लेखक : डॉ.सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)
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आजादी के बाद देश की राजनीति में देश सेवा और जनकल्याण की भावना से आने वाले लोगों की बडी संख्या थी, शिक्षक, वकील, पत्रकार, डाक्टर और समाज का अन्य बुद्धिजीवी वर्ग देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते थे। वक्त के साथ विधायिका व राजनीति के स्तर पर गिरावट आई, कार्यपालिका की दशा व दिशा भी बदली। कार्यपालिका ने विधायिका की स्थिति का लाभ उठाया। न्यायपालिका और प्रेस जो मुखर होकर स्वतंत्रता लोकतंत्र और आम आदमी के हकों के लिए सचेत थे की दशा व दिशा भी बदली और पक्षपात व भ्रष्टाचार का कीचड़ उछलने लगा।
विधायिका और कार्यपालिका का कद बौना हो गया। अपराधियों, अशिक्षितों और अनुशासनहीन लोगों की भरमार ने शासन प्रशासन का चरित्र, चेहरा व चाल ही बदल कर रख दी। अनपढ़, अशिक्षित, अपराधी, चेहरों चाहेेतों को पूरा करने के लिए कार्यपालिका साथ जुड गई। अपराधियों के मन में यह बात बैठ गई कि सिपाही से लेकर सांसद तक को खरीदा जा सकता है। लोकतंत्र के चारों खम्भे ही गुनाहगार हो गये तो पूरा तंत्र ही भ्रष्टाचार की ओर अग्रसर हो गया। चारों खम्भों में दीमक लग चुकी है। देश में नियम कायदों की धज्जियाँ सरे आम उडाई जाती है। भ्रष्टाचार की बेल ने इतनी मजबूती से अपने शिकंजे में ले लिया है कि कोई चाहकर भी इस तंत्र से नहीं निपट सकता। तमाम राजनीतिज्ञ इसी के सहारे चुनाव लड़ रहे हैं।
भ्रष्टाचारी ही सत्ता के करीब पहुँच रहे हैं। भ्रष्टाचार का मुद्दा अब केवल सामाजिक मसला नहीं है यह राजनीतिक मुद्दा भी है। पेड न्यूज से भी मीडिया चलता है, खबरों को सनसनी खेज बनाने के लिए असलियत को तोड़मरोड कर पेश करने से समाज को नुकसान पहुंचता है। देश में जिस हद तक भ्रष्टाचार है वह अब हमारे लिए कलंक है। पूरा समाज नैतिक अवमल्यन की ओर अग्रसर हो रहा है। भारत में सरकार चलाने वाले लोग जब न्याय, नैतिकता, राष्ट्रीयता सब कुछ ताक पर रख कर जनता की गाड़ी कमाई के पैसों को बेरहमी से लूट, संग्रह में संलिप्त हैं। सभी पर भ्रष्टचार की कालिख पुत रही है। घोटाले राजनीतिक संस्कृति का अंग बन चुके हैं।
राजनीति मेें यदि नोट के बदले वोट की परम्परा नहीं पड़ती तो गरीब योग्य व्यक्ति भी चुनाव जीत सकता था। पकडे जाने का भय नहीं है, पकडे गये तो नामी-गिरामी तेज तर्रार वकीलों, को भारी भरकम वकीलों की फौज को खड़ी कर छूट जाते हैं। राजनीतिज्ञ व राजनीतिक दल महत्वाकांक्षा व स्वार्थपूर्ती के लिए देश को धर्म, सम्प्रदाय, जाति वर्ग में बांटने का घिनोना कार्य करने में तुल गये हैैं।
देश में समाचार संस्थानों पर औद्योगिकरण का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। प्रबन्धकों की अर्थनीतियां संचालन कर रही हैं। पत्रकारों ने श्रमजीवी कह कर मजदूर परम्परा से जोड़ लिया है, स्वरूप जीवन की बजाये उत्पादकता से जुड गया है। पहले संस्था का हित, राजनीतिक विचारधारा का हित, फिर पत्रकार का हित, अंत में समाज व देश का हित, इसलिए खबरें छपवाने के लिए रिश्वत मांगता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की तलवार लहराकर अपनी शक्ति के प्रभाव से मदमस्त है, अपनी विश्वसनीयता को खो रहा है।
हमारे नेता राजाओं की तरह काम कर रहे हैं, गरीबी मिटती नहीं, बेरोजगारी बढ़ रही है। साम्प्रदायिकता व जातिवाद का जहर बढ़ता जा रहा है। कार्यपालिका, न्यायपालिका निस्तेज हो गई हैं, रोजी रोटी सामान्यजन से दूर भाग रही है। भ्र्रष्टाचार और घोटालों के अम्बार लगे हैं, विधायिका में वंशवाद पनप रहा है। चारों ओर लूट मची है, अत्याचार अनाचार की बाढ़ है, हमारे प्रतिनिधि योग्य नहीं हैं उनको देश की नहीं, कुर्सी और सन्तति की चिन्ता है।
राष्ट्र की तरक्की तभी संभव है जब उस राष्ट्र की सरकार तथा वहां के लोग ईमानदारी व पारदर्शिता से अपना काम करें। आम जनता के सभी जायज काम समय पर निष्पादित हों तथा उन कार्यों के निष्पादन में भ्रष्टाचार रूकावट नहीं बन सके।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने स्वच्छ एवं पारदर्शी प्रशासन के संकल्प को चरितार्थ करने के लिए नई सोच व नई दिशा अपनाते हुए अहम कदम उठाये हैं। भ्रष्टाचार मुक्ति के लिए प्रोएक्टिव व पारदर्शी सोच को अपना कर, जीरो टालरेंस की नीति को अपना कर, भ्रष्टाचार के विरूध अभियान चलाया हुआ है। शिकायत देने वालों के लिए अनूठी पहल करने वालों के विरूध लगातार कार्यवाही कर नकेल कसने का अभियान निरंतर जारी है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा साढे़ चार सौ से अधिक ट्रेप प्रकरण दर्ज किये हैं, जन जागरूकता अभियान, हेल्प लाइन, मीडिया़ आदि के द्वारा आम आदमी तक पहुंचा जा रहा है। जीरो टोलरेंस की नीति का अनुसरण करते हुए भ्रष्टाचार की रोकथाम सम्बन्धी कार्यवाहियां बडे पैमाने पर की जा रही है, जागरूकता हेतु नवाचार किये हैं। लोक सेवको के बारे में सूचना का प्रभावी संकलन, विश्लेषण किया जा रहा है। सजग रह कर कार्यवाही की जा रही है। सूचना के अधिकार कानून के प्रावधानों की पालना सुनिश्चित की जा रही है।
शिष्टाचार बनते भ्रष्टाचार के विरूध आवाज बुलन्द करने और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्यवाही करने की दिशा में भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन व्यक्ति हित में ही नहीं राष्ट्रहित में है। कानून बनाने के साथ जनजागरूक हों सशक्त हों, जनता व शासन के बीच सशक्त संवाद बने पारदर्शिता रहे। सरकार आक्रामक रहे जन विश्वास रहे। समाज के हर हिस्से से भ्रष्टाचार को हटाने की दिशा में बढना आवश्यक है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)