2 हजार 500 से अधिक अनाथ, दिव्यांग छात्रकृछात्राओं के जीवन को संवारा
31 साल में कई बच्चों को पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर, सैनिक बनाया
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सीकर जिले की 94 साल की एक मां वर्तमान में अपने 40 से ज्यादा बच्चों का पालन-पोषण कर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, नौकरी और शादी तक की जिम्मेदारी को निभा रही है। कई बच्चे आज डॉक्टर, सेना, अध्यापक सहित अन्य सरकारी पदों पर कार्यरत हैं। मां ने बच्चों को अपने अनुभव से जिंदगी जीने का सबक सिखाया है। इस मां का जीवन भी आसान नहीं रहा। बचपन कराची में बीता था। महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा को आदर्श मानने वाली इस बुजुर्ग मां ने देश के बंटवारे का दर्द भी देखा था। यह है सीकर के भादवासी गांव में स्थित कस्तुरबा सेवा संस्थान की निदेशक श्रीमती सुमित्रा शर्मा, शेखावाटी की मदर टेरेसा के नाम से भी पहचानी जाती है। अब तक इस मां ने 2500 से ज्यादा बच्चों की जिंदगी को संवारा हैं।
श्रीमती सुमित्रा शर्मा ने बताया कि वर्तमान में संस्थान में 40 से ज्यादा बच्चे हैं। सभी बच्चे उन्हें मां कहकर बुलाते हैं। उन्होंने बताया कि 6 साल की उम्र से ऊपर के बच्चों को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की स्वीकृति के बाद ही संस्थान में रखा जाता है। उन्होंने बताया कि 18 साल की उम्र के बाद बच्चों को जयपुर में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के छात्रावास में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इसी अनाथ बच्चों को कई परिवार गोद भी लेकर जाते हैं। उन्होंने बताया कि संस्थान में बच्चों की देख-रेख की जाती हैं। जब तक बच्चे खुद के पैरों पर खड़े नहीं होते तब तक वह विभाग के संरक्षण में ही रहते हैं।
श्रीमती सुमित्रा शर्मा ने बताया कि उनका जन्म हरियाणा के रोहतक में 1930 में हुआ था। जन्म के 10 दिन बाद ही पिता की मौत हो गई थी। 21 दिन की होने पर नाना शिवदयाल शर्मा मां और उन्हें अपने साथ कराची (अब पाकिस्तान लेकर चले गए। नाना-नानी ने ही परवरिश की, कुछ समय बाद नमक आंदोलन की शुरुआत हुई। अपने नाना के साथ 11 साल की उम्र में ही उन्होंने आंदोलन में जाना शुरू किया। उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा को अनाथ व असहाय बच्चों की मदद करते हुए देखा था। यह देख वह बहुत प्रभावित होने लगी थी। तब बड़े होकर खुद भी ऐसा कुछ करने का सोचा था। यह सफर 3 बच्चों के साथ शुरू किया था। अब तक 2500 बच्चों की परवरिश कर चुकी हैं। उन्होंने बताया कि संस्थान के बच्चे मां कहकर पुकारते हैं तो बहुत अच्छा लगता है। 94 साल की श्रीमती सुमित्रा शर्मा अपने पति के साथ 1955 में सीकर आई थी। उसके बाद बेसहारा बच्चों के लिए काम करना शुरू किया था।
8 साल तक खुद के खर्चें पर की बच्चों की देखभाल
श्रीमती सुमित्रा शर्मा ने बताया कि 1960 में बेसहारा बच्चों के लिए कुछ करने का विचार किया। पति ने भी साथ दिया। शुरुआत 3 बच्चों से की। तीनों बच्चों के माता-पिता की मौत के बाद दादा-दादी पालन-पोषण करने में असमर्थ थे। ऐसे में तीनों बच्चों को निरूशुल्क पढ़ाना शुरू किया। एक वर्ष में करीब 60 बच्चे शामिल हुए। अपने साथ कुछ महिलाओं को जोड़ा। 8 साल तक खुद के खर्चे पर बच्चों की देखभाल की और पढ़ाई-लिखाई करवाई। पति के रिटायरमेंट में मिले रुपयों को भी बच्चों को पढ़ाने में लगा दिया।
2007 के बाद मिली सरकार की मदद
