लेखक : नफीस आफरीदी
स्वतंत्र पत्रकार, बी-70, प्रगति पथ, बजाज नगर, जयपुर- 302015
विश्व प्रसिद्ध अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का उर्स इस वर्ष 24 दिसंबर से प्रारम्भ होकर 6 दिन तक चलेगा। इस्लामी माह रजब के चांद दिखने के साथ ही ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स की शुरुआत होने जा रही है। ऐसे में ख्वाजा के चाहने वालों का अजमेर उर्स में हाजरी लगाने का सिलसिला शुरू हो चुका है।
ख्वाजा गरीब नवाज को चाहने वाले पूरी दुनिया मैं मौजूद हैं। सभी की ख्वाहिश रहती है कि वे उर्स के मुबारक मौके पर अजमेर आकर दरगाह में हाजरी लगाएं, लेकिन यहां कहा जाता है कि इरादे रोज बनते हैं और टूट जाते हैं। अजमेर वही आते हैं जिन्हे ख्वाजा बुलाते हैं। ख्वाजा गरीब नवाज का 812वां उर्स के झंडे की रस्म हो चुकी है। आशिकाने गरीब नवाज का अजमेर आने वाले जयरीन का सिलसिला शुरू हो चुका है।
यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि ख्वाजा गरीब नवाज की एक मात्र ऐसी दरगाह है जहां उर्स छह दिनों तक मनाया जाता है। गौरतलब है कि ख्वाजा गरीब नवाज 36 वर्ष की आयु में अजमेर आए थे। यहां वे पहले औलिया मस्जिद में ठहरे। इसके बाद वे आनासागर के समीप एक पहाड़ी पर गुफा में रहने लगे। यहां रहकर उन्होंने 40 दिन इबादत की। यहां से ख्वाजा गरीब नवाज के चाहने वाले उन्हें लेकर यहां ले आए. इसके बाद यहीं पर रहकर ख्वाजा गरीब नवाज इबादत करते और लोगों से मिलते-जुलते और उनकी दुख तकलीफों को दूर करते। ख्वाजा गरीब नवाज रजब का चांद देख कर यहां अपने हुजरे में चले गए। उन्होंने जाने से पहले अपने शिष्यों को कहा था कि वे याद ए इलाही के लिए इबादत में बैठने जा रहे हैं इसलिए कोई भी उनके पास आने की कोशिश नहीं करें।
रजब के चांद से छठी तक होता है उर्स : रजब की चांद की तारीख से 5 तारीख तक ख्वाजा गरीब नवाज अपने हुजरे से बाहर नही आए। छठे दिन जब हुजरे से कोई आवाज नही आई तब उनके मुरीदों ( शिष्यों ) को चिंता होने लगी। सबने मिलकर आपस में मशविरा किया और फैसला किया कि हुजरे को खोला जाए। जब हुजरा खोला गया तब ख्वाजा गरीब नवाज का विसाल हो गया था यानि इस फ़ानी दुनिया को छोड़ व्हुके चुके थे। विसाल के वक्त उनका चेहरा रोशन था और उनकी पेशानी पर लिखा था कि अल्लाह का दोस्त अल्लाह की मोहब्बत में अल्लाह से जा मिला। हुजरे में ख्वाजा गरीब नवाज ने दुनिया से कब परदा किया यह किसी को पता नहीं। इसी वजह से उनका उर्स 6 दिन मनाया जाता है।
ख्वाजा गरीब नवाज ने 80 से 82 साल का एक लंबा वक्त अजमेर में बिताया। अपने पूरे जीवन में ख्वाजा गरीब नवाज में इंसानियत और मोहब्बत का पैगाम दिया। ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का जन्म इराक के संदल शहर में हुआ था। उनके माता-पिता इस दुनिया से तब रुखसत हुए जब वह 14 वर्ष की आयु के थे. अपने गुजारे के लिए वह बागवानी किया करते थे। इस दौरान ही उन्हें एक संत इब्राहिम कंदोजी मिले। इसके बाद ही उनका मन अध्यात्म की ओर बढ़ने लगा। इबादत में मशगूल रहने कि वजह से उन्होंने अपनी पवन चक्की और बाग बेच दिया और उससे जो पैसे मिले उनमें से कुछ गरीब और यतीमों में बांट दिए। बाकी बच पैसे लेकर वो हज करने के लिए मक्का मदीना चल पड़े। मक्का सहरीफ़ के बाद उन्होने मदीना का रुख किया। वहाँ उन्हें उस्मानी हारुनी नाम के पीर मिले जिन्होंने ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती और उनके फुफेरे भाई फखरुद्दीन गुर्देजी को हिंदुस्तान जाने के लिए कहा।
ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती और उनके फुफेरे भाई हिंदुस्तान के लिए रवाना हो गए। वे बगदाद से ईरान और इराक होते हुए समरकंद, बुखारा के रास्ते काबुल और कंधार तक पहुंच गए तो उन्हें पता चला कि हिंदुस्तान इस ओर नहीं है। ताशकंद से वापस वह काबुल लौट आए और यहां से लाहौर होते हुए दिल्ली पहुंचे फिर दिल्ली से अजमेर आए।
