(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)
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राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम एवं उसके पश्चात् लोकतंत्र को सुदृढ़ करने व देश में नियोजित विकास की नींव रखने में पं. जवाहर लाल नेहरू का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे देश के सबसे सफल स्टेटसमैेन विजनरी नेता व प्रधानमंत्री रहे है। चाहे कितनी ही घोषणाएं कर लें, कितने ही मार्केटिंग का हथियार काम में ले लिया जाय, पं. जवाहर लाल नेहरू जैसा दृष्टा व राष्ट्रनायक नहीं बन सकते।
पं. नेहरू जैसे मानववादी का लक्ष्य देश को विदेशी दासता से मुक्त कराने का ही नहीं था बल्कि सामाजिक दासता से मुक्ति, समानता और भ्रातत्व की भावना स्थापित कर, देश का संपूर्ण विकास करने का था। वे चाहते थे कि भारत न केवल साम्राज्यवाद से मुक्त हो बल्कि रूढ़ीवादी व परम्परावादी जंजीरों से मुक्त हो। ‘‘दी पोलिटिकल फिलोशापी आफ नेहरू’’ में एम.एन.दास ने लिखा है ’’ नेहरू ने ‘‘राष्ट्रवाद के प्रति आधुनिक दृष्टिकोण अपनाया ओर मानववाद की धारणा का विकास किया। उनका दृष्टिकोण लौकिकवादी एवं धर्म निरपेक्षवादी था। वे धर्म निरपेक्षवादी राज्य की स्थापना के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने राष्ट्रवाद को वैज्ञानिक प्रवृति के साथ अन्तर्राष्ट्रवाद के साथ जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने भारत के सामाजिक ढांचे, आदर्श व दर्शन में आस्था रखते हुए समग्र व सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया, न कि नकारात्मक दृष्टिकोण।’’
पं. नेहरू ऐसा जनतंत्र चाहते थे जहां अवसर की समानता हो, प्रत्येक के लिए अच्छा जीवन जीने के संपूर्ण साधन हो, पर्याप्त उत्पादन हो तथा विषमताओं का उन्मूलन हो। देश की सामाजिक और आर्थिक विषमताओं के प्रति उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक था। पं. नेहरू ने नियोजित विकास में समाजवादी सोच व पद्धति को अपनाया, प्रजातांत्रिक समाजवाद की स्थापना की। वे भारत को संकीर्ण राष्ट्रवाद के दायरे के बंधन में नहीं रखना चाहते थे।
गांधी की हत्या के बाद नेहरू ने गहन आत्मविश्वास के साथ उनका ध्वज थामा। रूढ़ीवादी गुट के विरोध के बावजूद मजदूरों तथा बच्चों के कल्याण व सुधार संबंधी महत्वपूर्ण प्रयास किये। उद्योगपतियों के विरोध के बावजूद 1948 में औद्योगिक क्षेत्र में नई नीति के निर्माण की घोषणा की। अर्थ व्यवस्था, सार्वजनिक(राजकीय) क्षेत्र के निर्माण का ऐलान किया। रेल व शस्त्रास्तों का निर्माण करने वाले कारखाने राजकीय संपत्ति बने। रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण किया गया। बुर्जुआ प्रेस की चीख-चिल्लाहठ, विदेशी राजदूतों के जहरीले बयानों पर ध्यान नहीं दिया व सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र में बड़े उद्योगों के विकास पर अडे रहे। बड़े उद्योगों, धातुओं, ऊर्जा, रसायन उत्खनन और परिवहन जैसी बुनियादी सेवाओं पर नियंत्रण कायम किया।
