राष्ट्र रक्षा मानव का सर्वोपरि धर्म

लेखक : प्रोफेसर डॉ. सोहन राज तातेड़ 

(पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालयए राजस्थान)

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जिस देश के नागरिकों में अपने देश के ऊपर गर्व नहीं होता वह मनुष्य नहीं बल्कि पशु हैं और मृतक समान हैं। राष्ट्र की रक्षा मानव का सर्वोपरि धर्म है। यदि राष्ट्र सुरक्षित रहेगा तो हम सुरक्षित रहेंगे। इसलिए राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानकर हमें कार्य करना चाहिए। राष्ट्र की सबसे छोटी इकाई मनुष्य हैं। मनुष्यों का समूह समाज कहलाता है और पशुओं का समूह समज कहलाता है। मानव विवेक युक्त प्राणी है। पशु इन्द्रिय जगत के स्तर पर जिता है। मानव और पशु में अन्तर यह है कि मानव में बुद्धि और विवेक रहता है। पशुओं में विवेक नहीं होता। चिन्तन और मनन, हित और अहित, अच्छा और बुरा, की समझ मनुष्य में होती है। इसलिए मनुष्य को कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जो उसके चरित्र के विपरित है। 

हमारा देश भारत हैं और हम भारत के नागरिक है। प्राचीनकाल में इसे आर्य देश कहा जाता था। प्राचीन भारत का इतिहास बहुत ही गौरवशाली है। प्राचीनकाल में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। सोने की चिड़िया कहे जाने से तात्पर्य है कि हमारा देश भारत प्राचीनकाल में धन-धान्य से सम्पन्न था। यहां पर आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और शैक्षणिक सम्पन्नता थी। बाहर के लोग शिक्षा ग्रहण करने भारत में आते थे। फाह्यान, ह्वेनसांग, मेगस्थनीज जैसे विदेशी भारत में आकर शिक्षा ग्रहण किये और भारत के उन्नत आर्थिक और शैक्षणिक दशा का वर्णन किये है। उनका वृतान्त यह बताता है कि प्राचीनकालीन भारत सुसमृद्ध और सांस्कृतिक रूप से बहुत ही उन्नत दशा में था। आज अगर हम भारत के इतिहास के बारे में बात करते हैं तो सबसे पहले अंग्रेजों की गुलामी का ही प्रसंग सुनने को मिलता है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि तत्कालीन भारतीय शाषक राष्ट्रहित की चिंता न करके खाओ पियो और मस्त रहो की नीति में विश्वास करते थे। इसी का परिणाम रहा कि अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बना दिया। 

अंग्रेजों ने भारत की आर्थिक स्थिति को बहुत ही जीर्ण-शीर्ण कर दिया था। इससे पूर्व का भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था। देश की रक्षा के लिए देशवासियों को मर-मिटने के लिए तैयार रहना चाहिए। देश के नागरिकों का यह कर्त्तव्य है कि वे अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन सतर्कता से करें। उत्तरदायित्व का तात्पर्य है कर्त्तव्य। सभी व्यक्ति यदि अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन जिम्मेदारी से करें तो किसी को किसी प्रकार की समस्या नहीं रहेगी। किसान का उत्तरदायित्व है खेती करना, अध्यापक का उत्तरदायित्व है छात्रों को मनोयोग से पढ़ाना, चिकित्सक का कार्य है रोगी व्यक्ति की सेवा करना, अधिकारियों का कार्य है जनता की सेवा करना, राजनेताओं का उत्तरदायित्व है पूरे राष्ट्र का विकास करना, सैनिक का उत्तरदायित्व है देश की रक्षा के साथ-साथ सीमाओं की सुरक्षा करना। 

यदि ये सभी अधिकारी, कर्मचारी, राजनेता अपने कार्यों का अच्छे प्रकार से उत्तरदायित्व समझ करके निर्वहन करते है तो निश्चित ही देश का विकास दिन दूनी रात चौगुनी गति से हो सकता है। भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह संविधान का, राष्ट्रध्वज का एवं राष्ट्रगान का सम्मान करे। राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों का पालन करे। भारत की एकता, अखंडता और प्रभुता की एवं वन, झील, नदी और वन्य जीवों की रक्षा करे। राष्ट्र की सेवा करे। नारी सम्मान के विरूद्ध कुप्रथाओं का एवं धर्म भाषा प्रदेश एवं वर्ग के आधार पर भेदभाव न करे। प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखे। हिंसा से दूर रहे। सार्वजनिक सम्पति की रक्षा करे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का, मानवतावाद का सुधार की भावना का विकास करे। भारत के सभी लोगों में समरसता और सम्मान एवं भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे। 

व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में बढ़ने का प्रयास करे। इस प्रकार सभी नागरिकों को अधिकारों के प्रति जागरूक और कर्त्तव्यों के प्रति समर्पित रहना चाहिए। इसी प्रकार जहां तक अधिकार की बात है वहां हमारे देश में दो प्रकार के अधिकार है- संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार, प्राकृतिक अधिकार। मौलिक अधिकार सभी भारतीय नागरिक को जन्मजात ही प्राप्त हो जाते हैं। कोई भी भारतीय नागरिक जिसका जन्म भारत की सीमा के अंतर्गत हुआ है उसे यह अधिकार प्राप्त है। मौलिक अधिकार वह अधिकार है जिसे संविधान में मूल रूप से लिख दिया गया है। इसके अतिरिक्त बहुत से अधिकार है जिसे नागरिकों को प्राप्त है। 

प्राकृतिक अधिकार वह अधिकार है जो प्रकृति प्रदत्त है। भारत के सभी नागरिकों को हवा, पानी, सूर्य का प्रकाश, जीवन जीने का अधिकार इत्यादि अधिकार प्रकृति प्रदत्त है। नदियों, झरनों, तालाबों, वर्षा ऋतु से होने वाली वर्षा का जल सभी अपनी इच्छानुसार प्रयोग कर सकते हैं। हवा का उपयोग सभी इच्छानुसार कर सकते हैं। सूर्य के प्रकाश का उपयोग भारत के सभी नागरिक अपनी इच्छानुसार कर सकते हैं। इसमें कोई किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकता, क्योंकि यह प्रकृति प्रदत्त है। प्रकृति मानव की चिरसहचरी है। मानव ने जब से आंखे खोली वह प्रकृति के गोंद में ही पैदा हुआ, बड़ा हुआ, खेलाकूदा और अंत में प्रकृति के गोंद में ही विलीन हो गया। प्रकृति ने मानव को खाने-पीने, रहने और स्वच्छ हवा का आनन्द लेने का ऐसा अमूल्य खजाना प्रदान किया है कि यदि मानव अपनी आवश्यकतानुसार इनका प्रयोग करे तो यह अक्षय रूप से चलता रहेगा। राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानकर भारत देश की रक्षा करना सभी भारतवासियों का कर्त्तव्य है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)