किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट |
जयपुर। किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने देश में खाद्य तेलों की आत्मनिर्भरता की घोषणा को पूर्ण करने की दिशा में भारतीय खाद्य तेलो के उत्पादन को प्रोत्साहित कर देशवासियों को शुद्ध तेल उपलब्ध कराने के लिये ताड (पॉम) के तरल पदार्थों के आयात को तत्काल प्रतिबंधित करने की आवश्यकता है। देश में तिलहनों की आत्मनिर्भरता ' की दिशा में वर्ष 2012 से पॉम मिशन 11,040 करोड रूपये से आरंभ किया है किन्तु उसके परिणामों के बारे में सरकार मौन बनी हुयी है।
उन्होंने कहा कि देशवासियों की स्वास्थ्य की रक्षा के लिये खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोकने के लिये कानून विद्यमान है जिसमें ऑजीवन कारावास के दण्ड का प्रावधान है। इसके विपरीत खाद्य तेलो में ताड (पॉम) के तरल पदार्थों को मिलावट करने के लिये इस कानून में वर्ष 2008 से ढील देने का प्रावधान' किया हुआ है। जिसमें से वर्ष 2020 से सरसों तेल में मिलावट के सम्बन्ध में तो इसे संशोधित कर हटा लिया गया किन्तु सरसो के तेल में पूर्व से चली आ रही मिलावट को रोकने के लिए सार्थक प्रयास नही हुये है, जिससे देशवासियों को सरसों का शुद्ध तेल उपलब्ध नही है। तेल उद्योग के कर्ताधर्ता लाभ कमाने के लालच में मिलावट को अपना अधिकार समझने लगें है। अन्य खाद्य तेलो में अभी भी मिलावट में ढील के प्रावधान यथावत् है। यह कि ताड (पॉम) के तरल पदार्थ, खाद्य पदार्थों की श्रेणी में नहीं आता तो भी उसे खाद्य पदार्थ की श्रेणी में निरूपित किया हुआ है। जिसे देश में पॉम ऑयल के रूप में प्रचारित किया हुआ है। मिलावट सर्वसाधारण जन के समझ का शब्द है इसे छिपाने के लिए इस मिलावट को ब्लेडिंग (Blending) का नाम दिया हुआ है। इसी का परिणाम है कि चीनी एवं खाद्य तेलो के निदेशालय के अनुसार वनस्पति तेल उत्पादो के ईकाईयों की संख्या 115, परिष्कृति ईकाईयों की संख्या 250, बिल्डिंग (मिलावट) ईकाईयों की संख्या 524 है। इस प्रकार मिलावट करने वाली उद्योगो की ईकाईयों की संख्या सर्वाधिक है। यह कि इसके पूर्व वर्ष 1998 में सरसों के तेल का उपभोग रोकने के लिए ड्रोप्सी महामारी विश्व युद्ध जैसी घटना के रूप में प्रचारित किया गया जबक्ति उस समय सरसों के तेल के कारण ड्रोप्सी जैसी महामारी के कोई लक्षण तक नही थे। खाद्य तेलो में ताड (पॉम) के तरल पदार्थों के मिलावट को युवाओं में हृदयघात से मृत्यु का कारण माना जा रहा है। ताड (पॉम) के तरल पदार्थों को अधिकतम' छः माह तक ही सुरक्षित रखा जा सकता है, इसे सुरक्षित रखने की इससे लम्बी अवधि नही हो सकती इसके उपरांत भी इस प्रकार के उपभोग वर्ष भर तक होते रहते है किन्तु उन पर कोई नियंत्रण नहीं है। तब भी इसकी चर्चा तक नही है। इससे तो यह कहावत चरितार्थ होती है कि "हम आह भी भरे तो जाते है बदनाम, वे कत्ल भी करे तो चर्चा तक नहीं।
रामपाल जाट ने आगे कहा कि वर्ष 1984 तक भारत खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर था, उस समय तक खाद्य तेलो के आयात की आवश्यकता ही नहीं थी। उसके बाद आयात नीति में आयात को प्रोत्साहित करने के कारण खाद्य तेलो के आयात में ' बढोतरी आरंभ हुयी जिसके वर्ष 1991 की वैश्वीकरण उदारीकरण नीति के कारण आयात के पंख लग गयें। आयातित खाद्य तेलो में 56 से 77 प्रतिशत तक का अंश ताड (पॉम) के तरल पदार्थो का रह चुका है। पिछले एक दशक में खाद्य तेलो 'के आयात पर 7,60,500 करोड रूपये का व्यय हुआ जो पिछले एकवर्ष में ही 1,41,500 करोड रूपये पहुँच गया। खाद्य तेलो पर आयात शुल्क 80 से 85 प्रतिशत तक था, जिसे घटाकर शुन्य तक ला दिया गया। देश वासियों में रोष उत्पन्न नही हो इस कारण आयात शुल्क में मामूली बढोतरी को भी बडे रूप में प्रचारित किया जाता है। देशहित में तेल ' के इस खेल को जितना शीघ्रता से रोका जा सके उतना ही अच्छा है।