दिनों दिन बढ़ रहा मंकीपाक्स का खतरा : ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।

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आज समूची दुनिया के लिए मंकीपाक्स कहें या एमपाक्स कहें, चिंता का विषय बन गया है। मंकीपाक्स वायरस के कारण होने वाली यह बीमारी बड़ी तादाद में लोगों को अपनी चपेट में ले रही है। दरअसल यह एक वायरल संक्रमण है जो मंकीपाक्स वायरस के कारण होता है। मंकीपाक्स वायरस असलियत में पाक्स वायरस का हिस्सा है जो एक प्रकार के वायरस से संबंधित है। संक्रमित व्यक्ति के साथ संपर्क में आने वाले लोगों को यह अपनी चपेट में ले लेता है। यह एक दूसरे को छूने, यौन संबंध बनाने, नजदीक रहकर बात करने और सांस लेने से भी फैलता है। इसके अलावा यह जानवरों के साथ संपर्क होने जैसेकि बंदरों या फिर दूसरे जानवरों के साथ संपर्क से और दूषित मांस खाने से फैलता है। लेकिन कभी-कभी पर्यावरण के चलते भी यह बीमारी लोगों तक फैल जाती है। सिर में दर्द होना, बुखार आना, ग्रंथियों में सूजन आ जाना और सारे शरीर में दर्द इसके प्रमुख लक्षण हैं। इससे 2 से 4 हफ्ते तक शरीर में चकत्ते, शरीर में कहीं-कहीं दाने पड़ने, फफोले बनने, घाव या छाले भी हो सकते हैं। 

अभी तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार एमपाक्स से पीड़ित 0.1 फीसदी से 10 फीसदी के करीब लोगों की मौत हो चुकी है। इस सबके बावजूद भी यह कम खतरनाक नहीं है। इसकी विकरालता का सबूत यह है कि डब्लयूएचओ ने बीते दिनों ही इस बीमारी की स्थिति को देखते हुए फिर से वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया है। गौरतलब यह है कि इससे पहले 2022 में भी डब्लयूएचओ द्वारा एमपाक्स को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया था। उस समय इस वायरस ने 100 से अधिक देशों में अपना कहर बरपाया था और 200 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पडी़ थी। यह भी कि अभीतक इससे 21,300 से अधिक लोग इसके शिकार हुए हैं और 590 लोग मौत के मुंह में चले गये हैं। इस बीमारी का क्लेड 1 बी वायरस सबसे ज्यादा खतरनाक है। 

इस बीमारी ने अभी तक 13 अफ्रीकी देशों में अपने पैर पसारे हैं जहां 21 हजार से ज्यादा पुष्ट मामले दर्ज किये गये हैं लेकिन अब इस बीमारी ने अफ्रीकी महाद्वीपीय क्षेत्र से बाहर जाकर यूरोपीय देश स्वीडन में भी घुसपैठ कर ली है। स्वीडन की सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी ने कहा है कि स्टॉकहोम में इलाज कराने आये एक व्यक्ति में क्लेड कवैरिएंट के कारण एमपाक्स होने का खुलासा हुआ है। इससे पहले अफ्रीकी रोग नियंत्रण एवं रोकथाम एजेंसी सीडीसी ने कहा था कि एमपाक्स वायरस ने इस साल 13 देशों में दस्तक दी है। सभी मामलों में और मौतों के मामले में 96 फीसदी से ज्यादा कांगो में हैं। यह बीते वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 160 फीसदी और मौतों की तादाद 19 फीसदी अधिक हैं। यहां के 26 प्रांत इसकी चपेट में हैं। 

इसके बाद इस रोग के शिकार देशों में बुरुंडी का नाम आया है जहां बीते हफ्ते में इस रोग की चपेट में आने वालों की तादाद में 70 फीसदी का उछाल आया है। उसके बाद कीनिया, रवांडा और युगांडा जैसे देश हैं जहां इस बीमारी के शिकार लोगों की तादाद आयेदिन बढ़ रही है। इसी बीच यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायेद अल नाहयान ने मानवीय प्रयासों के तहत कांगो, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, आईवरी कौस्ट और कैमरून के लिए तात्कालिक सहायता के रूप में एमपाक्स रोधी टीकों की एक खेप भेजी है। इस बारे में डब्लयू एच ओ के महानिदेशक डा० टेड्रोस एडनाम ग्रेबेयसस ने कहा है कि 'एमपाक्स के एक नये क्लेड का उभरना, पूर्वी डी आर सी में इसका तेजी से फैलना और कई पड़ोसी देशों में इसके फैलने की खबरें आना बेहद चिंताजनक है। डी आर सी और अफ्रीका के दूसरे देशों में एमपाक्स क्लेड के प्रकोप के अलावा, यह स्पष्ट है कि इन बढ़ते प्रकोपों को रोकने और जीवन बचाने के लिए एक समन्वित अंतरराष्ट्रीय अभियान की जरूरत है। 

