कायप्रारूप विकृति (Somato form Disorders)

(लेख में लेखक ने आम लोगों को समझाने के लिए बीमारी में कई शब्दों को अंग्रेजी में लिखा है ताकि मेडिकल भाषा के साथ सामान्य व्यक्ति भी बीमारी, लक्षण व उसके उपचार समझ सके)





कायप्रारूप विकृति (Somato form Disorders) यह एक ऐसी विकृति है। जिसमें व्यक्ति उन दैहिक लक्षणों की शिकायत करता है जिनसे दैहिक समस्याओं की उपस्थिति का अंदाज होता है, परन्तु सचमुच में इसका कोई आंगिक या कायिक (Somato)  आधार नही होेता हैं। परन्तु उसे ऐसा विश्वास होता है कि उनके लक्षण वास्तविक ही नही गंभीर भी है। (लेखक, डॉ. शिवाली मित्तल द्वारा बीमारी के लक्षण उपचार व सलाह रोगी उनसे कॉल करके भी ले सकते हैं)  

निम्न बातों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति में कायप्रारूप विकृति (Somato Disorders)  है या नही:- 


1. रोगी के दैहिक कार्याे में से कुछ परिवर्तन हुआ हो जैसे- उसमें बहरापन या पक्षाघात (Paralysis)  के लक्षण उपलब्ध हों।
2. रोगी के दैहिक हालातों के रूप में किया जाना संभव नही हो, जैसे बहरापन या पक्षाघात के उत्पन्न होने पर भी उसका कोई एनायविक (Neurological Damage) क्षति का कोई सबूत न हो।
3. इस बात का धनात्मक सबूत (Positive Evidence) हो कि रोगी
4. रोगी में प्रायः दैहिक क्षति (Physical Loss) के प्रति उदासीनता रहती है अर्थात् उसे अपने दैहिक लक्षणों के प्रति कोई विषेष चिंता नही हो।
5. रोगी द्वारा दिखलाये गये चिंता उसके ऐच्छिक नियंत्रण Voluntary Control)  के बाहर हो।
यदि किसी रोगी में उपर्युक्त पाॅंच लक्षण पाये जाते है, तो उसे निष्चित रूप से कायप्रारूप विकृति (Somato form Disorders)  का रोगी माना जाएगा।



इसके पाॅंच प्रकार है:- 
1. शरीर दुष्क्रिया आकृति विकृति 
2. रोगभ्रम     
3. कायिक विकृति
4. कायप्रारूप दर्द विकृतित 
5. रूपांतर विकृति
  
1. शरीर दुष्क्रिया आकृति विकृति  (Body Dysmorphic Disorders) :- BDD एक मानसिक विकार है, जिसमें व्यक्ति को अपने चेहरे या आकार में कुछ दोष उत्पन्न हो जाने की आंषका या डर पैदा हो जाता है। ये खामियाॅं अक्सर दूसरों के लिये अनजान होती है। Ex व्यक्ति को लगने लगे की उसकी नाक या कान का आकार दिनों दिन बढता जा रहा है। या उसके होठ भद्दे या नीचे की दिषा में लटकता जा रहा है। ऐसे में वे ज्यादातर समय अपनी दिखावट के बारे में सोचते रहतें है। और दिन में घंटों शीशे के सामने अपने आकार की जाॅंच करते है। इस विकार वाले लोग खुद को बदसूरत के रूप में देखते है। और अक्सर लोगो से मिलने जूलने में धबराते है।



2.  रोगभ्रम Hypochondriasis :- इस विकृति में रोगी अपने स्वास्थ्य के बारे में जरूरत से ज्यादा सोचता हैं। तथा उसके बारे में हमेषा चिंता करता रहता है। उसके मन में अक्सर यह बात बनी रहती है कि उसे कोई न कोई शारीरिक बीमारी हो गयी है। और उसकी यह चिंता इतनी अधिक हो जाती है कि वह अपने दिन प्रतिदिन की जिंदगी के साथ समायोजन करने में असमर्थ हो जाता है। मनोवैज्ञानिक के Hypochondriasis अनुसार शब्द मेडिकल शब्द Hypochodrium से लिया गया है, जिसका अर्थ (Below the ribs)  पसलियों के नीचे क्योकि इस रोग के ज्यादातर रोगी उदर सम्बन्धी लक्षणों को बताते है। जैसे:- पेट में कोई भयानक रोग हो गया है अपने यौन अंगो (Sex Organs) में किसी रोग होने की चिंता रहती है, व्यक्ति के पेट में वायु का दवाब, जो कि नार्मल होता है, दर्द के रूप में महसूस होता है।



कारणः- रोगी की तंत्रिकाए शरीर की सामान्य प्रतिक्रिया पर भी विद्युत तंरगे दिमाग को अधिक मात्रा में सन्देष पहुॅंचाने लगती है, जिससे व्यक्ति को शारीरिक रोग होने का आभास होता है। इस तरह से रोगी किसी गंभीर रोग से ग्रसित हो जाने वाली सोच में धिरा रहता है।



