हमारा सामाजिक परिवेश बदल रहा है जहां संयुक्त परिवार होते थे अब एकल परिवार प्रणाली का प्रचलन हो गया है। संयुक्त परिवार में बच्चे, बाल, वृद्ध सभी का समय अच्छा गुजर जाया करता था। सामाजिक प्रतिबंध थे जो अलिखित होते थे फिर भी पूरा समाज उनको मानता था। सामाजिक व्यवस्थाएं सुचारू रूप से बनी हुई थी। परिवार में एक दूसरे के प्रति प्रेम की असीम गंगा बहती थी।
युवा होते बच्चों के लिए सामाजिक वातावरण था। सभी मर्यादा में रहते थे। धीरे-धीरे समाज की परिभाषा बदल गई हमारे सामाजिक व नैतिक मूल्यों के मायने बदल गए। अब इनका विघटन हो गया। अब हमारे देश में वृद्ध आश्रम व अनाथ आश्रम की निरंतर संख्या बढ़ती जा रही है, जिन मासूम बच्चों का बचपन मां के आंचल के तले गुजरना चाहिए। वे अनाथ आश्रम में पलते हैं। घर के बड़े बुजुर्ग वृद्ध आश्रम मिलते हैं। जो वट वृक्ष की तरह हमारी सुरक्षा करते और उनकी छांव के तले पूरा परिवार सुरक्षित था। इसका एक समाधान निकाला जा सकता है कि बच्चों और बुजुर्गों के लिए सम्मिलित आश्रम हो ताकि बुजुर्गों का समय उन बच्चों के साथ हंसते खेलते गुजर जाए और बच्चों को उन बुजुर्गों से प्यार मिले। अगर स्वयंसेवी संस्थान और सरकार इस ओर ध्यान दें तो समाज में बहुत बड़ा बदलाव हो सकता हैं। बुजुर्ग लोग बच्चों को पढ़ा लिखा भी सीखा सकते हैं। इन आश्रमों का नाम स्नेह आश्रम रखा जाए।
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़, (राजस्थान)।