यह कि यदि समझौतो के कारण से आयात को रोकने में सरकार असमर्थतता व्यक्त करें तो आयात शुल्क को 300 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है, जो किसी भी स्थिति में 100 प्रतिशत से कम नहीं होना चाहिए। अन्य खाद्य तेलो में मिलावटी सम्बन्धी दी गई ढील को समाप्त किया जा सकता है जिससे मिलावट करने वालो को दण्डित करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। इसी दिशा में आयातित ताड़ (पॉम) के तरल पदार्थों एवं उनसे तैयार होने वाली खाद्य सामग्री पर "शुद्ध ताइ (पॉम) के तरल पदार्थ एवं ताड़ (पॉम) के तरल पदार्थो से तैयार सामग्री" अंकित किये जाने की बाध्यता एवं इसे खाद्य तेलों की श्रेणी से हटाना भी विकल्प है। यह कि टीवी चैनल "आज तक" के डिजिटल फार्म "किसान तक" ने 06 सितम्बर, 2024 को वाद-विवाद में तथ्यान्वेषण के साथ राष्ट्रीय विमर्श की आवश्यकता बताई है। इसी प्रकार अन्य प्रचार माध्यमों ने भी इस विषय की गंभीरता को उभारा है।यह कि इस आयातित नीति के कारण देश के तिलहनों के उत्पादों के दामो में गिरावट आती है, जिससे उत्पादक किसानो को वह मूल्य भी प्राप्त नही हो पाता जिसे न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में घोषित किया जाता है। सोयाबीन का घोषित न्युनतम समर्थन मूल्य 4892/- रु. प्रति विचटल है जबकि अभी बाजार में 4000/- रु. प्रति क्विटल के भाव चल रहे है। सोयाबीन की उपज 15 दिन बाद बाजार में उपलब्ध हो जायेगी, तब इसके दामों में गिरावट की संभावना ओर बढ़ सकती है। उत्पादन खर्च के अनुसा देश के किसानो की तो एक क्विटल पर सोयाबीन के समर्थन मूल्य 6000/- रु. प्रति क्विटल करने का आग्रह है, जिसे बोनस देकर बढ़ाने का विकल्प उपलब्ध है। इसी प्रकार जब सरसों किसानो के घर में आयी तब मार्च-अप्रैल, तक बाजार भाव 4200/-रु. प्रति क्विटल तक थे जबकि घोषित न्युनतम समर्थन मूल्य 5650/-रू प्रति क्विटल था। जिससे किसानो को अपनी सरसो 1450/- रू. प्रति क्चिटल तक का घाटा उठा कर बेचनी पड़ी थी। इसी प्रकार का प्रभाव मूंगफली, तिल, सूरजमुखी जैसी तिलहन उत्पाद पर भी आ सकताहै। यह कि किसानो की आय पर कुल्हाडी चलाने वाली योजना का नाम किसानो को भ्रमित करने के लिए "प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान" रखा हुआ है। इस योजना में भावान्तर भुगतान के द्वारा घाटे की आपूर्ति के लिए अन्तर राशि देने के विकल्प का उल्लेख है किन्तु सरकारें इसकी पालना नही करती वरन् न्युनतम समर्थन मूल्य पर खरीद को प्रतिबंधित करने सम्बन्धित प्रावधानों की तो. कठोरता से पालना करती है।यह कि भारत सरकार द्वारा कृषि सुधारों के अंतर्गत "आर्दश कृषि उपज एवं, पशुपालन, विपणन (सुविधा एवं संवर्धन) अधिनियम 2017" का प्रारूप तैयार कर राज्यों को प्रेषित कर दिया था किन्तु केन्द्र और राज्य दोनो ने ही इसकी पालना नही कर किसानो को उनकी उपजें घाटे में बेचने के लिए विवश किया हुआ है। यह स्थिति तो तब है जब भारत सरकार ने संसद में किसानो को उनकी उपजे न्युनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में बेचने को नही होने के' लिए आश्वस्त किया हुआ है।इस प्रकार सरकारी नीतियां तिलहन उत्पादक किसानो को हतोत्साहित करती है जबकि देश को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए उत्पादको को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। यह कि सरसों सत्याग्रह के क्रम में 06 अप्रैल, 2023 को देशभर के 101. किसानो ने दिन के 11:00 से 4:00 बजे तक दिल्ली के जन्तर मन्तर पर उपवास रखा था। इसके पूर्व 27 मार्च, 2023 को ज्ञापन प्रेषित कर उक्त नीतियों में सुधार के लिए अनुरोध किया था किन्तु अभी तक उस पर कोई सार्थक कार्यवाही नही हुई। किसानो को अग्रिम कार्यवाही के लिए विवश होना पड रहा है। (Pressnote)