वर्तमान विश्व परिदृश्य में गांधी की सार्थकता : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

30 जनवरी के अवसर पर

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)

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स्वतंत्रता, समानता, बन्धुतत्व के मूल्यों के हामी समावेशी राष्ट्रवाद में आस्था रखने वाले, बहुवाद, धर्मनिरपेक्षता, विविधता व अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा में पूर्ण विष््रवास रखने वाले महात्मा गांधी को गुजरे आज 68 साल हो गये।

इन वर्षो में दुनिया में प्रत्येक क्षेत्र में बदलाव आया। आज धर्म का चोला पहने घृणा की चिन्तनधारा, सामाजिक वातावरण में जहर घोल रही है। चारों ओर हिंसा का बोलबाला है। वैश्विक राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक धर्म का इस्तेमाल अपने-अपने राजनैतिक एजेन्डे को लागू करने के किया जा रहा हैं। अपने धर्म की स्थापना के नाम पर युद्ध करने को तैयार है। दूसरे धर्मावलम्बियों के विरूद्ध आक्रामक भाषा का इस्तेमाल कर रहे है, एक दूसरे के खिलाफ नफरत फैला रहे है। इस्लामिक स्टेट के खूनी पंजे 62 देशों में फैल चुके हैं। पश्चिम एशिया और उत्तर अफ्रिका के अनेक देशों में इस्लामिक स्टेट के कारण खून की नदियां बह रही है। सैकड़ों की संख्या में निर्दोष लोगों का खून बह रहा है। हिंसात्मक बारदात में लिप्त लोग अन्य अनजान एवं मासूम लोगों को मार रहे हैं। लोगों की हत्या करने केे गीत गाते हेै, हत्या ही उनका सब से सुरीला गीत है। अनेक युवा इस्लामिक स्टेट के विचारों से प्रभावित हो सब कुछ छोड़कर खूनी आन्दोलन से जुड़ रहे हैं। आज इस्लाम व आधुनिक दुनिया एक दूसरे के विरोधी बन गये है।

विश्व शांति के लिए गांधी के विचार वर्तमान परिस्थितियों में सर्वाधिक सार्थक है। पूरा विश्व आज गांधी को मान्यता दे रहा है। नागरिक स्वतंत्रता, समानता और शुद्ध राजनीतिक आचरण के लिए जिस निर्भिकता से, असहिष्णु विरोधियों का अत्याचार सहते हुए लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना के लिए संघर्ष किया उससे पूरी दुनिया प्रभावित है। 2007 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने अन्तर्राष्ट्रीय दिवस घोषित किया। अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा आज के हालात में गांधी के विचारों को सार्थक मानते है। अहिंसा व राष्ट्रवाद की पुनव्र्याख्या के उनके महान योगदान को याद किया जा रहा है। अहिंसा उनके सिद्धांतों का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। वे अपने सिद्धांतों (अहिंसा व सत्य) को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहते थे। गांधी के धर्म की आस्था उनके नैतिक पक्ष में थी, उसके बाहरी स्वरूप से नहीं, किसी व्यक्ति की राष्ट्रीयता का आंकलन करने का मानक नहीं है। धर्म व्यक्ति व ईश्वर के बीच का व्यक्तिगत मामला नहीं है। गांधी के लिए धर्म एक नैतिक शक्ति था। मानवीय मूल्यों का एक ऐसा संकलन जो हर व्यक्ति का पथ प्रदर्शक बन सकता है।

गांधी जी ने सत्य और अहिंसा को ईश्वर का दर्जा दिया, धर्म व आचरण की अनौखी परिभाषाएं दी। अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन को दुनिया का सबसे बड़ा जन आन्दोलन बनाया। गांधी धर्म विरोधी नहीं बल्कि धर्म के नाम पर राजनीत के विरोधी थे। गांधी के अनुसार ‘‘धर्म प्रत्येक नागरिक का व्यक्तिगत मामला है।’’ परन्तु धर्म विहिन राजनीति ऐसी गन्दगी है जिससे दूर रहना श्रेयस्कर है। धर्म से विलग राजनीति ऐसी लाश है जिसे जला देने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।

अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म की कट्टरता के विरूद्ध विद्रोह किया परन्तु गांधी पूरे समाज को एक साथ सुधार की दिशा में ले जाना चाहते थे। गांधी के धर्म व साम्प्रदायिकतावादियों के धर्म प्रति दृष्टिकोण में मूलभूत अन्तर था। गांधी ने कहा था, मैं स्वयं को उतना ही अच्छा मुसलमान समझता हूं जितना इच्छा हिन्दू मैं हूं। मैं स्वयं को उतना अच्छा ईसाई और पारसी भी मानता हूं। जबकि साम्प्रदायिक ताकतों की राजनीति का आधार केवल धार्मिक पहचान है। उन्हें मानवीय मूल्यों व सामाजिक सुधारों से कोई मतलब नहीं है।

