अंग्रेजों की दास्ता से हम मुक्त तो हो गए हैं पर जाते-जाते अंग्रेज हमें मानसिक गुलामी। में ऐसा जकड़कर कर गए हैं कि देश की खुशहाली की बात करना बेमानी है।
रायसीना हिल्स पर राष्ट्रपति भवन बना है उसमें 340 कमरे बने हुए हैं उसकी देखरेख का सालाना खर्च लगभग 50 करोड़ से भी अधिक है जिस देश की आधी जनता भूखी सोती हो तो क्या इस राष्ट्रपति भवन पर उसी जनता की खून पसीने की कमाई को यू व्यर्थ खर्च करना चाहिए जब देश आजाद हुआ तो गांधीजी इस पक्ष में नहीं थे। अगर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चाहते तो गांधी जी के सुझाव को ध्यान में रखकर कोई ठोस निर्णय ले सकते थे।
राष्ट्रपति महोदय के लिए कहीं दूसरी जगह एक बंगला बनवा दिया जाए और और राष्ट्रपति भवन को छोटी-छोटी इकाइयों में विभक्ति करके उच्च स्तरीय संस्थाओं को किराए पर पर दिया जा सकता है और उस आय से इस भवन की देख रेख का खर्चा निकाला जा सकता है या फिर उन्हीं संस्थाओं पर इसकी जिम्मेदारी डाली जा सकती है। बचे हुए सालाना लगभग 50 से 60 करोड रुपए किसी देश हित की योजनाओं में लगाया जा सकता है। केंद्र सरकार को भी इस पर गंभीरता से विचार करना होगा।
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)