लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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दक्षिण के तेलंगाना राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस में सब कुछ ठीक नज़र नहीं आ रहा। रेवंत रेड्डी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में दो मंत्रियों के सहित लगभग एक दर्जन विधायक कांग्रेस सरकार के काम काज से संतुष्ट नहीं है। उनका आरोप है कि कुछ गिने चुने मंत्रियों के अलावा अन्य मंत्रियों को स्वतन्त्र रूप से काम नहीं करने दिया जा रहा। अधिकारियों को मौखिक रूप से यह कहा गया है कि वे इन मंत्रियों को अधिक भाव नहीं दे। उनके द्वारा बुलाई गई बैठकों में न जाएँ। उनका कहना है कि यह सब मुख्यमंत्री के कहे जाने से ही हो रहा है।
पिछले विधानसभा चुनावों, जो नवम्बर 2023 में हुए थे, में कांग्रेस 119 सदस्यों वाली विधानसभा के लिए भारी बहुमत से जीती थे। इसके कुल 75 विधायक चुने गए थे। आन्ध्र प्रदेश को विभाजित कर तेलंगाना 2014 में अस्तित्व में आया था। इस पृथक राज्य के लिए लम्बा आन्दोलन तेलंगाना राष्ट्र समिति ने किया था। अलग राज्य बनने के बाद समिति की (जिसका नाम बाद में बदलकर भारत राष्ट्र समिति कर दिया गया) की सरकार बनी और इसके नेता के.चंद्रशेखर राव राज्य के मुख्यमंत्री बने। उनकी पार्टी 2019 में फिर भारी बहुमत से सत्ता में आई।
2023 के चुनावों से कुछ पहले समिति के एक दर्ज़न से भी अधिक विधायक पार्टी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस पार्टी ने न केवल उनको अपने साथ लिया बल्कि चुनावों में उन्हें अपना उम्मीदवार भी बनाया। इन विधायकों को लगा था कि समिति का तीसरी बार सत्ता में आना मुमकिन नहीं। उनका कहना था पार्टी के मुखिया और राज्य के मुख्यमंत्री तानाशाह की तरह पार्टी और सरकार चला रहें है। पार्टी और सरकार पर चंद्रशेखर राव उनके बेटे रामा राव, बेटी कविता तथा भतीजे हरीश राव का पूरा कब्ज़ा है। समिति एक परिवार की पार्टी बन गई है।
चुनावों के समय रेवंत रेड्डी राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वे राजनीति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के घटक विद्यार्थी परिषद् के जरिये आये थे। फिर पार्टी बदल बदल कर आखिर में कांग्रेस में शामिल हो गए। वे एक कुशल संगठक माने जाते है। कांग्रेस पार्टी आला कमान ने उनको राज्य पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त करके विधानसभा चुनाव की कमान भी उनको सौंप दी। यह श्रेय रेड्डी को ही जाता है कि उन्होंने राज्य में मृत सी हो चुकी कांग्रेस को नया जीवन दिया। तेलंगाना राष्ट्र समिति से जो लोग कांग्रेस में आये वे लगभग सभी के सभी चुनाव जीतने सफल रहे। जिनको मंत्री बनाया गया उनमें एक पोंगुलेटी श्रीनिवास रेड्डी भी थे। राजनीतिक हलकों के अनुसार यही रेड्डी ही रेवंत रेड्डी के खिलाफ बगावत का नेतृत्व कर रहे है। खबरों के अनुसार वे लगभग एक दर्ज़न विधायकों के साथ कम से कम दो बार गुप्त बैठकें कर चुके है। इनमें से एक बैठक राज्य की राजधानी हैदराबाद से दूर एक फार्म हाउस में हुई तथा दूसरी शहर के एक नामी गिरामी होटल में हुई। इन बैठकों में यह रणनीति तैयार की गई के वे अपनी बात पार्टी हाई कमान के पास कैसे पहुंचाएं। उधर रेवंत रेड्डी गुट का कहना है कि पूरी कोशिशों के बाद भी ये लोग केवल 7 या 8 विधायकों को ही जुटा पाए। इनकी इन गुप्त बैठकों के बारे में पार्टी आला कमान को अवगत कर करवा दिया गया है तथा दिल्ली उनको चेतावनी भी दी चुकी है कि वे पार्टी में किसी प्रकार का असंतोष न फैलाएं। इस प्रकार की गुटबंदी को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। अगले कुछ महीनों में राज्य में विधान परिषद् की कुछ सीटों के साथ स्थानीय निकायों के चुनाव भी होने है। अगर पार्टी में इस तरह के अंसतोष पर अभी से लगाम नहीं लगाई गई तो इन चुनावों में पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
2023 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को केवल 8 सीटें मिली थी और इसे कुल 19 प्रतिशत वोट मिले। लेकिन 6 महीने बाद हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी कुल 17 में से 8 सीटें जीतने में सफल रही इसे 35 प्रतिशत वोट मिले। उधर कांग्रेस ने भी 8 सीटें जीती लेकिन इस वोट 41के प्रतिशत से घटकरलगभग 17 प्रतिशत ही रह गए। कुछ चुनावी माहिरों का कहना है कि अगर समय रहते कांग्रेस पार्टी नहीं चेती तो विधान परिषद् और स्थानीय चुनावो में बीजेपी कोई बड़ा उलट फेर कर सकती है। उधर रेवंत रेड्डी किसी भी कीमत पर बीजेपी को अपना खेल नहीं करने देना चाहते। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)