केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों की कमी से जूझता तेलंगाना

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार,

लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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लगभग एक दशक से कुछ पूर्व जब आन्ध्र प्रदेश का विभाजन कर एक नया प्रदेश तेलंगाना बनाया गया था। अविभाजित आन्ध्र प्रदेश में उस समय नियुक्त तीन प्रमुख केंद्रीय सेवाओं, भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी, भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी तथा भारतीय वन सेवा अधिकारी, के   धिकारियों का विभाजन कर दोनों प्रदेशों में बाँट दिया गया था। 

उस समय यह तय हुआ कि तेलंगाना को163  भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी,139 भारतीय  सेवा पुलिस अधिकारी और 81 भारतीय वन सेवा अधिकारी आवंटित किये जायेंगे इन अधिकारियों कैडर बदल कर तेलंगाना कर दिया गया। कम अधिकारी दिए जाने के पीछे तर्क यह दिया गया था कि नया प्रदेश आन्ध्र प्रदेश की तुलना में छोटा है। उस समय नए राज्य में कुल मिलाकर मात्र 10 जिले ही थे। अगर राज्य सरकार के सचिवालय में नियुक्त सचिवों और उससे से ऊपर के अधिकारियों को छोड़ दिया जाये तो नए राज्य को जिलों में 10 जिलाधीश के पद के लिए 10 भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की जरूरत थी। इतने ही भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों को जिला पुलिस अधीक्षक बनाने की जरूरत थी। लेकिन पिछले दस वर्षों में राज्य में जिलों की संख्या बढ़कर 33 हो गई है। लेकिन इसे तुलना में केन्द्रिय सेवाओं के अधिकारियों की संख्या में इजाफा नहीं किया गया। 

नये राज्य की सरकार ने की मांग को चलते 2016 में राज्य के लिए आवंटित केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों की जरूरत की  समीक्षा की  गई। इसके चलते राज्य के लिए आवंटित अधिकारियों की संख्या बढ़ा दी गई। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की  संख्या बढ़ा कर 208 कर दी गई। भारतीय  पुलिस  सेवा के अधिकारियों की संख्या में 49 का इजाफा किया गया। भारतीय वन सेवा के अधिकारियों में कुछ इजाफा किया गया . यह आवंटन बढ़ा तो दिया गया लेकिन  कभी भी राज्य के लिए आवंटित अधिकारियों का पूरा कोटा नहीं मिला . मसलन अभी भी कुल मिलाकर भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के 170 अधिकारी ही राज्य में काम कर रहे है। 

इसी प्रकार कुल कोटे के भारतीय पुलिस सेवा के लगभग तीन दर्जन अधिकारी राज्य को कभी नहीं मिले। नियमों के अनुसार राज्य सेवा के अधिकारियों पदोन्नति  का कोटा निर्धारित है। लेकिन  इसके 18 पद  खाली  पड़े है। इनका चयन भी केंद्रीय  स्तर की समिति ही करती है। इसके अंतर्गत साल से 18 अधिक की सेवा वाले अधिकारियों को योग्य माना जाता है।  लेकिन पिछले काफी समय से इस प्रकार की पदोन्नति  का काम नहीं  हुआ। सचिवालय स्तर पर हालत ये हैं कि सीनियर प्रशासनिक अधिकारियों के पास तीन तीन विभागों का काम है। यह अतिरिक्त कार्यभार के रूप नहीं है बल्कि नियमित कार्यभार के रूप है। राज्य के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारियों की कमी की वजह से सरकार के कई काम या तो रुके पड़े है या उनकी प्रगति बहुत धीमी है। 

सामान्य तौर पर राज्यों के कैडर वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को अपने सेवा काल दौरान बीच बीच में केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाना होता है। इसके लिए चयन काम केंद्रीय स्तर पर ही किया जाता है.एक बार केंद्रीय प्रतिनियुकित के लिए चयन होने के बाद राज्यों की सरकारें उन्हें एक निर्धारित समय के लिए कार्य मुक्त कर देती है। लेकिन तेलंगाना में ऐसे मौके भी आये जब  किसी एक अधिकारी को केंद्र में प्रतिनियुक्ति के लिए चयन होने के बाद भी राज्य सरकार ने ऐसे अधिकारी या अधिकारियों को कार्य मुक्त करने से इंकार कर दिया। भारतीय प्रशासनिक  सेवा के लिए केंद्र का अपना कोई कैडर नहीं है। विभिन्न  राज्यों के कैडर या कोटे के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ही केंद्र सरकार में सचिव तथा ऐसे ऊँचे पदों पर नियुक्त किये जाते है। 

केंद्र सरकार का कहना है कि मोटे तौर पर उसे इस बात का पता होता है कि किस राज्य को कितने आईएएस और कटने आईपीएस अधिकारियों की जरूरत रहती है। लेकिन ऐसा अधिकारियों उपलब्धता निर्भर करता है। यह बात पर निर्भर करता है कि यूपीएससी द्वारा हर साल आयोजित की जाने वाली परीक्षा में कितने निवेदक उतीर्ण  होते है। न केवल भारत में बल्कि सभी बड़े देशों में इस प्रकार की परीक्षा में उत्त्तीर्ण होने वाले निवेद्कों की संख्या कम बहुत होती है। क्योंकि यह परीक्षा बहुत कठिन होती है। नए अधिकारियों की संख्या यूपीएससी की परीक्षा में उतीर्ण होने वाले निवेद्कों की संख्या पर ही निर्भर है। इनको तीन साल के प्रशिक्षण के बाद ही सेवा में लिया जाता है तथा इन्हें अलग-अलग राज्यों के कैडर में आवंटित किया जाता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)