हिन्दी दिवस पर विशेष
लेखक : रामजी लाल जांगिड
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता
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भारत की संविधान सभा ने 14 सितम्बर 1949 को देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी को भारत संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था और संविधान लागू होने की तिथि (26 जनवरी 1950) से हिंदी भारत की राजभाषा बन गई। किंतु वास्तविकता यह है कि स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी हिन्दी राजभाषा नहीं बन सकी है। अब भी भारत सरकार, राज्य सरकारें न्यायालयों, विश्वविद्यालयों और उद्योग व्यापार में अंग्रेजी का बोलबाला है। आज सारे हिन्दी भाषी राज्यों के सरकारी कार्यालयों, स्कूलों कालेजों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह या हिन्दी पखवाड़ा मनाया जाएगा।
मगर जब तक विवाह के निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में दिए जाएंगे, जब तक लोग चेक अंग्रेजी में भरेंगे,जब तक लोग अर्जियां अंग्रेजी में लिखते रहेंगे, जब तक लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में भेजते रहेंगे, जब तक परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी रहेगा, जब तक सरकारों के कामकाज अंग्रेजी में होंगे, जब तक प्राथमिक स्तर से स्नातकोत्तर कक्षा की सारी पुस्तकें हिन्दी में नहीं तैयार की जाएंगी, जब तक न्यायालयों में बहस और फैसले अंग्रेजी में होंगे तब तक हिन्दी को उसका उचित स्थान नहीं मिल सकेगा। तब तक लोग संविधान की भावना का आदर नहीं करेंगे। केवल संविधान मानने का दिखावा करते रहेंगे। मेरी मातृभाषा राजस्थानी है।
किन्तु भारत में एकता हिन्दी ही बनाए रख सकती है और वह भी केवल देवनागरी में लिखी हुई।मैं यह मानता हूँ। हिन्दी की फिल्म विश्व भर में, पसंद की जाती हैं। बहुत सारे देशों के टेलिविजन और रेडियो केंद्रों पर हिन्दी में कई घंटों तक प्रसारण होते हैं। बहुत सारे देशों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है। आभासी प्लेट फार्म पर हिन्दी का उपयोग लगातार बढ़ रहा है। भारत में दैनिक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की संख्या तथा प्रसार की दृष्टियों से हिन्दी अंग्रेजी एवं अन्य भारतीय भाषाओं से बहुत आगे चली गई है।
विदेशों में हिन्दी प्रसारणों की लोकप्रियता इसी बात से आंकी जा सकती है कि वर्ष 1981 में बी.बी.सी, लंदन के साढ़े तीन करोड़ श्रोता हिन्दी प्रसारण सुनते थे। बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से पहला स्थान भारतीय भाषाओं में हिन्दी का है। दूसरे स्थान पर तेलुगु भाषी, तीसरे स्थान पर बंगलाभाषी, चौथे स्थान पर मराठी भाषी, पांचवें स्थान पर तमिल भाषी, छठे स्थान पर उर्दू भाषी, सातवें स्थान पर गुजराती भाषी, आठवें स्थान पर मलयालम भाषी, नवें स्थान पर कन्नड़ भाषी, दसवे स्थान पर ओडिया भाषी ग्यारहवें स्थान पर पंजाबी भाषी और बारहवे स्थान पर असमिया भाषी हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)