वर्तमान समय में हमारे समाज और संस्कृति का नैतिक और चारित्रिक पतन हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिव इन रिलेशनशिप को वेध करार देने के बाद स्थिति और बिगड़ती जा रही है। शारीरिक आकर्षण के चलते युवक और युवती बिना ब्याह किए साथ रहते हैं। लेकिन यह रिश्ते बेमानी है। साल 2 साल के बाद मन भर जाने पर मनमुटाव होने लगता है। जमीनी सच्चाई से अवगत होते हैं। वह अलग होना चाहते हैं। अदालत के चक्कर लगाने पड़ते हैं। ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या से अदालत ने भी नाराजगी जाहिर की है। भारतीय समाज व संस्कृति में विवाह संस्था आजीवन स्थायित्व व सुरक्षा का मानक है। इससे परिवार बनता है परिवार से समाज बनता है और समाज से राष्ट्र बनता है। लिव इन रिलेशनशिप की अवधारणा भारतीय संस्कृति से मेल नहीं खाती है। लिव इन रिलेशनशिप महज औपचारिकता है जब यह रिश्ते टूटते हैं तो समाज में महिलाओं को अपमानित किया जाता है उन पर उंगली उठाई जाती है। उनका वैवाहिक रिश्ता होना भी खतरे में पड़ जाता है। माना कि सुप्रीम कोर्ट ने इसको वेध करार दिया है। लेकिन स्व विवेक से काम लेते हुए युवक-युवतियों को सोच समझ कर कदम उठाना चाहिए। (लेखिका अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)।