ख्वाजा गरीब नवाज ने अपना पूरा जीवन सादगी से बिताया। अपने पीर से मिले लिबास को ही उन्होंने ताउम्र पहने रखा। कहते हैं उन्होने जौ का दलिया ही खाया। दरगाह में सदियों से हर दिन जौ का दलिया बनता आया है। ऐसा माना जाता है कि सूफी संत मजहब से ऊपर उठ जाते हैं और उनका मजहब केवल इंसानियत रह जाता है, ख्वाजा गरीब नवाज यहीं पर झोपड़ी में रहते थे जहां उनकी मजार है। यहीं पर लोग उनसे अपनी दुख तकलीफ़ों का हल ढूँढने के लिए मुलाक़ात करने आया करते थे। लोगों की दुख तकलीफ को दूर करने के साथ ही ख्वाजा गरीब नवाज ने उस दौर में व्याप्त रूढ़िवादी परंपराओं से भी लोगों को बाहर निकाला। यही वजह है कि ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में हर धर्म, जाति के लोग हाजरी लगाने के लिए आते है।
उनके उपदेश सभी धर्मावलम्बियों के लिए आज भी प्रासंगिक हैं । उनका कहना था कि ईश्वर के सच्चे भक्त का हृदय प्रेम की अग्नि से जलता रहता है, जिससे उसमें प्रवेश करने वाला कोई भी वासना राख में बदल जाता है। सच्चा भक्त वह है जिसे तीन गुण प्राप्त होते हैं: नदी जैसी दानशीलता, सूरज जैसी स्नेह और धरती जैसा आतिथ्य जो सभी देने में विश्वास करती है ।उनका यह संदेश था कि पाप से अधिक हानिकारक है अपने साथी मनुष्यों को तुच्छ समझना यानि वे समानता के पक्षधर थे।
उनका मानना था कि सच्चे भक्त का मन हमेशा ईश्वर की इच्छा का पालन करता है और ईश्वर की नाराजगी से डरता है। वे कहते थे कि वस्तुओं के सार को देखने वाला व्यक्ति आमतौर पर मौन और ध्यानमग्न रहता है।वह व्यक्ति पक्का पापी है जो पाप करता है और फिर भी मानता है कि वह ईश्वर के चुने हुए लोगों में से एक है। वे कहते थे कि दरवेश वह है जो किसी जरूरतमंद को निराश नहीं करता। धैर्य दुख, पीड़ा और आपदा को बिना किसी शिकायत के सहने में प्रकट होता है।वस्तुओं के सार को जानने वाला जितना अधिक सीखता है,उतना ही अधिक आश्चर्यचकित होता है।
सूफी मृत्यु को मित्र, विलासिता को शत्रु और ईश्वर की याद को महिमा मानता है। दरवेश का सर्वोत्तम समय तब होता है जब उसके मन में कोई चिंता नहीं होती। ज्ञान का महासागर ईश्वर द्वारा समर्थित होता है, जबकि प्रकाशन मनुष्य से संबंधित होता है। नमाज ईश्वर की निकटता की सीढ़ी है।जो व्यक्ति झूठी शपथ लेता है, उसके घर से समृद्धि चली जाती है और वह जल्दी ही बर्बाद हो जाता है।कब्रिस्तान में हँसना, खाना-पीना या कोई अन्य सांसारिक कार्य नहीं करना चाहिए।अंतिम यात्रा के लिए अपने उपकरण हमेशा तैयार रखें और मृत्यु को हमेशा अपने सिर पर मंडराते हुए सोचें। ईश्वर जिनसे प्रेम करता है, उन पर दुर्भाग्य और दुख बरसाता है।नर्क की आग से बचाव भूखों को भोजन, प्यासों को पानी, जरूरतमंदों की आवश्यकताओं को पूरा करने और दुखी लोगों से मित्रता करने से नर्क की आग से बचा जा सकता है।
वे कहते थे जैसे सुबह सूरज की रोशनी बढ़ती है, वैसे ही ईशराक़ नमाज पढ़ने वाले में दिव्य प्रकाश फैलता है। जब आरिफ किसी चीज पर ध्यान करता है, तो वह इतनी गहराई में चला जाता है कि हजारों फरिश्ते भी उसे विचलित नहीं कर सकते।हर मानव बाल के नीचे अशुद्धता होती है, इसलिए पानी को हर बाल की जड़ तक पहुंचना चाहिए। मानव पसीना अशुद्ध नहीं होता। मृत्यु से पहले पश्चाताप करें और अंतिम समय से पहले नमाज अदा करें। ईश्वर का सच्चा प्रेमी वही है जो हमेशा ईश्वर की याद को दिल में बनाए रखता है। आज उनके आस्ताने पर सभी धर्मों के राजा से लेकर रंक तक आते हैं और श्रद्धा से शीश नवाते हैं।सदियों बाद भी वे जलवा अफ़रोज हैं और लोगों के दिलों पर राज करते हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)