कोई भी कविता कभी मरती नहीं
लेखक : नवीन जैन
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
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ये भी सनम
कोई बात हुई
मिलते ही अनमोल
फुरसत के क्षण
तुम कागद कारे
करने बैठ जाते हो ।
छोड़ो भी इनको
इस गुलाल उड़ाते नशीले
मौसम का कहा मानो
आओ, मेरी रेशमी
जुल्फों से खेलो
मेरे बदन की
खुशबू में
रच_पच जाओ
मुझे चांदनी रात की
अनुपम सौगात दो।
ये जानम
कोई काम है
जब देखो
किताब_पत्रिका
में डूबे रहते हो ।
पढ़ते_पढ़ते
गंभीर मुद्रा बनाकर
सोच के ऊंचे स्तूप पर
जा बैठते हो
छोड़ो इन मुई सौतों को
उतर मेरी काली घटाओ में
खेलो इनसे
खिलंडर बनकर
थक कर चूर हो जाओ ।
बरसेगी घटा
भीग कर उतारो
सप्ताह की थकान
सो जाओ
मेरी जुल्फों की
घनी छाव में।
छोड़ो इस जलाऊ
दारू की बोतल को
आओ मेरे रूप
के पाताल में उतरो
मेरे रूप को चखो
इस चांदनी रात में
इक प्रेम_कथा लिखो,
क्योंकि लिखने में
जो सुख है
वो दिखने में नहीं
सही है कि अब हम सभी की उम्र थकने की है, लेकिन चूंकि शब्द ही ब्रह्म है, इसलिए कोई भी कविता कभी मरती नहीं। उसे जिंदा रहना होगा। इसके सिवा कोई उपाय नहीं है। प्यार जब तक ज़िंदा है ,विश्वास को कोई आंच नहीं आ सकती।