विश्व परिदृश्य से भारत भी अछूता नहीं है। यहां भी प्रजातांत्रिक व धर्म निरपेक्ष चरित्र के साथ छेड़छाड़ के प्रयास प्रारम्भ हो गये है। 12 प्रान्तों में इस्लामिक स्टेट के खूनी पंजे फैलाने के पूर्ण प्रयास हो रहे हैं। पाकिस्तान निर्माण के बाद अधिकांश साम्प्रदायिक मुस्लिम नेता पाकिस्तान चले गये थे, परन्तु जो साम्प्रदायिक तत्व भारत में रह गये वे समय-समय पर अनावश्यक मुद्दे उठाकर उकसाने का काम कर रहे है। आज वर्तमान में स्वाधीनता संग्राम के जज्बे और धर्म आधारित राष्ट्रवाद के बीच संघर्ष प्रारम्भ हो गया है। यद्यपि भारत में बहुवाद लगभग सभी राजाओं और बादशाहों की नीति का अंग रहा है। साहित्य, कला, वास्तुकला, भाषा, संगीज सभी पर मिली-जुली विरासत का असर है।

आजादी के बाद सामंती से आधुनिक लोकतांत्रित ढांचे की प्रक्रिया की शुरूआत हुई। औद्योगिकरण ओर आधुनिक शिक्षा ने विकास की दौड़ को तेज किया। धर्म की जकड़न तनिक कमजोर पड़ी। अल्पसंख्यकों, दलितों को समान दर्जा मिला। महिलायें सार्वजनिक जीवन में हिस्सा लेने लगी। परन्तु पुनः अब समाज को धार्मिक आधार पर ध्रुवित करने, श्रेष्ठ वर्ग का प्रभुत्व स्थापित करने, जातिगत व लैंगिक उंच-नीच के भाव स्थापित करने के प्रयास प्रारम्भ हो गये। दक्षिणपंथी गांधी, अम्बेडकर, भगतसिंह की धर्म निरपेक्ष नीति को छद्म धर्म निरपेक्ष कहने लगे हैं, उनकी गतिविधियां बढ़ रही है।

गांधी धर्मनिरपेक्ष भारत के पक्षधर थे। ऐसा भारत जिसमें सभी धर्मो के लोगों की महत्वकांक्षा के लिए स्थान हो। गांधी की राजनीति में धार्मिक पहचान का महत्व नहीं था। उनके समय मुस्लिम लीग का सपना इस्लामिक राष्ट्र था, तो हिन्दुवादियों का हिन्दू राष्ट्र लक्ष्य था। गांधी के राजनैतिक लक्ष्य, समाज के प्रति दूष्टिकोण व सामाजिक मानवीय मूल्यों के प्रति नजरिये में मूलभूत अन्तर था। गांधी के समय भी साम्प्रदायिक एवं दक्षिणपंथी तत्व दलितों व महिलाओं के शिक्षा ग्रहण व सामाजिक जीवन में हिस्सा लेने के विरूद्ध थे, परन्तुु गांधी ने इसे प्रोत्साहन दिया। दक्षिणपंथी अहिंसा के उनके सिद्धान्त को भी घृणा की दृष्टि से देखते है। वे आज भी दुनिया में गांधी के मूल्यों में बढ़ती दिलचस्पी से बैचेन है। आज भी दक्षिणपंथी अन्य धर्मावलंबियों के विरूद्ध आक्रमक भाषा का इस्तेमाल एक दूसरे के खिलाफ नफरत फैला रहे है, अलग-अलग बातों से जहर उगल रहे हैं।

दक्षिणपंथियों में भी दो तबके है। गर्म दक्षिणपंथी तबका अलग-अलग बहानों से जहर उगल रहा है। असहिष्णुता का वातावरण पैदा कर रहा है। नरम दक्षिणपंथियों का उद्देश्य मीडिया, शिक्षण संस्थाओं और बाबाओं की मदद से धार्मिक सांस्कृतिक विमर्श पर हावी होना है। धार्मिक, सांस्कृतिक वर्चस्व स्थापित करना और जीवन पद्धति, विश्वासों व परम्पराओं की विविधता को प्रभावित करना बन गया है। नरम दक्षिणपंथियों के सत्ताहीन होने के बाद गरम दक्षिणपंथियों के अब हौंसले बुलन्दी पर है और प्रतिदिन अधिकाधिक हिंसक और आक्रामिक होते जा रहे है। उन्हें कानून का कोई डर नहीं रहा। जो लोग गरीबी, भुखमरी, बीमारी, बेरोजगारी के दलदल में है और गहरे दलदल में जा रहे है, उनमें गर्व का झूंठा भाव पैदा कर रहे है।

