भारतीय चिकित्सा जगत का "शेर" पद्मश्री प्रो.(डा.) गोपाल कृष्ण विश्वकर्मा

पद्मश्री प्रो.(डा.) गोपाल कृष्ण विश्वकर्मा

(16 अक्टूबर 1934 - 24 मार्च 2004)

लेखक : रामजी लाल जांगिड 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता

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भारत के पूर्व प्रधान मंत्री श्री चंद्रशेखर जी ने अपने मित्र पद्मश्री प्रो. (डा.) गोपाल कृष्ण विश्वकर्मा को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा कि " डाक्टर विश्वकर्मा एक विशिष्ट व्यक्ति थे। समाज के सभी क्षेत्रों में उनका विशेष स्थान था, सम्मान था। उत्तरप्रदेश के पूर्वी जिले गाज़ीपुर में पैदा विश्वकर्मा एक विश्वजन बन गये थे। चिकित्सा के क्षेत्र में उन्होंने एक कीर्तिमान स्थापित किया। अपने मानवीय गुणों से उन्होंने उस हर व्यक्ति को प्रभावित किया, जो उनके सम्पर्क में आया। आज वे हमारे बीच नहीं रहे। पर उनकी याद उन सब लोगों को प्रेरणा देती रहेगी जो एक सुखी, संवेदनशील समाज की स्थापना का सपना संजोये हुए हैं। उनकी स्मृति को मेरा कोटिशः प्रणाम" 29.4.04 चंद्रशेखर मेरी पत्नी (डा. सत्या) के बड़े भाई डा. गोपाल कृष्णजी के एक और घनिष्ट मित्र थे पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी। ज्ञानी जी ने उन्हें अपना स्वास्थ्य सलाह‌कार बनाया था। उनके तीसरे मित्र थे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री पी. वी. नरसिंह राव जी।वह 1973 से 1977 तक ईरान के शाह के सलाहकार और वहां की जुंडी शाहपुर यूनिवर्सिटी में हड्डी रोग विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष रहे।

उन्होंने गोवा मेडिकल कालेज में 1970 से 1972 तक हड्‌डी रोग विभाग की स्थापना की और भारत का पहला हड्डी बैंक बनाया और अंग्रेजी में चिकित्सा के क्षेत्र में एक शोध पत्रिका शुरू की।

उन्होंने अप्रैल 1983 से मई 1988 तक नई दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक रहते हुए उसका कायाकल्प कर दिया और वहां केन्द्रीय हड्डी रोग संस्थान की स्थापना की। आजकल उनका बड़ा बेटा प्रो. (डा.) लवनीश उस संस्थान का निदेशक है। 29 अक्तूबर 1986 को वह स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक बन गए। उन्होंने एम.बी.बी.एस पास करने के बाद इंटर्नशिप करने वालों का मासिक वेतन 17 हजार रु. से सीधे 70 हजार रु. करने के लिए भारत सरकार को मजबूर कर दिया और इसके लिए अपनी नौकरी दांव पर लगाकर राजीव गांधी सरकार का कोप झेला। मगर गोपाल कृष्ण जी ने झुकना, सीखा ही नहीं था, इसीलिए उन्हें चिकित्सा जगत का शेर कहते हैं।