भारत में जागीरदारी प्रथा समाप्त की। योजना आयोग की स्थापना कर योजनाबद्ध तरीके से विकास कार्य प्रारम्भ किया। भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए बिहार (सिंदरी) में उर्वरक खाद बनाने का कारखाना स्थापित हुआ। सिंचाई परियोजनाओं के तहत भांखडा नांगल, हीराकुंड, नागार्जुन सागर आदि बड़े-बड़े बांध व नहरों का निर्माण हुआ जिससे सिंचाई के लिए जल तथा उद्योग धंधों के लिए समुचित मात्रा में बिजली उपलब्ध हो सकी। बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना की योजनायें बनी। दुर्गापुर में भिलाई, राउलकेला में लोह उद्योग की स्थापना हुई। सोवियत रूस, ब्रिटेन व जर्मनी की सहायता से यह कारखाने स्थापित हुए। इससे पूर्व देश में एकमात्र गैरसरकारी कारखाना जमशेदपुर में था।
पं. नेहरू अणु शक्ति का विकास चाहते थे और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने अनेक वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं की स्थापना की। वैज्ञानिकों के लिए उच्च शिक्षा का प्रबंध किया। आज ये संस्थान तकनीकी दृष्टि से विदेशों में भी उच्च शिक्षण संस्थानों में गिने जाते है। देश में आज श्रेष्ठ वैज्ञानिक तथा प्रोद्योगिकी विशेषज्ञों की कमी नहीं रही।
पं. नेहरू का व्यक्तित्व बड़ा था। उन्होंने पंचशील व सहअस्तित्व की भावना समग्र विश्व के सामने प्रस्तुत की। विश्व बंधुत्व, विश्व कल्याण, मैत्री, सद्भावना के आधार पर राष्ट्र व मानव के मध्य खुदी खाईयों को पाटने का प्रयास किया। अनेक राष्ट्रों के लिए नेहरू प्रेरणा स्रोत बने। विश्व शांति के लिए तटस्थता व मैत्रीपूर्ण विश्वास, मानवता के लिए उनकी सबसे बड़ी देन है।
पं. नेहरू देश के लिए बुनियादी महत्व रखने वाले सवालों पर अकेले निर्णय व फैसले नहीं लेते थे। उनकी घरेलू और विदेष नीति को भारत के भीतर और बाहर पूरा समर्थन मिला परन्तु उसका श्रेय खुद को नहीं देते थे। वे एक व्यक्ति की भूमिका को बढ़ा चढ़ाकर बताने का विरोध करने से नहीं कतराते थे। उन्होंने संसद में कहा था कि ‘‘हमारी नीति को नेहरू नीति कहना कतई ठीक नहीं है। मैं उसका एक प्रवक्ता हूं, मैंने उसकी नींव नहीं रखी, इसे हिन्दुस्तान की स्थिति में, उसके सोचने के ढंग ने, उसके सारे नजरियो ने, हमारी आजादी की लड़ाई के दौरान देषवासियों के मिजाज ने ओर आज के अंतर्राष्ट्रीय माहोल ने जन्म दिया है। मेरा इससे संयोगवश ताल्लुक है कि प्रधान मंत्री व विदेश मंत्री के तौर पर मैंने नुमाइंदगी की है। मुझे यकिन है भारत के विदेषाी मामलों को कोई भी क्यों न संभाले, कोई भी पार्टी गद्दी पर बैठे, वे इस नीति से कोई खास दूर नहीं हट सकते।’’
पं. नेहरू द्वारा स्थापित बड़े-बड़े कारखानों ने भारत का कायाकल्प कर डालां। ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत कम समय में लोकतांत्रिक भारत ने नियोजित तरीके से विश्व के प्रथम 3 उन्नत व विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में अपना स्थान बना लिया। आज का भारत गत दो साल में बना भारत नहीं है। भारत की प्रगतिशील शांति समर्थक विदेष नीति, व्यापक अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त कर, विश्व राजनीति का एक महत्वपूर्ण कारक बन गई है। यह नेहरू की प्रगतिशील वैज्ञानिक व नियोजित विकास व मिश्रित अर्थ व्यवस्था, धर्म निरपेक्षता, गुट निरपेक्ष विदेश नीति के कारण ही संभव हुआ।