जैसे कि रोगी कहेगा मुझे कैंसर या टी.बी. है। समय बीतने के साथ यह सोच पहले वाले रोग से हटकर किसी दूसरे रोग पर भी केन्द्रित हो सकती है। जैसे कि रोगी पहले टी.बी. की होने की बात करता था और अब एड्स होने की बार-बार Negative lab report आने के बाद भी इस बात को सोचता रहता है। फिजीशीयन के बार बार तसल्ली देने के बाद भी रोग होने की सोच बनी रहती है। इस तरह की सोच व चिंता व्यक्ति में कम से कम छः महीने तक बने रहने पर ही उसे रोगभ्रम (Hypochondriais) की श्रेणी में रखा जा सकता है।



3. कायिक विकृति (Somatization Disorders) :- यह ऐसी विकृति है जिसमें कई शारीरिक लक्षण एक साथ होते है, जिन्हे शारीरिक जाॅंच और लैब जाॅंच में प्रमाणित नही किया जा सकता है, अर्थात् जाॅंचे सामान्य/नाॅर्मल आती है। सामान्य यह रोग 30 वर्ष की आयु में प्रारम्भ हो जाता है। अन्य से (Somatization Disorders) यह लक्षणों की विविधता (Multiple) की वजह से भिन्न है। यह लम्बे समय तक चलने वाला रोग होता है। और इससे मानसिक तनाव उत्पन्न होता है। और उसके सामाजिक व व्यावसायिक कार्य पर असर पडता है। पुरूषों की तुलना में यह रोग स्त्रियों 5 से 20 गुना तक ज्यादा पाया जाता है। ज्यादातर कमजोर वर्ग में देखा गया है। इस रोग के मूल कारणों का सही ढंग से पता नही चला है, लेकिन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह तनावभरी भावनाओं को व्यक्त करने का अचेतन मन प्रयास होता है यह उन लोगों में देखा गया है जिनके परिवार में अस्थिरता की स्थिति होती है, या जिन्हे शारीरिक प्रताडना से गुजारना पडता है। इस Disorders में कम से कम आठ तरह के लक्षण निष्चित रूप से होते है। चार तरह के विभिन्न अंगो मे दर्द, दो तरह के उदर संबंधी विकार, एक सेक्स संबंधी विकार और एक तंत्रिका (Neuro) संबंधी लक्षण का होना। और इनमें से किसी भी लक्षण की शारीरिक जाॅंच या लैब जाॅंच में पुष्टि न होती हो।



  1. इसमें सिरदर्द, पेट, पीठ, छाती, पेषाब करने के दौरान, मासिक धर्म के दौरान, लैंगिक क्रिया के दौरान आदि मे किसी चार तरह के लक्षण हो सकता है।
  2. कम से कम दो उदर संबंधी विकार जैसे मिचली, फै, डायरिया, पेट फूलना आदि
  3. इसमे कम से कम एक लैंगिक लक्षण जैसे:- अनियमित मासिक स्त्राव, मासिक स्त्राव, में अत्यधिक रक्त निकलना आदि।
  4. कम से कम एक तंत्रिका लक्षण जैसे:- अंधापन, बहरापन, विभ्रम (Halbucination) गले में दर्द, खाते समय निगलने में कठिनाई दो वस्तुऐं दिखना, आवाज न निकलना, शरीर के किसी भाग में कमजोरा, मिर्गी जैसी गतिविधि।


 


4.    कायप्रारूप दर्द विकृति (Somato form Pain Disorders) :- इस विकृति (Disorders) में रोगी गंभीर एवं स्थायी तौर पर दर्द का अनुभव करता है। जबकि इस तरह के दर्द का कोई दैहिक (Physical basis) नही होता है। इस तरह का दर्द प्रायः दिल या अन्य महत्वपूर्ण अंगो के क्षेत्र से संबंध होता है। मेडिकल जाॅंच के बाद भी इसका कोई आधार नही मिलता है। सामान्यतः इस तरह के दर्द उत्पत्ति का संबंध किसी प्रकार के संधर्ष व तनाव से होता है या जब व्यक्ति किसी दुखद परिस्थिति से छुटकारा पाना चाहता है या अन्य लोगो की सहानुभूति या ध्यान अपनी ओर खींचना चाहता है तो इस तरह का दर्द व्यक्ति में उत्पन्न होते देखा गया है। अधिकतर यह रोग 40-50 वर्ष की आयु में प्रारंभ होता है। मनोचिकित्सकों के अनुसार इस रोग के निदान में काफी दिक्कतें आती हैं। क्योकि दर्द एक पूर्णतः आत्मनिष्ठ अनुभूति (Subjective experience) है जो मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित होने वाली घटना है। अतः यह पहचान करना मुष्किल हो जाता है  कि व्यक्ति में होने वाला दर्द (Somato form Pain Disorders)  है या यह वास्तविक दर्द है।