उन्होंने बताया कि 1990 में अनाथ, बेसहारा बच्चों को आसरा देने के लिए संस्थान खोलने का प्लान बनाया। ताकि कोई बच्चा भीख न मांगे, सड़क पर दर-दर की ठोकर न खाए। किराए के मकान में ही कस्तूरबा संस्थान की शुरुआत की थी। 1998 में इसका रजिस्ट्रेशन करवाया। जिसके बाद सरकार से मदद मिलना शुरू हो गया था।संस्थान को 2006 में राज्य सरकार द्वारा 0.25 हैक्टेयर जमीन आवंटन की गई। संस्थान ने दान दाताओ के सहयोग से 28 कमरों का निर्माण कराया गया है। इसके बाद बच्चों की पढ़ाई, खाने और स्टाफ का खर्च सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से मिलता है। इसके अलावा संस्थान में होने वाले खर्चे को पेंशन से चुकाती है।
संस्थान द्वारा संचालित गतिविधियां
संस्थान द्वारा वर्तमान में निराश्रित बालगृह , निराश्रित बालिका गृह, विशेष योग्यजन गृह का संचालन किया जा रहा है।
संस्थान में बालक, बालिकाओं की स्थिति
संस्थान मे पिछले 31 वर्षों से 800-900 बालक, बालिकाओ को लाभान्वित किया है। संस्थान ने बच्चों के लिए आवास, भोजन, चिकित्सा, शिक्षणकृप्रशिक्षण की व्यवस्था की है। संस्थान में वर्तमान समय मे 30 निराश्रित व 15 विशेष योग्यजन बालक आवासित है।
बच्चों के लिए संस्थान मे उपलब्ध सुविधाएं
संस्थान मे बच्चों के पढने के लिए लाईब्रेरी स्थापित है, जिसमें महापुरूषों, धार्मिक, कहानियां, सामान्य अध्ययन, बच्चों के कोर्स की पुस्तकें उपलब्ध है।
श्रीमती सुमित्रा शर्मा ने बताया कि करीब 31 साल से पहले संस्थान की शुरुआत की थी। इस लंबे सफर में करीब 2500 से ज्यादा दिव्यांग, असहाय और अनाथ बच्चों की परवरिश हो चुकी है। बच्चे पढ़ाई-लिखाई कर अपने पैरों पर खड़े हैं। संस्थान में आवासित बालक प्रदीप वर्मा का आईआईटी मे चयन हुआ तथा उन्होंने इन्जीनियरिंग पूर्ण कर प्राइवेट कम्पनी में जौब कर रहा है। बालक रतन लाल वर्मा ने पी.एम.टी. में विशेष योग्यजन श्रेणी में आल इंडिया में चौथी रैंक प्राप्त की है तथा एस.एम.एस. से एम.बी.बी.एस पूर्ण कर सरकारी चिकित्सक की पोस्ट पर नावां में नियुक्त है।
बालिका इन्द्रा कुमारी ने नर्सीग एस.के.अस्पताल से विशेष योग्यजन श्रेणी से पूर्ण कर सरकारी नर्स के पद पर खाचरिया बास सीकर में नियुक्त है। इसी प्रकार छात्र सुनिल कुमार वर्मा द्वितीय श्रेणी अध्यापक,बालक बलराम जाखड सैना में जीडी क्लर्क,संजय कुमार वर्मा एलडीसी तथा संस्था द्वारा बालक देवनारायण को आई.टी.आई.,सचिन कुमार गुजर्र, हरिशंकर, राजेन्द्र कुमार वर्मा को आयुर्वेद नर्सिंग कराई गई है। वर्तमान मे बालक अंकुर कुमार को भी आयुर्वेद नर्सींग कोर्स कराया जा रहा है। उन्होंने भामाशाहों के सहयोग से दिव्यांग और असहाय 6 लड़कियों की शादी भी करवाई गई हैं।
श्रीमती सुमित्रा शर्मा ने बताया कि संस्थान द्वारा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, जिला प्रशासन के समन्वय से विशेष योग्यजन मतदाता जागरूकता अभियान चलाया गया है। संस्थान द्वारा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के संयुक्त तत्वावधान में विशेष योग्यजनों के शिविरों का आयोजन कर उनको कृत्रिम, कैल्पिर, बैसाखी, श्रवण यंत्र, ट्राईसाईकल, व्हील चौयर, ब्लाइंड स्टीक आदि उपलब्ध कराना व निःशुल्क प्रमाण पत्र बनवाने के साथ ही बाल मेलों का आयेजन बाल अधिकारिता विभाग के सहयोग से किया जाता रहा हैं। संस्थान के बच्चों द्वारा स्वछ भारत अभियान के तहत भादवासी व शिवसिंहपुरा में अभियान चला कर लोगों को जागरूक करने का काम किया जा रहा है।