हर निवाले की बचत जरुरी... : अतुल मलिकराम
लेखक : अतुल मलिकराम

 लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार

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"भोजन का सही सम्मान उसकी बर्बादी न करके और उसे प्रेम से ग्रहण करके किया जाता है।"

भूख हमारे देश की एक बड़ी समस्या है, जिससे आजादी के 78 सालों बाद भी हम पूरी तरह निजात नहीं पा सके हैं। हमारे देश में रोज करीब 20 करोड़ लोग भूखे सोने को मजबूर हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, हर दिन लगभग 3,000 बच्चे कुपोषण और भूख के कारण मर जाते हैं, जो सालाना लगभग 10 लाख बच्चों की मौत का कारण बनता है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 में भारत की स्थिति बेहद चिंताजनक है, जहां हमारी रैंक 107 है, और देश की लगभग 40% आबादी कुपोषण का शिकार है। वहीं दूसरी ओर बड़े-बड़े कार्यक्रमों में फिजूलखर्ची और दिखावे के चलते रोज़ाना खाना बर्बाद हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार भारत में पैदा होने वाले अन्न का 30-40% हर साल बर्बाद हो जाता है। जबकि थोड़ी समझदारी और सूझबूझ से न जाने कितना ही खाना बर्बाद होने से बचाया जा सकता है।     

हमने अक्सर देखा है कि शादी ब्याह के आयोजनों में खाने के लिए बड़ी थालियाँ रखी जाती हैं। बड़ी थाली होने से लोग अधिक खाना लेते हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक धारणा है कि जब थाली बड़ी होती है, तो हमें लगता है कि उसमें अधिक खाना होना चाहिए। और फिर वही खाना खाने में न आ पाने के कारण बर्बाद हो जाता है। इसका समाधान यह हो सकता है कि उत्सवों, होटलों, और बड़े आयोजनों में बड़ी थाली की जगह छोटी प्लेटों का उपयोग किया जाए। जब थाली छोटी होगी, तो खाना भी कम लिया जाएगा। साथ ही परोसगारी करने वालों को भी छोटे बर्तन दिए जाने चाहिए ताकि वे जरूरत से ज्यादा खाना एक बार में न परोसें। इससे भोजन की बर्बादी स्वतः ही कम हो जाएगी।

मेरी नजर में खाने की बर्बादी एक अपराध है इसलिए जिस तरह किसी अपराध पर पेनल्टी लगाई जाती है, उसी तरह भोजन की बर्बादी पर भी उचित पेनल्टी लगाई जानी चाहिए। आखिरकार, जब हम किसी अमूल्य संसाधन को बर्बाद करते हैं, तो यह भी समाज के लिए एक प्रकार का अपराध ही है। चाहे वह घर हो, होटल हो या फिर कोई बड़ा आयोजन—जहाँ भी खाने की बर्बादी हो, वहाँ सख्त नियम बनाए जाएं। यदि किसी आयोजन में खाना फेंका जाता है, तो आयोजकों पर पेनाल्टी लगाई जाए। इससे लोग अनावश्यक रूप से खाना बर्बाद करने से बचेंगे और आयोजनकर्ता भी अधिक सावधानी बरतेंगे। साथ ही, यह नियम आम लोगों को भी खाने की बर्बादी के प्रति जागरूक बनाएगा।

रेस्टोरेंट्स और होटलों में कस्टमाइज्ड प्लेट का विकल्प होना चाहिए। मतलब कि ग्राहक अपनी भूख के अनुसार छोटी या बड़ी प्लेट का चयन कर सकें, जिससे वह उतना ही खाना ऑर्डर करे जितनी जरूरत है। कई देशों में यह ट्रेंड शुरू हो चुका है, और इसे भारत में भी लागू किया जाना चाहिए। इससे खाना बचाने में मदद मिलेगी, और ग्राहक भी अपने पैसे का सही उपयोग कर पाएंगे। 

इसके अलावा फूड बैंक एक बेहतरीन पहल हो सकती है, जिसमें शादी, उत्सव या अन्य बड़े आयोजनों में बचा हुआ खाना इकठ्ठा करके जरूरतमंदों में बांटा जा सके। कई बार बड़े आयोजनों में बहुत सारा खाना बच जाता है, जो बाद में कचरे में फेंक दिया जाता है। लेकिन यदि हम इस बचे हुए खाने को फूड बैंकों में जमा कर दें, तो इससे हजारों जरुरतमंदों का पेट भर सकता है। इसके लिए स्थानीय प्रशासन या एनजीओ से साझेदारी की जा सकती है, ताकि बचा हुआ खाना इकट्ठा किया जा सके और इसे सही तरीके से जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जा सके।

आज के आधुनिक दौर में तकनीक का सही उपयोग करने से भी भोजन की बर्बादी को रोका जा सकता है। उदाहरण के लिए, स्मार्ट फ्रिज जैसी तकनीक का उपयोग किया जा सकता है जो खाने के खराब होने से पहले आपको नोटिफिकेशन भेज दे। इससे आप अपने खाने का सही समय पर उपयोग कर पाएंगे, और उसे खराब होने से बचा सकेंगे। यह न केवल खाने की बर्बादी को रोकेगा, बल्कि आपके पैसे भी बचाएगा। 

खाने की बचत सिर्फ एक काम नहीं, यह एक आदत है, जिसे बचपन से ही डालना चाहिए। आजकल आपने अक्सर देखा होगा कि माता-पिता लाड़-प्यार की आड़ में बच्चों को झूठा छोड़ना सिखा रहे हैं। जब बच्चे के मन में बचपन में ही यह बैठ गया कि खाना छोड़ने में कोई बुराई नहीं है तो यह उसकी आदत बन जाएगी। इसलिए जरुरी है कि बच्चों में बचपन से ही खाना ना छोड़ने की आदत डाली जाए।       

खाने की बर्बादी को रोकने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि भोजन की बर्बादी को रोकना न सिर्फ हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि समाज के प्रति एक अमूल्य सेवा भी है। जब हम खाने को फेंकते हैं, तो यह केवल खाने की बर्बादी नहीं होती, बल्कि हम उन अन्नदाताओं की मेहनत का अपमान करते हैं जो इसे उगाने के लिए गर्मी, धूप, बरसात, हर मौसम का सामना करते हैं। कृषि और ऋषि प्रधान इस देश में अगर हम ही अन्न का महत्व नहीं समझेंगे तो फिर कौन समझेगा। हमारी प्राचीन संस्कृति में तो अन्न को साक्षात ईश्वर माना गया है। हमारे यहाँ भोजन के दौरान 'सहनौ भुनक्तु' कहा जाता है, इसके पीछे भावना यह है कि मेरे साथ और मेरे बाद वाला भूखा न रहे। हमारे सामने यह एक ऐसी चुनौती है, जिससे देश के प्रत्येक नागरिक, बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को लड़ना होगा और अन्न की अहमियत को समझते हुए, इसकी बर्बादी को रोकने के कदम उठाने होंगे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)