तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति का पहला शक्ति प्रदर्शन

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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तेलंगाना में सत्तारूढ़ दल, जो हॉल ही में तेलंगाना राष्ट्र समिति से भारत राष्ट्र समिति हो गया है,  ने नाम बदलने के बाद अपना पहला और बड़ा शक्ति प्रदर्शन कर यह संकेत दे दिया है कि वह अब केवल तेलंगाना का ही राजनीतिक दल नहीं है बल्कि एक राष्ट्रीय दल बनने के दिशा में कदम बढ़ा चुका है। इसके नेता तथा राज्य के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने इस शक्ति प्रदर्शन में यह ऐलान कर दिया कि वे और उनका दल अब देश में गैर कांग्रेस और गैर बीजेपी के अलावा तीसरा विकल्प देने के लिए तैयार है। 

हालाँकि वे गैर बीजेपी  और गैर कांग्रेस दलों के सभी बड़े दलों नेताओं को इस शक्ति प्रदर्शन में शामिल होते देखना चाहते थे लेकिन ऐसा हो नहीं सका। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि पश्चिम बंगाल  की मुख्यमंत्री तथा वहा की सत्तारूढ़ टी एम सी के सुप्रीमो ममता बैनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी इस प्रदर्शन के लिए  तेलंगाना पहुंचेगे लेकिन इन तीनों में से कोई भी वहां नहीं पंहुचा। इसी तरह पडोसी राज्य तमिलनाडु के मुख्यमत्री और सत्तारूढ़ दल द्रमुक के मुखिया एम स्टालिन ने इस शक्ति प्रदर्शन से अपनी दूरी बनाये रखी बीएसपी के सुप्रीमो  मायावती भी इससे दूर रहीं। लेकिन आशा के अनुरूप इस प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान तथा केरल के मुख्यमंत्री विजयन पिनराई  मंच पर उपस्थित थे। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी राजा ने भी इसमें भाग लिया।   

जिन नेताओ को इस प्रदर्शन के बुलाया और वे नहीं आये, ऐसा उन्होंने राजनीतिक कारणों के चलते चलते किया। जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने  बीजेपी से नाता तोडा और आर जे डी तथा कांग्रेस का हाथ थामा तो उन्होंने यह घोषणा की थी कि वे बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की एकता के लिए कम करेंगे। वे बड़े जोश से अरविन्द केजरीवाल तथा के चंद्रशेखर राव से मिलने पहुंचे। पर जब  राव ने उन्हें अपनी रैली में आने का निमंत्रण दिया तो उन्होंने कहा बताया जाता है कि उनका कांग्रेस के साथ गठबंधन है इसलिए वे किसी ऐसे मंच पर नहीं आएंगे जो कांग्रेस के खिलाफ हो। तमिलनाडु में भी कांग्रेस पार्टी द्रमुक के साथ सत्ता में सहभागी है। पटनायक कहने को तो कांग्रेस और बीजेपी से सामान दूरी बनाये रखने का दावा करते है लेकिन  वे और उनका दल मोटे तौर पर बीजेपी का साथ देता रहा। इसी प्रकार पडोसी राज्य आन्ध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री जगन रेड्डी और उनका क्षेत्रीय दल वाई एस आर कांग्रेस भी आमतौर पर बीजेपी के नज़दीक मानी जाती है। 

लेकिन सबसे अधिक आश्चर्य कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री तथा जनता दल (स) के नेता एचडी कुमारस्वामी का इस शक्ति प्रदर्शन से दूर रहना था। के चन्द्रशेखर राव ने जब राष्ट्रीय सत्र पर तीसरा मोर्चा बनाने के मुहीम शुरू की तो वे सबसे पहले देश के पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल (स) के नेता एच डी, देवेगौडा, जो कुमारस्वामी के पिता हैं, को मिलने बंगलूरु गए थे। देवेगौडा न केवल इसके लिए आशीर्वाद दिया बल्कि वायदा किया कि उनकी पार्टी  तीसरे मोर्चे का हिस्सा बनेगी। केवल इतना ही नहीं जब कुछ समय पूर्व राव ने अपनी पार्टी का नाम बदलने के लिए पार्टी के नेताओं का सम्मलेन किया तो  कुमार स्वामी उसमें भाग लेने गए थे। 

अब अचानक उनके रुख बदलने से सबको आश्चर्य हुआ है। कर्नाटक में पिछले विधान सभा चुनाव में किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। राज्य में कांग्रेस और जनता दल (स) की मिलीजुली सरकार बनी थी। जनता दल (स) की कम सीटों मिलने के बावजूद कांग्रेस ने कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री पद देना मान लिया था। यह सरकार लगभग एक साल ही चल पाई तथा बीजेपी दल बदल करवा कर सत्ता में आ गई। अब राज्य में विधानसभा चुनाव अप्रैल-मई में होने वाले है। 

अधिकतर राजनीतिक पर्यवेक्षक यह मानकर चल रहे है कि पिछली बार की तरह इस बार भी न तो कांग्रेस और न ही बीजेपी को बहुमत मिलेगा। ऐसी स्थिति में कुमारस्वामी सौदेबाजी कर फिर सत्ता में आने की उम्मीद कर कर रहे है। वे इस समय कांग्रेस और बीजेपी  दोनों से नजदीकियां रखने की नीति पर चल रहे है। दूसरा उनको भय है कि भारत राष्ट्र समिति राज्य कर्नाटक के उन सीमावर्ती इलाकों में उम्मीदवार खड़े  कर सकती है जहाँ तेलगुभाषी बड़ी संख्या में रहते है। ऐसी कुल 45 सीटें बताई जाती है। इन इलाकों में जनता दल (स) को काफी समर्थन मिलता रहा है। इसलिए उनकी पार्टी को नुकसान हो सकता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)