वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
जमीनों के आवंटन को लेकर हुए कथित घोटालों और अनियमितताओं को लेकर कर्नाटक के राज्यपाल थेवरचंद गहलोत, मुख्यमंत्री सिद्धारामिया केंद्रीय उद्योग मंत्री और एचडी कुमारस्वामी तथा कांग्रेस के अध्यक्ष मल्किअर्जुन एक दूसरे से टकराव की स्थिति में आ गए है। एक दूसरे पर आरोपों का दौर जारी है। सत्तारूढ़ दलकांग्रेस पार्टी के नेता राज्यपाल पर पक्षपात का आरोप लगा रहे है। मामला राज्य के हाई कोर्ट तक पहुँच गया है।
सारा विवाद लगभग दो महीने पहले शुरू हुआ जब सूचना केअधिकार के लिए एक सक्रिय कार्यकर्ता के हवाले से कुछ अख़बारों में यह खबर छपी कि मुख्यमंत्री सिद्धारामिया की पत्नी को मैसूरू शहरी विकास प्राधिकरण ने नियमों से परे जाकर उनकी 3.16 एकड़ जमीन , जो शहर के बाहरी हिस्से में थी, का अधिग्रहण करके शहर के एक महंगे इलाके में 14 आवासीय भू खंड आवंटित कर दिए जिनकी वर्त्तमान कीमत लगभग 66 करोड़ रूपये बताई जाती है। इस कार्यकर्त्ता ने अखबारों में ख़बरें छपवाने के साथ साथ राज्यपाल को एक ज्ञापन देकर उनके खिलाफ अदालत में मुकदमा दाखिल करने की अनुमति मांगी। मुख्यमंत्री ने इसे सरासर गलत बताया। उनका कहना था कि यह जमीन उनकी पत्नी को तब मिली जब राज्य में बीजेपी का शासन था। सब कुछ नियमों के अंतर्गत ही हुआ। लेकिन कार्यकर्ता का दावा था कि यह आवंटन उन नियमों को आधार बनाकर किया गया जो 2011में निरस्त कर दिए गए थे। चुनाव लड़ने केअधिनियमों के अधीन उम्मीदवार को नामंकन पत्र दाखिल करने के समय अपनी और अपने परिवार जनों की सम्पति का पूरा विवरण देना होता है।
उसका कहना था कि सिद्धारामिया ने इस आवंटन के बाद कई चुनाव लड़े लेकिन अपनी सम्पति इसका आवंटन का उल्लेख नहीं किया। जब मामला तूल पकड गया तो सिद्धारामिया ने राज्यपाल से भेंट कर सारा मामला साफ़ तौर बताया। उनका कहना था कि राज्यपाल को इस मामले को कोर्ट में चुनौती दिए जाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए बाद में राज्य मंत्रिमंडल ने भी एक प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल को इस किसी प्रकार के कार्यवाही नहीं करने का अनुरोध किया। लेकिन राज्यपाल थेवरचंद गहलोत ने एक दिन यह अनुमति दे दी। अगले ही दिन हाई कोर्ट में मुख्यमंत्री याचिका दाखिल करदी गई। इसके साथ ही बीजेपी और जनता दल(स) ने मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग कर डाली।
उनका कहना था कि 2011 तत्कालीन मुख्यमंत्री और बीजेपी के नेता येद्दियुरप्पा ने ऐसे ही एक मामले के चलते अपने पद से त्याग पत्र दे दिया था। उस समय मुख्यमंत्री के रूप में येद्दयुरप्पा अपने परिवार को लाभ पौंचाने के लिए वन क्षेत्र की आरक्षित भूमि को अधिसूचना के जरिये अनारक्षित कर दिया था। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की मांग पर तत्कालीन राज्यपाल हंसराज भारद्वाज येद्दियुरप्पा के खिलाफ मुकदमा चलाने के अनुमति थी। भारद्वाज कांग्रेस पार्टी से आते थे तथा केंद्र में इंदिरा गाँधी के शासन काल में विधि मंत्री थे। तब बीजेपी नेताओं ने राज्यपाल पर केंद्र की कठपुतली होना बताया था। वही आरोप अब कांग्रेस के नेता थेवरचंद गहलोत पर लगा रहे है। उनका कहना है कि राज्यपाल निष्पक्ष नहीं तथा केंद्र के इशारों पर काम कर रहे है। इस बीच सिद्धारामिया ने राज्यपाल की अचिसूचना को कर्नाटक हाई कोर्ट में चुनौती दे दी, जहाँ मामला अभी लंबित है।
इसके साथ ही राज्य मत्रिमंडल ने एक प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल को से कहना कि केंद्रीय मत्री उद्योग मंत्री और जनता दल(स) नेता एचडी कुमारस्वामी के खिलाफ खनन पट्टा आवंटन घोटाले में कथित लिप्तता के मामले में मुकदमा चलाने के अनुमति दी जाये। यह मामला 2007 का है जब कुमारस्वामी राज्य के मुख्यमंत्री थे। जानकारी का अनुसार तब उन्होंने एक कंपनी को 505 एकड़ का खनन पट्टा जारी किया था। उन पर 150 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था। इस मामले पर राज्यपाल ने अभी अनुमति नहीं दी है।
इसी बीच बीजेपी नेताओं ने राज्यपाल को दो अलग-अलग पत्र लिकर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे के परिवार को कांग्रेस शासन काल में आवंटित किये गए भूखंडो में अनियमितता को आरोप लगाते हुए मुकदमा चलाने का अनुमति मांगी है। दोनों मामले उनके परिवार दवारा नियंत्रित सिद्धार्थ ट्रस्ट से जुड़े हुए है। यह ट्रस्ट मलिकार्जुन के छोटे बेटे राहुल खरगे चलते हैं। एक मामले में बंगलुरु के ओद्योगिक इलाके में 4 एकड़ जमीन आवंटित करने का है, दूसरा मामला कलबुर्गी जिले में 14 एकड़भूमि से जुड़ा हुआ है। बीजेपी नेता इसे एक बड़ा घोटाला बता रहे हैं जबकि मलिकार्जुन के बड़े बेटे प्रियांक खरगे, जो राज्य में कैबिनेट मंत्री है, कहना है कि इस मामले में कोई अनियमितता अथवा घोटला नहीं हुआ है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)