वक्फ संशोधन बिल अल्पसंख्यक अधिकारों पर सीधा हमला...!

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जयपुर।  केंद्र सरकार द्वारा एक तरफ़ा पारित किए गए वक़्फ़ अधिनियम में हाल ही में किए गए संशोधन भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक हैं। ये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 25, 26 और 29 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों को कमजोर करते हैं और मुस्लिम वक़्फ़ संपत्तियों को ज़ब्त करने और उन्हें नष्ट करने के उद्देश्य से एक जानबूझकर किए गए प्रयास का हिस्सा हैं। 

संसद में अपने प्रचंड बहुमत का उपयोग करते हुए, सत्तारूढ़ भाजपा ने लाखों मुसलमानों, अल्पसंख्यकों और न्यायप्रिय नागरिकों की इच्छा के विरुद्ध इन संशोधनों को पारित कराया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) इन बदलावों का स्पष्ट रूप से खंडन करता है। 

ये संशोधन मुसलमानों से उनके धार्मिक दान के प्रबंधन के अधिकार को छीन लेते हैं और निम्नलिखित अन्यायपूर्ण प्रावधान लागू करते हैंः 

केंद्रीय कौंसिल और राज्य वक़्फ़ बोर्डों में गैर-मुसलमानों को शामिल करना-ऐसा कृत्य जो अन्य समुदायों के धार्मिक निकायों में अनसुना है। एक नई शर्त कि वक़्फ़ (दानकर्ता) पाँच साल तक मुसलमान होना चाहिए-संवैधानिक गारंटी और इस्लामी शरिया सिद्धांतों, दोनों का उल्लंघन है। ये संशोधन शत्रुतापूर्ण इरादे दर्शाते हैं और धार्मिक स्वतंत्रता व अल्पसंख्यक अधिकारों पर सीधा हमला हैं। 

AIMPLB, विद्वानों और नागरिक समाज द्वारा संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को मौखिक और लिखित आपत्तियों और देश भर के मुसलमानों द्वारा भेजे गए 5 करोड़ से ज़्यादा ईमेल के बावुजूद, सरकार ने लोकतांत्रिक मानदंडों की अनदेखी करना चुना। सरकार द्वारा ”वक़्फ़ उम्मीद पोर्टल“ की स्थापना अवैधानिक है और न्यायालय की अवमानना के समान है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसके बावुजूद, सरकार ने 6 जून से ”वक़्फ़ उम्मीद पोर्टल“ शुरू कर दिया है और इसके माध्यम से वक़्फ़ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य कर रही है। यह कार्रवाई पूरी तरह से अवैधानिक है और स्पष्ट रूप से न्यायालय की अवमानना है। 

परिणामस्वरूप, AIMPLB ने इन संशोधनों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। साथ ही, हम ”वक़्फ़ बचाओ, संविधान बचाओ“ के बैनर तले पूरे देश में एक शांतिपूर्ण, जन अभियान शुरू कर रहे हैं।