सोवियत राष्ट्रपति ले. ई. ब्रेज्नेव ने कहा था ’’जवाहर लाल नेहरू भारत की जनता की मेघाविता, उदारहृदयता और महानता की जीती जागती मूर्ति थे, स्वाधीनता और प्रगति की उसकी आकांक्षा के साकार रूप थे, इसी का स्वपन देखा था और इसी के लिए अपना सारा जीवन अर्पित कर दिया।’’
पं. नेहरू ने निष्काम कर्मयोगी की तरह भारत की सेवा की। संविधान निर्माण से लेकर नियोजित अर्थ व्यवस्था, सामुदायिक विकास, पंचायतराज, सहकारिता, कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में देष का चहुंमुखी विकास किया। वे व्यक्ति की आजादी के समर्थक थे। रविन्द्र नाथ ठाकुर ने नेहरु के प्रति अपने विचार प्रकट करते हुए कहा था ’’जवाहर लाल ने राजनीतिक संघर्ष के क्षेत्र में, जहॉ बहुधा छल और प्रवंचना चरित्र को विकृत कर देते है, शुद्ध आचरण के आदर्ष का निर्माण किया। उन्होंने अपने प्रधान मंत्रित्व काल में जो दिया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।’’
वे सांप्रदायिकता व धार्मिक अंधविश्वास के विरोधी थे वे सभी धर्मो का आदर करते थे। वे मनुष्य को विवेक, स्वतंत्रता, आत्म विकास एवं नैतिक आत्म निर्णय की ईकाई मानते थे और अन्याय, जातिवाद, हिंसा, अनैतिकता, तानाशाही, षोषण व समाजवाद का विरोध करते थे। वे संकुचित क्षेत्रीयता, भाषावाद, साम्प्रदायिक संकीर्णता से उपर उठकर राष्ट्रवाद की भावना से ओत प्रोत थे। मातृभूमि के प्रति भावुकता से भरे सम्बन्ध को ही राष्ट्रीयता कहते थे।
पं. नेहरू जातिवाद के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने जागीरदारों व ताल्लुकदारी प्रथा का विरोध किया। सांप्रदायिका व धर्मान्धता फैलाने वालों के खिलाफ सख्त प्रहार किया। मानववाद, समाजवाद, जनतंत्रवाद, धर्मनिरपेक्षता के साथ कार्य किया। शोषणकारी, अन्याय, रूढ़ीवादी परंपराओं के खिलाफ प्रभावशाली कदम उठाये। पं. नेहरू ने विश्व कोे राष्ट्र भावना, विश्व शांति, विश्व सहकारिता, धर्म निरपेक्षता तथा मानववाद के सिद्धांत से शाश्वत प्रकाश से आलोकित किया। स्त्री जाति के उद्धार के लिए संघर्ष किया, हिन्दू कोड बिल पास कराया। उन्होंने मानवता, अनुशासन, योग्यता व सहयोग को अधिक महत्व दिया। नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक आचरण में स्वच्छता व लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए संघर्ष करते रहे। बुनियादी विकास व आवश्यकताओं के लिए तो उनका समाजवाद महज आर्थिक सिद्धांत नहीं है, वह एक जीवन दर्शन है।
वे पूंजीवादी व्यवस्था से भिन्न एक नई व्यवस्था चाहते थे जिसमें सबको समान न्याय और सबके लिए अवसर मिले। इसमें जो भी रोड़ा मार्ग में आया उन्होंने उसे हठाने का प्रयास किया। उनके अनुसार राष्ट्रवादी दृष्टिकोण, धर्म निरपेक्षता तथा समाजवाद से ही आर्थिक शोषण समाप्त किया जा सकता है। नेहरू द्वारा अपनाई गई अर्थ व्यवस्था को स्थिर अर्थ व्यवस्था गिना गया, जिसका मूल आधार कृषि था। नेहरू की नियोजित मिश्रित विकास की अर्थ व्यवस्था यदि चलती रहती तो अमीरी-गरीबी में इतना अंतर नहीं होता। महंगाई और भ्रष्टचार का वर्तमान स्तर नहीं होता। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)