देश में दिन प्रतिदिन दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ती जा रही है। निर्भया कांड जैसी दिल दहलाने वाली घटना के बाद हरियाणा की लड़की के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी बच्चेदानी, किडनी निकाल कर नृंशस हत्या कर शव को फेंक दिया गया। आज एक प्रतिष्ठित अखबार में खबर आई कि चित्तौड़गढ़ में मात्र साढ़े तीन माह की बच्ची के साथ उसके सगे पिता ने बलात्कार की कोशिश की मां उस वक्त छत पर थी। ये कैसी विकृत मानसिकता समाज में फैलती जा रही है। न शर्म ,न रिश्तो का लिहाज, न बदनामी का डर है। आखिरकार ऐसा क्या कारण है कि सरकार सोशल मीडिया पर उपलब्ध अश्लील सामग्री पर प्रतिबंध नहीं लगाती है।समाज को नैतिक पतन के दलदल में धकेला जा रहा है। लेकिन उनका क्या जो दुष्कर्म के बाद मार दी जाती है, खुद आत्म हत्या कर लेती है, या आजीवन इस दंश को झेलती है। अपराधी को राजनीतिक व प्रशासनिक संरक्षण मिलता है। अपराधी को कुछ भी नही करना होगा। पीड़िता को ही सिद्ध करना पड़ता है कि उसके साथ दुष्कर्म हुआ है।
ये अंग्रेज के जमाने के कानून है जो आजादी के इतने साल बाद भी नहीं बदले गए। कई बार समाज में बदनामी के डर से केस अदालत में लाना चुनौतीपूर्ण होता है। कानूनी प्रक्रिया इतनी लंबी है कि सालो तक सुनवाई होती रहती है। जमानत मिल जाती है। अगर फांसी की सजा सुनाई जाती है तो राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने की छूट है वहाँ से फाइल गृह मंत्रालय जाती हैं ये लंबी प्रक्रिया है। इसीलिए समाज में भय व्याप्त नही है। उन परिवार वालो पर क्या गुजरती होगी जिनकी बेटियों के साथ ऐसे हादसे होते है। क्या इतने बड़े लोकतंत्र के सत्ता पक्ष व विपक्ष के सांसद, राज्यसभा सदस्य, राष्ट्रपति,सुप्रीम कोर्ट के माननीय जज, बड़े बड़े वकील मिलजुल कर इस दरिंदगी व खौफनाक मसले पर कोई ऐसा कानून नहीं बना सकते कि देश व समाज को इस कोढ़ से मुक्ति मिल जाए। या फिर किसी मंत्री, अफसर या बड़े आदमी की बेटी के साथ दुष्कर्म होने पर कानून बदला जाएगा? (लेखिका का अध्ययन एवं अपने विचार हैं)
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)।