कारण अब इस रोग ने पाकिस्तान में भी घुसपैठ कर ली है। अभी तक पाकिस्तान में पांच लोगों के वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुयी है। इससे वहां हड़कंप मच गया है। पाकिस्तानी अधिकारियों के अनुसार कराची में एक हवाई यात्री में इस रोग की पुष्टि हुयी है और पेशावर में भी एक संदिग्ध मिला है। पाकिस्तान एशिया का पहला देश था जहां एमपाक्स के वायरस ने दस्तक दी है। लेकिन अब फिलीपिंस में भी इस रोग ने दस्तक दे दी है। वहां तीन नये मामले आने से फिलीपीनी सरकार ने विशेष सतर्कता बरतने के आदेश दे दिए हैं।फिलीपींस में अबरक मंकीपाक्स के आठ और 2022 से अब तक कुल 22 रोगी हो गये हैं। फिलीपिंस के डीओएच के प्रवक्ता अलबर्टा डोमिगो की मानें तो हम उन लोगों की सघनता से पहचान कर रहे हैं जो इन रोगियों के संपर्क में आये हैं। मैट्रो मनीला में इस रोग के संक्रमण की अधिक संभावना है क्योंकि यहीं पर संदिग्धों में अधिकाधिक लक्षण पाये गये हैं। 

एमपाक्स वायरस का पाकिस्तान और फिलीपींस तक आ जाना हमारे देश के लिए खतरे का संकेत है। अब तो देश में भी इस बीमारी से संक्रमित एक रोगी के पाये जाने की सूचना है। वह बात दीगर है कि सरकार यह दावा कर रही है कि सरकार एमपाक्स से निपटने को तैयार है। लेकिन दूसरे देशों से आने वाले लोगों से संक्रमण के अंदेशे को नकारा नहीं  जा सकता। भले केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्ढा यह दावा करें कि  सरकार इससे बचाव तथा इसके प्रसार को रोकने की दिशा में हर संभव प्रयास कर रही है। सभी एयरपोर्टों और बंदरगाहों के साथ सीमा रेखा पर संचालित सभी स्वास्थ्य यूनिटों को अलर्ट रहने व देश की 32 प्रयोगशालाओं को जांच हेतु तैयार रहने को निर्देश दे दिए गये हैं। फिर भी एक संक्रमित रोगी का देश में पाया जाना खतरे का संकेत है जिसे झुठलाया नहीं  जा सकता। 

लेकिन दुखदायी बात यह है कि दावे कुछ भी किये जायें लेकिन हकीकत यह है कि कोरोना महामारी के खात्मे के तकरीब ढाई साल बाद भी संक्रामक बीमारियों से लड़ने की देश में तैयारी अधूरी है। वह बात दीगर है कि मंकीपाक्स के संक्रमण को देखते हुए अलर्ट जरूर घोषित कर दिया है, अस्पतालों में कोरोना काल की तरह आइसोलेशन वार्ड व बेड आरक्षित किए जाने की पहल शुरू कर दी गयी है लेकिन कोरोना से सबक लेकर संक्रामक बीमारियों के इलाज के लिए जो प्रोजेक्ट शुरू हुए, उन पर आज तक सही मायने में अमल ही नहीं हुआ है। देश की राजधानी दिल्ली में एम्स में 150 बेड के क्रिटीकल केयर व संक्रामक रोग केन्द्र की परियोजना तो एक उदाहरण है जो अधर में लटकी पडी़ है। दुख तो इस बात का है कि परियोजना का टेंडर पास होने के बावजूद बजट आवंटन के चक्कर में अभी तक उसका निर्माण तक शुरू नहीं हुआ है जबकि परियोजना की लागत भी 180 करोड़ से बढ़कर 215 करोड़ हो चुकी है। 

गौरतलब है जब देश की राजधानी दिल्ली की संक्रामक रोग केन्द्र निर्माण की दिशा में यह हालत है, उस दशा में पूरे देश की हालत क्या होगी, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। देश में एक संक्रमित की पुष्टि होने से अब सतर्कता बरतना बेहद जरूरी हो गया है। इसलिए बेहद जरूरी है कि हम सबसे पहले अपने डाक्टर से सलाह लें। हाथों को साबुन और हैंडबाश से बार-बार साफ करें। लक्षण देखने पर खुद को दूसरों से अलग रखें। संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें। यदि मांस खाना बेहद ही जरूरी हो और बिना मांस खाये न रह सकें तो मांस को खाने से पहले अच्छी तरह सफाई के साथ धो लें और अच्छी तरह ठीक से पकायें, तभी हम इसके संक्रमण से खुद को बचा सकते हैं। 

वैसे इससे बचाव का बबेरियन नार्डिक द्वारा विकसित किया गया टीका है जिसे एमबीए-बीएन टीका कहा जाता है। देखा जाये तो अधिकांश मामले में दवा से इसके लक्षण ठीक हो जाते हैं लेकिन बीमारी गंभीर हो सकती है, इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता। कुछ मामलों में यह जानलेवा हो भी हो सकती है। खासकर कमजोर लोगों के लिए, उसमें भी नवजात शिशु और गर्भवती महिलाओं को इससे बचाने की बहुत जरूरत है क्योंकि उनको इससे ज्यादा खतरा हो सकता है। इसलिए सरकार के भरोसे न रहकर हम अपना बचाव खुद करें। बचाव ही इससे खुद को बचाने का सबसे कारगर रास्ता है। इसमें कोई दो राय नहीं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)