5. रूपांतर विकृति या रूपांतर हिस्ट्रीया (Conversion Disorders or Conversion hysteria) :- इसमें मानसिक तनाव की स्थिति मेँ शरीर के क्रियाकलाप में आये नकारात्मक बदलाव जिसे शारीरिक संरचना के आधार पर प्रमाणित न किया जा सके उसे कहते (Conversion disorder) कहते है। इस रोग में न्यूरोलाॅजी से संबंधी रोग जैसे दिखने वाले लक्षण होते है। लेकिन विस्तार से जाॅंच करने पर ये लक्षण न्यूरोलाॅजी या मेडिसिन के विकार नही पाए जाते है।
ये लक्षण हो सकते है जैसे:- अंधापन, सुन्नपन, गर्दन, टेडा होना, मिर्गी जैसा, बोल बंद होना, गिरना, चाल बदलना , बहरापन, उल्टी, गले मे गोला महसूस होना, दस्त, पेशाब, रूकना इत्यादि।
इस रोग के कुछ लक्षण बहुत तीव्र न होकर हल्के रूप में पाए जाते है जो एक तिहाई लोगों मेँ मिल सकते है कम तीव्र होने की वजह से चिकित्सीय सेवा तक उन्हे वही लाया जाता है। अलग अलग शोधों मे इसकी व्यापकता 5-15 प्रतिशत तक पाई गयी है, पुरूषों के मुकाबले यह रोग महिलाओं में 2-10 गुना तक ज्यादा पाया जाता है। बाल अवस्था और युवाओं में यह रोग ज्यादा पाया जाता है।


उपचार की कई प्रविधियाॅं है, इनमें से कुछ प्रमुख है : (Treatment of somatoform Disorder) 



1. समना (Conforntaion) : इस प्रविधि में चिकित्सक रोगी को अपने लक्षणों के प्रति अधिक जागरूकता बढाकर उसका उपचार करने की कोशीश करते है। जैसे चिकित्सक हिस्ट्रीया के एक ऐसे रोगी को जिसे दिखलाई नही दे रहा है, उसे कुछ नही दिखलाई देने के बावजूद भी उसका निष्पादन दृष्टि कार्यी पर अच्छा बतलाता है। इसका परिणाम यह होता है कि रोगी की दृष्टि चेतना (Visual awareness) बढ जाती है और रोगी में धीरे-धीरे सामान्य दृष्टि लगभग कायम हो जाती है। क्योंकि रोगी को आत्म सम्मान व आत्म विश्वास दिलाना अति आवश्यक होता है।



2. सुझाव (suggestion) : यदि चिकित्सक पूरे विश्वास के साथ रोगी को मात्र यह सुझाव देता है कि उसके लक्षण अब जल्द ही दूर हो जाऐगे तो इससे भी रोग के उपचार पर अनुकूल प्रभाव पडते देखे गये है। (Onversion Hysteria) के रोगियों सुझाव ग्रहण शीलता का गुण अधिक होता है। और चिकित्सकों का यह दावा रहा है कि यदि ऐसे रोगियों को पूरे विश्वास के साथ यह सुझाव दिया जाता है कि उसके रोग के लक्षण समाप्त हो जाएंगे तो सचमुच में ऐसे रोग के लक्षण बहुत हद तक समाप्त हो जाते दिखते है।



3. मनोवैष्लेषिक सुझ (Psychoanalytic insight) : Psychoanalytic Therapy में somatoform disorder के उपचार के लिए रोगी के (Psychoanalytic Symptoms) उत्पन्न करने पर अधिक बल डाला जाता है। इस तरह के सुझ के उत्पन्न हो जाने पर रोगी उन मानसिक संधर्षी के बारे में उत्तम समझ हासिल कर लेता है। जो उसमें दैहिक लक्षण Psychoanalytic Symptoms उत्पन्न किये जाते है।



4. अन्य चिकित्साएं : Somatoform Disorder के उपचार में दूसरे तरह की चिकित्साओं का भी उपयोग सफलतापूर्वक किया गया है। चिकित्सकों को अपने अध्ययन में पाया गया है कि एमीट्रीपटाइलाईन (Amitriptyline) जो एक तरह का विषाद विरोधी (Antidepressant) औषध है तथा जिसका दर्द निवारक प्रभाव भी होता है। से दर्द विकृति के रोगियों को लाभ होता है। तथा कुछ चिकित्सको का मानना है कि दर्द विकृति के लक्षण को दूर करने में सूझपूर्ण राय (Sensible Advice) को भी अहम भूमिका होती है। इनके अनुसार जब रोगी को कहा जाता है कि उसके चिकित्सा का लक्ष्य दर्द से मुक्ति दिलाना नही है बल्कि उन्हें दर्द पर अपना नियंत्रण कायम कर लेना है ताकि व अपनी जिन्दगी मे ठीक से समय व्यतीत कर सकें, तो इसका भी काफी फायदा उन्हे होता है। Somatoform Disorder  के उपचार में पारिवारिक चिकित्सा (Family Therapy) को भी महत्वपूर्ण बतलाया गया है।



मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ही और देख रेख में ही इस रोग पर उपचार किया जाता है। तथा उन्ही के अनुसार (Therapy) दी जाती है। जिससे रोगी जल्द ही ठीक हो सके। तथा ठीक से अपना समय व्यतीत कर सके। 


Dr. Shivali Mittal


94145 43057