आजादी के बाद देश में गांवों की स्थितियों में बदलाव हुआ। पुरानी अर्थ व्यवस्था बिखर गई, नई का निर्माण नहीं हुआ उससे असंतोष बढ़ा, बेकारी बढ़ी। दक्षिणपंथी सहारा देने के बजाय ईश्वर की तरफ देखने की प्रेरणा देते है। किसान ग्रामीण सामंतशाही के चंगुल से मुक्त हुए, परन्तु शहरों में जाने से आवश्यकताऐं बढ़ी, उनको पूरा करने के लिए, अनुपात में बीमारियां, भुखमरी से व्यवस्था के प्रति आक्रोश बढ़ा। गरीबी, बेकारी और भूख देश की मूल समस्याएं है और उनसे मुकाबला किये बगैर आम जनता का सही मायने में सशक्तिकरण संभव नहीं है। 30 प्रतिशत युवकों के पास काम नहीं है। उच्च शिक्षा प्राप्त युवकों को भी उनकी योग्यतानुसार काम नहीं मिला। इसलिए भी असंतोष फूट रहा है, हिंसात्मक वातावरण बन रहा है।

गांधी हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। उन्होंने कहा था ‘‘यदि हम स्वाधीन होना चाहते हैं तो विभिन्न सम्प्रदायों के बीच हमें एक अटूट श्रंखला बनानी होगी। पारस्परिक मतभेदों की खबर से उन्हंे चोट पहुंचती थी। उन्होने कहा था आप लोगांे मंे मेरे प्रति किसी तरह का प्रेम हो तो आप एक है, यही मेरा निवेदन है।’’ हिन्दू, मुसलमान व अन्य लोग अपनी घृणा का अंत करें। दुर्बलता से भय का जन्म होता है, भय से घृणा आती हैं । हम भय का त्याग करें, झगडे समाप्त हो जायेगें। हमारे सारे झगडे ख्त्म हो जायेगें यदि हमारे दोनों दलों में से एक भी भय करना छोड दे। मैं जानता हूॅ कि अन्दर ही अन्दर हम एक दूसरे को भाइयों की तरह प्यार करते हैं। एक होने की आकुल आकांक्षा का हिस्सेदार बनने के लिये मैं अब दोनों दलों को पुकारता हूॅ।‘‘

कट्टरपंथियों व साम्प्रदायिक दृष्टिकोण रखने वाले दलों व नेताओं से वे हमेषा दूरी बनाये रहे। उनके दृष्टिकोण में ऐसे तत्व ही इस देष को गुलाम बनाये रखने व पीछे धकेलने तथा अषांति पैदा करने के लिये जिम्मेदार रहे हैं। गांधी अहिंसक तरीके से पूंजीपतियों का नहीं, पूंजीवाद का नाश करना चाहते थे। उनके अनुसार कुछ लोग हिंसा की ज्वाला चारों ओर जलाकर स्वयं उसके बीच में सुखी रहना चाहता है, यह संभव नहीं है।

गांधी ने कहा था ‘‘शुद्ध साधन से स्वतंत्रता मिलती है तो मुझे मान्य है। युद्ध या हिंसा से मिलती है तो आज से मैं अपने संघर्ष को त्यागने को तैयार हूं। व्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वप्रथम मान्य है।’’ गांधी अहिंसा समन्वित सर्वोदयी आर्थिक व्यवस्था के पुरोधा है। वे साधन शुद्धि पर अटल विश्वास रखते थे। उनका लक्ष्य अहिंसात्मक तरीके से स्वराज प्राप्त करना था।

प्रसिद्ध लेखक रोमां लोलां के अनुसार गांधी की सुपरिचालित अहिंसा में एक विप्लवी शक्ति निहित थी। वे सारे मनुष्य समाज का शत्रु युद्ध, फासिज्म, सामरिक और औद्योगिक क्षेत्र का पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, सामाजिक अन्याय को मानते थे। गांधी के प्रति मेरी स्नेहपूर्ण श्रद्धा ज्यों की त्यों बनी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)