भारत छोड़ो आन्दोलन 9 अगस्त 1942
लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)
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ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने गांधीजी व कांग्रेस के प्रति अपनी नफरत को छिपाने की कोशिश नहीं की। उन्होंने घमण्ड के साथ ऐलान किया ‘‘वह ब्रिटिश साम्राज्य के विसर्जन की अध्यक्षता करने के लिए सम्राट का प्रधानमंत्री नहीं बना है’’ इसलिए जानबूझकर क्रिप्स को इस आशा के साथ भेजा कि उसकी असफलता भारतीय नेतृत्व को बदनाम करेगी और प्रमाण जुटायेगी कि भारतीय नेता निराशाजनक सीमा तक यर्थाथवादी, बुद्धिहीन और अविश्वसनीय है। क्रिप्स के प्रस्ताव ऐसे थे जिससे स्पष्ट हुआ कि कोई रचनात्मक समाधान संभव नहीं है। महात्मा गांधी निराश व कटु हो गये और एक बार मिलने के बाद उसे फौरन वापसी का जहाज पकड़ने की सलाह दे दी।
क्रिप्स का प्रस्ताव था भारतीय संघ को युद्ध के बाद स्वशासन प्राप्त हो। इस योजना में प्रान्तों व देशी रियासतों को छूट दी गई कि चाहे तो भारत के साथ रहे, चाहे स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखे, चाहे ब्रिटेन के अधीनता में रहे। कांग्रेस ने इसे अस्वीकार कर दिया क्रिप्स मिशन फेल हो गया, राजनैतिक वातावरण में अविश्वास फैल गया। भारतीय नेताओं व गांधीजी को अब न्याय मिलने की आशा नहीं रही। इन दिनों कांग्रेस का व्यक्तिगत सत्याग्रह धीमा पड़ने लगा।
14 जुलाई 1942 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक वर्धा में हुई। इसमें घोषित किया गया कि भारत से ब्रिटेन राज्य का तुरंत अंत होना चाहिए, देश की स्वतंत्रता हमारा प्रथम ध्येय है। महात्मा गांधी ने लाइफ व टाइम के वाले ‘‘वेलडन’’ को कहा ‘‘ईश्वर के लिए भारत को उसके हाल पर छोड़ दो। हमें स्वतंत्रता की हवा में सांस लेने दो। मैं मौजूदा तमाशे को खत्म होते देखना चाहता हूं। भारत को ईश्वर या अराजकता के हवाले कर दें।’’
7 अगस्त 1942 को बम्बई में कांग्रेस महासमिति का अधिवेशन बड़ी उत्तेजना के वातावरण में शुरू हुआ। देश के कौने-कौने से लगभग 20 हजार कार्यकर्ता बम्बई पहुंचे। महात्मा गांधी ने इस बार देशी नरेशों, जनप्रतिनिधियों, नेताओं और जनता के सभी वर्गो से अपील की कि देश की आजादी के इस महायज्ञ में किसी को पीछे नहीं रहना है। अधिवेशन में अखिल भारतीय कांग्रेस के सत्र में ‘‘भारत छोड़ो’’ का ऐतिहासिक प्रस्ताव रखा। महात्मा गांधी ने ईमानदाराना मांग उत्पत्ति की व्याख्या करते हुए कहा ‘‘अहिंसात्मक तरीके से देशव्यापी पैमाने पर विशाल संघर्ष चालू करने की स्वीकृति देते हैं। साम्राज्यवादी सरकार को कोई अधिकार नहीं है कि वह आधीपत्य जमाये रखे।’’ मौलाना आजाद की अध्यक्षता में हुई बैठक में जवाहर लाल नेहरू ने प्रस्ताव रखा व सरदार पटेल ने उसका अनुमोदन किया। निर्णय हुआ कि संग्राम गांधीजी के नेतृत्व में होगा। महात्मा गांधी ने अंग्रेजों को चेतावनी दी कि या तो वे खुद ही भारत का शासन भारतीयों के हाथों में सौंपकर यहां से चले जायें अन्यथा उन्हें सम्पूर्ण भारतीय राष्ट्र की उमडती शक्ति का सामना करना पडेगा। यह अंग्रेजों को भारत छोड़ने का आदेश था।
8 अगस्त को गांधीजी ने बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान में विशाल जनसमूह के समक्ष ‘‘करो या मरो’’ का संदेश दिया। गांधीजी ने राजनीति के धरातल से उपर उठकर उत्कृष्ट, मानवता, विश्वव्यापी भ्रातृत्व, शांति व मानव मात्र के प्रति सद्भाव से ओतप्रोत भावनाओं को व्यक्त किया। हमने न केवल इस देश में अपितु समस्त विश्व में शाश्वत शांति व न्याय की स्थापना का बीडा उठाया है।
