लेखक : नवीन जैन
स्वतंत्र पत्रकार
www.daylife.page
लिखने, बोलने, और संवाद की आज़ादी किसी भी लोकतंत्र के सफल होने की एक अहम शर्त है। आपातकाल के दौर में कहीं पढ़ा था कि तत्कालीन प्रधान मंत्री स्व. इंदिरा गांधी के कनिष्ठ पुत्र स्व.संजय गांधी ने उन्हीं दिनों कहा था कि देश में कम कम दस वर्षों के लिए सैन्य कानून लगा देना चाहिए। संजय गांधी की उन दिनों संजय ब्रिगेड ने ही कहते हैं। अपने वाहियात कारनामों से अपने खानदान का नाम खूब रोशन किया। उन लोगों का कोई क्या बिगाड़ सकता था, क्योंकि पीएम के पुत्र के साथी जो ठहरे, लेकिन आप जरा पूरी ईमानदारी, और जिम्मेदारी से सोचकर बताएं कि क्या किसी बड़े कारोबारी को लाखों यहूदियों के कातिल रुडोल्फ हिटलर की शान में कसीदे गढ़ने वाली, और लगभग उसी की क्रूर, और तानाशाही का भारत में भी अनुसरण करने की वकालत करने वाली किताब लिखने, और उसकी बिक्री की इजाजत दी जा सकती है? और, वो भी उस शख्स को जो गुजरात के वीभत्स मोरबी हादसे की जिम्मेदार कंपनी का मैंनेजिंग डायरेक्टर हो।
इन आधुनिक महान चिंतक का नाम एक बड़े हिंदी अख़बार में छपी खबर के अनुसार जयसुख पटेल बताया जाता है।वे हिटलर के घोर समर्थक ही नहीं, हिटलर शाही को भारत में भी लागू करने के पैरोकार हैं। जयसुख पटेल ने 2019 में ही उक्त किताब लिख दी थी। उनकी इस सड़को पर जलाने देनी वाली पुस्तक का नाम है- समस्या और समाधान। वे लिखते हैं कि भारत में 15/20 सालों तक चुनाव न करवाते हुए किसी ऐसे व्यक्ति के सत्ता सौप दी जाए, जो रुडोल्फ हिटलर की तरह डंडा चलाए। जानने वाले जानते हैं कि हिटलर नाम के नर पिशाच ने डंडे तो शायद कम ही चलवाए थे, हां उसके इशारों पर लाखों यहूदियों को गोलियों से भूनकर मरे हुए सुअरो का बाड़ा बना दिया गया था, जिसे आज भी इंग्लिश में Holocaust कहा जाता है।
पटेल साहब ने नुस्खा दिया है कि हमारे देश में भी एक ही व्यक्ति को सत्ता सूत्र सौंप दिए जाने चाहिए, जो डंडे के बूते लोगों को देश भक्ति के साथ ईमानदारी सिखाए। जय सुख की लिखने की हिमाकत देखें कि वे यहां तक कह गए हैं कि चीन में लोकतंत्र न होने से व्यर्थ खर्च नहीं होता। लोग अपने अनुशासन में खुद रहते हैं। बेहद दुखद यह है कि जय सुख पटेल भूलने के का मानसिक अपराध कर रहे हैं कि एक लम्बे अरसे पहले चीन की राजधानी बीजिंग में लोकतंत्र की मांग कर रहे हजारों छात्रों को टैंकों के नीचे कुचल दिया गया था। हो सकता है उक्त घटना के वक्त जय सुख पटेल चड्डी पहनकर स्कूल जाया करते हों। बावजूद इसके जयसुख पटेल गूगल पर ही देख लेते कि बीजिंग के मुख्य चौराहे थ्यान आन मेन चौक पर हुए उक्त नर संहार के दौरान क्या क्या हुआ था। यह नहीं तो जयसुख पटेल इतना ही जान लेते कि चीन में एक विशेष मुस्लिम समुदाय के साथ कैसा कातिलाना व्यवहार किया जाता है । इस घटनाक्रम के सेटे लाइट फोटोज लेने वाली एक भारतीय मूल की अमेरिकी महिला फोटो जर्नलिस्ट को 2021 का नोबल पुरुस्कार भी मिला है।
उक्त नव धन कुबेर की हिम्मत देखिए कि उन्होंने यहां तक लिख मारा कि गुलामी तो हमारे (भारतीयों) के डीएनए यानी खून में है। मुख्य बात उन्होंने यह लिखी है कि तानाशाही ही भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला सकती है। यदि जयसुख पटेल के पास अपने उक्त कथन पर कायम रहने का थोड़ा सा भी कलेजा हो, तो वे ही बताएं कि मोरबी पुल दुर्घटना में मीडिया के एक बड़े, और जिम्मेदार पॉकेट के अनुसार मोरबी ऊपर से नीचे तक कहां कहां खूब माल बंटा? जयसुख पटेल की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे बताएं कि मोरबी कांड की मुख्य आरोपी चूंकि उनकी ओरवा कंपनी ही,है वे ही उसके एमडी हैं, तो उनके साथ किस तरह की तानाशाही की जाए? मोरबी पुल काण्ड में हुए घपले की एक तरह से पूर्व सूचना उन्होंने अपनी उक्त किताब में दे दी थी कि, 95 फीसद सरकारी कर्मचारी, अफसर और नेता भ्रष्टाचार में लिप्त है।
यदि जयसुख पटेल अपनी जगह सही हैं तो केंद्र से लेकर लगभग पूरे देश के अधिकांश नेता अपने दामन को उजला रखने में नाकाम रहे हैं। पटेल को क्या यह नहीं बताना चाहिए कि मोरबी के पुल रिपे रिंग में किस सरकारी बंदे और नेता को उन्होंने क्या क्या लाली पाप दिए।इस किताब की तुलना आप चाहें ,तो ऐसे हकीम खतर ए जान से भी कर सकते हैं, जो किसी रिसते हुए फोड़े को जंग लगे चाकू से काटने का हुनर भी बाकमाल जानता हो। वे अपने उक्त अनुपम ग्रंथ में कश्मीर से लेकर सियासत का समाधान करते नजर आते हैं। इस किताब के विचार लोक तांत्रिक व्यवस्था, आरक्षण, किसान विरोधी होने के साथ ही अधिनायक वाद का समर्थन करते हैं। वे नियम, पंजीकरण ,प्रमाण पत्र व्यवस्था को सिरे से खात्मे के हामी हैं।
यदि यह पुस्तक बाजार में है तो सवाल है कि उसे प्रतिबंधित क्यों नही किया गया? याद करें की सलमान खुर्शीद की किताब एक धार्मिक विवादास्पद पुस्तक पर आज भी पाबंदी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)