राहुल का पैदल मार्च सदी का सबसे सफल पैदल सफर...!
लेखक : नवीन जैन
स्वतंत्र पत्रकार, (ई.एम.एस.)
इंदौर (एमपी)
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जब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा काफी आगे निकलकर स्पष्ट सकारात्मक नतीजे देती दिखाई पड़ रही है, तब राजस्थान के बड़े पार्टी जन उक्त पैदल सफर का बिल्ली बनकर रास्ता काटने का परम, पुण्य और पुनीत कार्य करते दिखाई पड रहे हैं। ऐसे दुखद संदेश फिर आ रहें है कि राहुल से अपना घर ,जिसके वे अभी भी अघोषित युवराज हैं, तो सम्हल नहीं रहा, देश में आई दरारें भरने का काम कैसे करेंगे भला? क्या राजस्थान के मुख्यमंत्री, तथा पूर्व उप मुख्य मंत्री सचिन पायलट चाहते हैं, जिस पैदल मार्च को मीडिया का एक जिम्मेदार वर्ग सदी का सबसे सफल हो सकने वाला पैदल सफर तक कह रहा है, उसे बीच रास्ते में ही पलीता लगाने के महान कार्य को वे किसी भी कीमत पर अंजाम देकर ही मानेंगे।
ठीक है कि राजनीति में कोई भजन कीर्तन करने नहीं आता । जब पार्टी का जहाज़ डूबने लगे, तो उसे डराने, धमकाने, और चमकाने वाले को चूहा भी कहा जाता है, क्योंकि जब जहाज़ डूबने लगता है, तो चूहे ही पहली फुर्सत में छू मंतर हो जाते हैं। अर्थात सियासत में वैचारिक प्रतिबद्धता या वफादारी नाम की कोई चीज सिरे से नहीं होती, लेकिन सचिन पायलट कुछ सालों से मुख्यमंत्री पद के लिए अशोक गहलोत के खिलाफ जो अथक किले लड़ा रहे हैं, उस लड़ाई को फिलहाल एक तरफा युद्ध विराम में भी वे बदल सकते थे, क्योंकि पार्टी उन्हें ही अगला मुख्यमंत्री बनाने का इशारा पहले से ही कर चुकी है, और राजस्थान में अगले साल ही, तो एसेंबली के चुनाव होने हैं।
मीडिया में आई खबरों के अनुसार पूरा माजरा यह कि हाल में पीएम नरेंद्र मोदी ने अशोक गहलोत को सार्वजनिक रूप से सबसे सीनियर घोषित कर दिया। लगे हाथ गहलोत ने भी नहले पर दहला मारते हुए कह दिया कि भारत में चूंकि लोकतंत्र की जड़ें काफी मजबूत हैं इसीलिए पूरे विश्व में नरेंद्र मोदी की तारीफे होती है। इन दोनों बयानों ने राहुल के भारत जोड़ो अभियान के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। वैसे, मोदी काफी कुछ सही भी हैं, क्योंकि गहलोत कांग्रेस के फ्रंट लाइन लीडर, तो हैं ही सही। मोदी के इस बयान में सचिन पायलट को गुलाम नबी आज़ाद प्रकरण की खामोश गंध सूंघने को मिल गई।
सनद रहे कि जब राज्यसभा से गुलाम नबी आजाद आज़ाद हो रहे थे, तब हाउस में मोदी के साथ आजाद भी बहुत भावुक हो गए थे। फिर क्या था? सो कॉल्ड नेशनल या मेन स्ट्रीम मीडिया ने हाथों हाथ आजाद को भाजपा नामक नए पिंजरे में कैद कर लिए जाने की शर्त ही एक तरह से बदली। कांग्रेस से तो आज़ाद ने मुक्ति की घोषणा कर दी, लेकिन उन्होंने भाजपा के न होकर जम्मू कश्मीर में क्षेत्रीय पार्टी बना ली वहां भी विधानसभा चुनाव होने हैं। राजनीति में चूंकि सब कुछ संभव है, तो आजाद अपने मूल प्रदेश में उक्त विधान सभा चुनावों में भाजपा को हमजोली बना
सकते हैं। भाजपा को भी, तो उनकी जरूरत पड सकती है। ऐसा करके दोनों पार्टी कोई पाप, तो करेंगी नहीं। जहां तक अशोक गहलोत का सवाल है, तो सही है कि पिछले कुछ सालों से वे पार्टी अध्यक्ष का पद पाना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने भी पार्टी अध्यक्ष पद का चुनाव लडने की सुरसुरी छोड़ी थी। राजस्थान इकाई में उनके समर्थक विधायको ने बगावत भी करने के बिगुल बजाए, लेकिन गहलोत ने आला कमान से माफी मांगकर मामले को समाप्त कर दिया। हां, यह जरूर है कि जिन तीन बगावत प्रेमी विधायको को नोटिस थमाया गया था, वो मामला अधर में है। इसका कारण यह भी है शायद कि आज भी प्रदेश कांग्रेस में गहलोत का ही बोलबाला हैं। उनके समर्थक उक्त तीनों विधायकों पर कार्यवाही करना फिर बर्रे के छत्ते में हाथ डालने जैसा भी हो सकता है।
वैसे भी, गहलोत के पास न तो कुछ खोने को है, और न ही कुछ नया पाने को। वे, केन्द्रीय मंत्री रह लिए। अभी आला कमान चाहकर भी उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की रिस्क लेने से बचना चाहेगा। फिर चूंकि अब वे थक चुके हैं, तो इस बात की संभावना कम ही है कि कोई नई चुनौती लेना चाहेंगे। उधर, सचिन पायलट खानदानी राजनीति के स्पष्ट प्रतीक हैं।
उनके रोड ऐक्सिडेंट में स्वर्गवासी हुए पिताजी राजेश पायलट चूंकि कभी वायुसेना में पायलट हुआ करते थे, इसलिए राजनीति में वे पायलट नाम से जाने गए। वर्ना, तो वे राजस्थान के गुर्जर समाज (दोसा) से आते हैं। सचिन भी एयर फोर्स में ही क्वालीफाई करना चाहते थे, लेकिन कहा जाता रहा की विजन प्रॉब्लम की वजह से वे सिलेक्ट नहीं हो पाए। लेकिन वे विश्व स्तरीय मोटिवेशनल स्पीकर माने जाते हैं। इसीलिए संसद में छा जाते रहे हैं। चूंकि उनके पास पूरा समय है इसलिए वे कांग्रेस के राजनीतिक आसमान में फिलवक्त, तो वे अपनी अति महत्वाकांक्षा की पतंगे उड़ाने से बचें, क्योंकि उनसे बेहतर कौन यह कौन जानता है कि कांग्रेस के फिर से नॉन प्लेइंग महानायक राहुल गांधी, और सोनिया गांधी के लिए वे अभी भी असुविधा का सबब हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)