वर्तमान में बढ़ता प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है। असंतुलित जीवन शैली, वाहनों का बढ़ता प्रयोग, औद्योगिक प्रतिष्ठान, बढ़ता कचरा, अधिक अन्न उत्पादन की चाहत के चलते उर्वरकों का बढ़ता उपयोग, सुख-सुविधाओं की अंधी चाहत के चलते भौतिक सुख-संसाधनों की बेतहाशा बढ़ती मांग आदि तो इसका सबसे बड़ा कारण है ही, लेकिन इसका एक अहम कारण पर्यावरण हितैषी पेड़ न लगाया जाना भी रहा है। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत का। उक्त विचार उन्होंने गत दिवस एटा स्थित अपने आवास पर प्रदूषण की व्यापकता के संदर्भ में पूछे सवालों के जबाव पर व्यक्त किये। उनके कथनानुसार दर असल देश में वृक्षारोपण के नाम पर सरकारों का एकमात्र उद्देश्य हरियाली बढ़ाना रहता है, न कि पर्यावरण हितैषी और आक्सीजन छोड़ने वाले पेड़-पौधे लगाने को प्रोत्साहन देना।
अक्सर होता यह है कि सभी विभाग अपनी इच्छानुसार कम कीमत और आसानी से बढ़ने वाले पेड़-पौधे लगाने को प्राथमिकता देते हैं। जबकि जरूरत है देश में पर्यावरण हितैषी यानी पर्यावरण को बढा़वा देने वाले लाभकारी नीम, पीपल, बरगद, जामुन, शीशम,रीठा, आम, देवदार,कैल, चीड़, अमलतास, कदम्ब, अशोक, पीला गुलमोहर, बुरांस, चिनार, सावनी, कैथी सहित खैर, कैंथ, कचनार, हिमालय केदार, बेऊल, खरसू ओक, निर्गल, कौरकी कोरल, सिल्क कौटन ट्री, पाल्श, सिल्क ट्री मिमोसा, पाजा, ब्लू पाइन, ब्रेओक, बन ओक, चिलगोजा, पेन्सिल केदार, चीर पाईन, शुकपा, लूनी, डेरेक,खिडक व दादू आदि पेड़-पौधे लगाये जाने की। ऐसा करके जहां हम पर्यावरण में बढ़ रहे प्रदूषण पर किसी हद तक अंकुश लगा सकते हैं, वहीं प्राणी मात्र के जीवन बचाने में भी कामयाब हो सकते हैं।