वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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लगभग छ: दशक पूर्व बंगाल की खाड़ी में ऐसा तूफान आया था जिसमें तमिलनाडु के तटीय जिले रामनाथपुरम, जहाँ प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ रामेश्वरम है, को भयानक रूप से तबाह कर दिया था। बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु तो हुई ही, इस तूफ़ान ने जन सम्पतियों को बड़े स्तर पर खत्म कर दिया था। 1964 के इस समुद्री तूफ़ान में प्रसिद्ध पब्बन पुल बह गया था। मकान और सडकों और रेल लाइनों को नामों निशान ही नहीं रहा था।
रामायण में एक स्थान धनुषकोटि का उल्लेख है। यह इस समुद्रीय इलाके का आखिरी स्थल है। यही से भगवान राम की वानर सेना ने लंका तक जाने के लिए समुद्र पर पुल बनाया था। जिसे राम सेतु के नाम जाना जाता है। तूफ़ान आने से पहले यहाँ भारतीय रेलवे का आख़री स्टेशन था। रामेश्वरम से यहाँ तक रोड भी थी। यहाँ से लोग नावों द्वारा श्रीलंका के तटीय शहर तल्लामलाई तक जाते थे। श्रीलंका से आने वाले हिन्दू इसी मार्ग से आना जाना करते थे। देश के पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत एपीजे अब्दुल कलाम भी इसी इलाके के रहने वाले थे।
तूफान इतना तेज था कि अच्छा खासा यह तटीय गाँव नक़्शे से पूरी तरह से गायब हो गया। बस रेलवे स्टेशन के बचे हुए खंडहर इस शहर की मौन रूप से कथा बता रहे थे। यहाँ से श्रीलंका केवल 27 किलोमीटर दूर है। यहाँ समुद्र का हिस्सा उथला है। जब समुद्र शान्त होता हो है तो एक पतली से पगडंडी श्रीलंका तक जाती दिखती है। यह चूने और पत्थर से बनी एक प्राकृतिक संरचना है। लेकिन राम भगत ये मानते है राम की वानर से पत्थरों से समुद्र के बीच यह मार्ग बनाया था।
तूफ़ान के बाद केंद्र और तमिलनाडु के सरकारों ने इस क्षेत्र का पुनर्विकास की अनेक अनेक योजनायें बनायीं लेकिन धरातल पर कोई खास काम नज़र नहीं आया। 2015 में जब अब्दुल कलाम के मृत्यु हुई तो यह चर्चा शुरू हुई कि उनका स्मारक कहाँ बनाया जाये। यह सुझाव सामने आया कि यह स्मारक दिल्ली में होना चाहिए। लेकिन उनके परिवार के लोग चाहते थे यह स्मारक इसी इलाके में ही हो। आखिर में स्मारक यहाँ बनाने का निर्णय किया गया। इसके लिए पीकराम्बू चुना गया जो रामेश्वरम से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर है। स्मारक का निर्माण का काम जल्दी ही शुरू हो गया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री कार्यालय स्तर पर इस सारे इलाके का फिर से विकास करने की एक नई योजना तैयार की गई। एक तरफ जहाँ स्मारक का निर्माण कार्य शुरू हो हुआ, दूसरी ओर रामनाथपुरम से धनुषकोटि तक दो लेन वाली सड़क का निर्माण का काम भी शुरू हो गया। यह सब 2017 के आसपास शुरू हुआ। 2019 में धनुषकोटि तक फिर रेल लाइन बनाये जाने की योजना की भी घोषणा की गई। जब तक सड़क का निर्माण नहीं हुआ था तब तक यहाँ आने वाले पर्यटक यहाँ से समुद्र तट के आखरी छोर तक नहीं जा पाते थे। अब रामेश्वरम मंदिर तथा अन्य स्थानों आने वाले यात्री यहाँ तक आये बिना वापिस नहीं जाते। लेकिन अभी तक यह स्थान अपना पहले जैसा रूप नहीं ले पाया है।
पिछले दिनों जब श्रीलंका के राष्ट्रपति अरुणा कुमार दिस्सानायके भारत की यात्रा पर आये और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मिले तो धनुषकोटि को फिर से विकसित करने के बारे में बात हुई। दोनों पक्ष चाहते थे कि धनुषकोटि और लंका के बीच नौका सेवा जल्दी से जल्द शुरू की जाये। जिस दिन यह नौका सेवा शुरू होगी उसके साथ ही इस पौराणिक तटीय शहर की तस्वीर बदलनी शुरू हो जायेगी।
भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र के इस इलाके में विवादस्पद सेतु समुद्रम परियोजना को शुरू करने के बारे में बात हुई। यहाँ समुद्र उथला होने के कारण बड़े समुद्री जहाजों को लम्बे मार्ग से आना जाना पड़ता है। योजना के अनुसार दोनों देश के बीच के समुद्र में जो चूने और पत्थर के प्राकृतिक सरचना है, उसे हटा समुद्र को गहरा किया जाये ताकि बड़े जहाज यहाँ से गुजर सकें। चूंकि राम सेतु से धार्मिक भावनाएं जड़ीहुई हैं इसलिए वे लोग नहीं चाहते के रामायण काल के राम सेतु के साथ कोई छेड़छाड़ की जाये या इसे पूरी तरह से तोड़ दिया जाये। इस मामले में एक याचिका भी सर्वोच्च न्यायलय में लंबित है। इस पर काम कभी होगा या नहीं होगा इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन अगर सब ठीक ठाक रहा तो यहाँ से दोनों देशों के बीच छोटी नौकायों के आने जाने का काम आने वाले समय शुरू हो सकता है।