पेडे का प्रसाद

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बात बहुत छोटी सी है पर मेरे अंतर्मन को कहीं गहरे तक छू गई। मेरे पड़ोस में एक अत्यंत गरीब बुजुर्ग महिला रहती है। उसके बेटे उसको अपने पास नहीं रखते पास ही एक बेटे का घर भी है। मेरा उस महिला के प्रति असीम स्नेह व सहानुभूति थी। मैं कभी-कभी उसको कुछ खाने का सामान दे आया करती थी। 

1 दिन में उससे मिलने गई वह कुछ देर के लिए उनके पास बैठ गई। इतने में उनका बड़ा बेटा कहीं से प्रसाद का डिब्बा लाया उसने एक पेड़ा मुझे दिया। मैंने उसे खा लिया फिर उसने एक पेड़ा अपनी मां को दिया, महिला बेटे से बात करने लगी। 

जब 5 मिनट बाद बेटा चला गया तो उसने  अपने हाथ की मुट्ठी में दबाया हुआ पेड़ा मेरी और किया और बोली= यह प्रसाद खा लो मेरे बेटे ने तुम्हें प्रसाद दिया कि नहीं। मैं बस उन्हें देखतेरह गई और बोली मैंने खा लिया है।

मैं हैरान थी। उस बुजुर्ग महिला का मेरे प्रति  प्रेम देखकर मेरी आंखों में आंसू बह रहे थे। उस गरीब के घर में मेरी आव भगत करने का सबसे अच्छा और उत्तम व्यवस्था यही थी। 

लेखिका : लता अग्रवाल चित्तौड़गढ़।