व विद्वेष फैलाने, हिंसा के लिए लोगों को उकसाने की सोची-समझी साजिश है। ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए।  वहीं बसपा प्रमुख बहन मायावती भी मानती हैं कि सपा नेता की यह टिप्पणी घृणित राजनीति का हिस्सा है। 

रामचरित मानस की आड़ में सपा का यह रंग-रूप बेहद दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। यह आगामी चुनावों में जनता के ज्वलंत मुद्दों के बजाय नये नये विवाद खड़ा कर, जातीय विद्वेष व हिन्दू-मुस्लिम भावनाओं को भड़काकर नफरत फैलाकर संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ के लिए  वोटों को पोलराइज करने की साजिश है। साथ ही इसको वह सपा-भाजपा की मिलीभगत करार देने से भी नहीं चूकतीं। वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष पूर्व मंत्री श्री ओम प्रकाश राजभर कहते हैं कि भगवान राम और रामचरित मानस पर ऐसी टिप्पणी कर कुछ नेता चर्चा में बने रहना चाहते हैं। वहीं उ०प्र० की माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती गुलाब देवी कहती हैं कि रामचरित मानस पवित्र ग्रंथ है।इस पर वही इंसान टिप्पणी करेगा जिसमें इंसानियत नहीं होगी। भगवान पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस का हश्र सभी देख चुके हैं। 

लोग शूद्र के अपमान व भाजपा के विरोध की बात करते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि भाजपा ने ही मुझ जैसी शूद्र को मंत्री बनाया,  सम्मान दिलाया और ऊंचाइयों पर पहुंचाया। शूद्र का सम्मान करने का उदाहरण भाजपा से ज्यादा कहां मिलेगा। आज मैं इस लायक हूं कि मैं अग्रिम पंक्ति में बैठ सकती हूं। इसका श्रेय भाजपा को जाता है। रामचरित मानस का वही लोग अपमान कर रहे हैं जिन्हें जनता नकार चुकी है। ऐसे लोगों का कोई वजूद नहीं है। आने वाला समय उन्हें और सबक सिखा देगा। 

असलियत में यह रार फिलहाल खत्म नहीं  होने वाली। धर्म और धर्म ग्रंथ के अपमान करने वालों के हश्र से सभी भलीभांति परिचित हैं। ऐसे लोगों की दुर्गति से इतिहास भरा पड़ा है। सपा ने ही ऐसा किया है, यह सच नहीं है। बसपा को भी जनता ने नकार दिया है। राजद भी सपा से पीछे नहीं है। उसके नेता भी इस दिशा में कीर्तिमान स्थापित करने की होड़ में हैं। इन दोनों के खिलाफ विश्व हिंदू परिषद इनकी मान्यता रद्द करने बाबत चुनाव आयोग से शिकायत कर चुका है और देश के बहुतेरे धार्मिक-सामाजिक संगठन इनके खिलाफ मुखर हो उठे हैं। 

हो कुछ भी और रामचरित मानस की चौपाइयों पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भले न थमे लेकिन इतना सच है कि इसी रामचरित मानस की चौपाई को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की गाइड लाइन में शामिल कर मन की पीड़ा हरने का इलाज माना गया है जिसे नकारा नहीं जा सकता। वही उत्तर प्रदेश इसका प्रमाण है जहां इतना बावेला मचा हुआ है। वहीं के अस्पतालों में बने कक्षों में "कहेहु तें कुछ दुख घट होई, काहि कहों यह जान न कोई" अंकित यह चौपाई क्लीनिकल साइकोलाजिस्ट मनोरोगियों को उनके अंदर के दुख को समझ कर, उनके मन को शांत और अवसाद से मुक्त होने में अहम भूमिका निबाह रही है। 

गौरतलब यह है कि वह चाहे गोरखपुर हो, बरेली, अलीगढ़, मेरठ, मैनपुरी आदि कई मंडलों में तकरीब बीस हजार से ज्यादा रोगी अवसाद मुक्त हो चुके हैं। खासियत यह कि इससे मानसिक तनाव, सीज्रोफेनिया, फोबिया, बाइपोलर डिस आर्डर, डिमेंशिया, एकाग्रता में कमी, हाइपोकांड्रियोओसिस सहित अनेक रोगों से ग्रस्त रोगियों की काउंसिलिंग कर रोग मुक्त करने का प्रयास किया जा रहा है। फिलहाल यह मसला थमता नहीं नजर आ रहा। जबकि जिस शूद्र शब्द को लेकर इस समय बावेला मचा है वह वास्तव में शूद्र नहीं क्षुद्र था जो 1880 के बाद भूल से या जानबूझ कर क्षुद्र को शूद्र बना दिया गया। 

इसका खुलासा पूर्व पुलिस अधिकारी, प्रख्यात लेखक और महावीर मंदिर ट्स्ट पटना के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने किया है। उन्होंने इसके प्रमाण में 1810 में कोलकाता के विलियम्स फोर्ट से प्रकाशित और पंडित सदल मिश्र जो प्रकाण्ड विद्वान और रामचरित मानस के प्रख्यात प्रवचनकर्ता थे, के द्वारा संपादित श्री रामचरित मानस का उदाहरण दिया है जिसमें यह पाठ "ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी" दिया गया है। आचार्य कुणाल ने 1830 में कोलकाता स्थित एशियाटिक लियो कंपनी द्वारा प्रकाशित "हिंदी एण्ड हिंदुस्तानी सेलेक्शंस" नामक पुस्तक का भी उद्धरण दिया जिसमें "ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी" का ही उल्लेख है। कुल मिलाकर निष्कर्ष यह कि राम का विरोध करने वाले यह भूल जाते हैं कि तुलसी के राम देश के लोगों के मन में, कण-कण में बसते हैं। वह बात दीगर है कि हिंदू सहिष्णु हैं। इसे उनकी कमजोरी समझना बेवकूफी के सिवाय कुछ नहीं। उन्हें उनके दिलों से निकालने की साजिश कभी कामयाब नहीं होगी। बरदाश्त की भी कोई सीमा होती है। कोई कुछ भी भले कर ले, इस देश के जनमानस में गूंजेगा तो श्रीराम ही। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)