वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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तमिलनाडु के मदुरै में हाल में हुई मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के 24वीं कांग्रेस में आने वाले चुनावों को मद्देनज़र रखते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णय किये गए, जिनका मुख्य उद्देश्य पार्टी के कम होते प्रभाव को फिर से वापिस लौटना है। अगले साल के शुरू में तामिलनाडू और केरल में विधानसभा होने है। देश के अन्य भागों की तुलना में इन दोनों राज्यों में ही इस पार्टी का बचा खुचा प्रभाव अभी बाकी है। केरल में जहाँ इस पार्टी के नेतृत्व वाले वाममोर्चे की सरकार है। यहाँ पार्टी 2021 लगातार दूसरी बार सत्ता में आई थी। तमिलनाडु में यह द्रमुक के नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा है। पिछले लोकसभा चुनावों में पार्टी को देश में कुल 4 सीटों पर जीत मिली थी, इनमें से 3 इन दोनों राज्यों से थी।
पार्टी की 24 वीं कांग्रेस में, जो लगभग एक सप्ताह चली, पार्टी में बड़े फेरबदल किये गए। पार्टी के पिछले महासचिव सीताराम येचुरी का 2024 में निधन हो गया था। तब यह तय हुआ था कि जब तक पार्टी की कांग्रेस नहीं होती और नया सचिव नहीं चुना जाता तब तक प्रकाश करात को अस्थाई रूप से इस पद की जिम्मेदारी दे दी जाये। वे खुद भी कभी इस पद पर लम्बे समय तक रह चुके है।
अन्य राजनीतिक पार्टियों की तरह इस पार्टी अधिवेशन एक दो दिन नहीं बल्कि लगभग एक सप्ताह तक चलता हैं तथा हर मुद्दे पर खुलकर बहस होती है.पार्टी की यह कांग्रेस हर तीन साल की बाद होती है . इस कांग्रेस में येचुरी के स्थान पर केरल के ए एम बेबी को पार्टी का नया महासचिव चुना गया . 71 वर्षीय बेबी पार्टी के पुराने नेताओं में से है। वे दो बार राज्य सभा के सदस्य रहे तथा एक बार राज्य में वाम मोर्चे की सरकार में मंत्री भी थे . उन्होंने अपना सियासी सफ़र एक छात्र नेता रूप में शुरू किया तथा उनकी छवि तब से जमीन से जुड़े नेता की है। यह दूसरा अवसर है कि पार्टी ने दूसरी बार केरल इस आने वाले किसी पार्टी के नेता को इस पद के लिए चुना है। इससे पहले ई एम् एस नम्बूदरीपाद लम्बे समय तक इस पद रहे.राज्य में पार्टी को पनपाने और मजबूत बनाने में उनकी बड़ी भूमिका रही थी।
पार्टी के नियमों के अनुसार इसका कोई भी नेता 75 वर्ष की उमर के बाद किसी पद पर नहीं रह सकता. लेकिन केरल के मुख्यमंत्री विजयन पिनराई इस मामले में अपवाद रहे। वे उमर को यह आंकड़ा पर कर चुके है लेकिन इसके बावजूद उनको एक बार फिर पार्टी की शीर्ष संस्था 18 सदस्यों वाले पोलित ब्यूरो का सदस्य बनाया गया। यह भी तय हुआ कि पार्टी अगला विधान सभा चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ेगी यह तब हुआ जब पिछले पोलित ब्यूरो के साथ सदस्यों के स्थान पर नए सदस्यों को इसमे लाया गया। इसी प्रकार पार्टी के 80 सदस्यों वाली केंद्रीय समिति के 30 सदस्यों के स्थान पर नए सदस्य लिए गए।
बीजेपी के बाद देश वाम पार्टियाँ अभी भी कैडर वाली पार्टियाँ हैं। आज से लगभग दो दशक पहले तक देश में मार्क्सवादी कम्युनिस्टके नेतृत्व वाले वाममोर्चे का बड़ा प्रभाव था। एक समय इसके लोकसभा में 67 सदस्य थे। केरल के अलावा पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में वामपंथी दलों की सरकारें थी। पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में लगभग तीन दशकों तक वामपंथी दलों को एक छत्र राज्य रहा था।
इन दलों के नेता अपनी सादगी और ईमानदारी के चलते अलग ही छवि रखते हैं।जब त्रिपुरा में माणिक सरकार मुख्यमंत्री बने तो उनकी पत्नी सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी। उनके पति के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वे अध्यापिका की नौकरी करती रही।
एक समय था जब संसद के दोनों सदनों में वामपंथी दलों के सदस्यों को दबदबा रहता था। वे पूरी तरह विषयों की तैयारी करके सदन में आते थे और हल्ला करने की बजाये इन विषयों पर सार्थक बहस करते थे। पार्टी के नियमों का अनुसार संसद और विधायक अपना सारा वेतन पार्टी को देते है तथा केवल उनको मिलने वाले भत्ते पर अपना गुजरा करते है।
उनकी ईमानदारी का अंदाज़ ही इससे लगाया जा सकता है कि एक बार इसके एक सांसद गुरुदास दासगुप्ता ने एक बड़ा घोटाला सदन में उजागर किया था। इसके लिए सरकार की ओर से उन्हें 8 लाख रूपये का पुरस्कार मिला था। उन्होंने राशि अपने पास न रख कर श्रमिकों में बाँट दी थी। वे उस समय पार्टी के एक बड़े श्रमिक नेता थे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)