उन्होंने कहा अब हम अपने को आजाद समझे, लड़ाई छिडने पर उनके मार्गदर्शन के लिए कोई नेता बाहर नहीं रहेंगे इसलिए उनको अपना ही नेता बनकर, अपनी जिम्मेदारी समझकर, अपना कार्यक्रम बनाकर चलना है। मैं इस लड़ाई में आपके नेतृत्व की जिम्मेदारी अपने उपर लेता हूं, सेनापति या नियंत्रक के रूप में नहीं, मुख्य सेवक के रूप में। मैंने कांग्रेस को बाजी पर लगा दिया है, वह करेगी या मरेगी। हम एक सल्तनत से मुकाबला करने जा रहे है, हमारी लडाई बिलकुल सीधी होगी, दिल में कोई उलझन नहीं रखे, लुकछिपकर कोई कुछ नहीं करें।
भारत छोड़ो प्रस्ताव से देश का वातावरण एकदम गरमा गया, वायसराय ने आन्दोलन को कडाई से दबाने निश्चय किया। 9 अगस्त को सवेरे ही महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, सरदार बल्लभ भाई पटेल आदि कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया व अहमदनगर के किले में बन्द कर दिया गया। सभी बड़े नेताओं के गिरफ्तार हो जाने से जनता में एकदम से असंतोष फैल गया, जनता क्रुद हो उठी, सड़कों पर उतर आई, जनता ने उग्र रूप धारण कर लिया। पुलिस व सेना ने जनान्दोलन को बेरहमी से दबाने की कोशीश की। स्त्रियां भी मैदान में आ गई, युवक पूरी तरह सक्रिय हो गये। इन्दिराजी ने बढ़-चढ़कर आन्दोलन में हिस्सा लिया, उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। बंगाल में भयंकर अकाल था, लाखों लोग भूख से मर गये। जनता की दासता, गरीबी, भुखमरी, पुलिस व सेना के अत्याचारों ने, जेल की यातनाओं ने, लोगों में आजादी के लिए एक जज्बा पैदा कर दिया। नेहरू ने कहा ‘‘अपने प्यारे देश के लिए कष्ट झेलना कितनी बड़ी बात है।’’ उन्हें 3 वर्ष की सजा हुई। महात्मा गांधी शारीरिक व मानसिक रूप से अस्वस्थ व चिंताग्रस्त थे, रूग्णावस्था के कारण उन्हें 1944 में रिहा किया गया।
महात्मा गांधी ने कहा था ‘‘ब्रिटिश सत्ता की समाप्ति का प्रस्ताव क्रोध की उपज नहीं है, बलिदान व शौर्य की सच्ची भावना है।’’ परन्तु नेताओं की अनुपस्थिति में जनता ने कानून को अपने हाथों में ले लिया, प्रशासन व संचार व्यवस्था चरमरा गई। वायसराय ने अन्यायपूर्ण ढंग से हिंसात्मक रास्ता अपनाया, हथियारों के बल पर आन्दोलन को समाप्त करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, अहिंसात्मक मार्ग से वंचित कर लोगों को हिंसा पर उतारू बना दिया है। आन्दोलन का प्रारम्भिक भाग प्रदर्शनों और जुलूसों के साथ शांतिपूर्ण था। सभी विधायकों ने प्रांतीय विधानसभाओं से इस्तिफा दे दिया। प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के कारण एक युवा, अपेक्षाकृत अज्ञात अरूणा आसफ अली ने झण्डा फहराया। प्रत्यक्ष नेतृत्व के अभाव में कुछ स्थानों पर बंब विस्फोट हुए, सरकारी ईमारतों में आग लगा दी गई, बिजली काट दी गई और परिवहन व संचार को तोड दिया गया। बड़े पैमाने पर लगभग एक लाख से अधिक गिरफ्तारी की, सामूहिक जुर्माना लगाया, पुलिस व सेना की हिंसा में सैकड़ों नागरिक मारे गये।
सरकार से संतोषजनक उत्तर न पाकर गांधीजी ने अपने एकमात्र विकल्प को अपनाया, उन्होंने 21 दिन के अनशन का ऐलान किया। वायसराय लिनलिथगो ने कहा ‘‘मैं राजनीतिक उद्देश्य के लिए व्रत के उपयोग को एक राजनीतिक ब्लैकमेल समझता हूं।’’ गांधीजी ने जबाब दिया ‘‘सर्वशक्तिमान सरकार के प्रतिनिधि के रूप में आपका और अपने देश एवं मानवता की सेवा करने वाले एक विनम्र व्यक्ति के रूप में मेरा फैसला आने वाली पीढ़ियां करेगी।’’
गांधीजी का स्वास्थ्य चिंता का कारण बन गया। जनान्दोलन तेज हो गया और पूरे देश में उसकी लहर दौड़ गई। उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया परन्तु तब तक उनका देश ही एक विशाल कारागार बन चुका था। गतिरोध बना रहा और अंधेरा आसमान की सीमा तक गहरा गया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)