मेरी ससुराल (2) और (3) : रामजी लाल जांगिड

 

लेखक : रामजी लाल जांगिड 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता

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मेरे ससुर जी चारों भाइयों में सबसे बड़े थे। उनका नाम था श्री रघुनाथ प्रसाद जी, उनसे छोटे थे श्री विश्वनाथ जी तीसरे क्रम पर थे डा. सिद्धेश्वर नाथ जी और सबसे छोटे थे श्री भोलानाथ जी। श्री रघुनाथ प्रसाद जी वकील थे। मगर उनके पिताजी ने कहा था कि, "मैंने तुम्हें वकील अदालतों के चक्कर काटने के लिए नहीं बनाया है। बल्कि सम्पत्ति के कानूनी मामलों पर नज़र रखने के लिए बनाया है।" इसलिए वह खेत बंटाई पर किसको दिए जाएं, उपज की हिफाजत करने, बंगले किराए पर देने, ईंट के भट्टों से सम्बन्धित काम पर ध्यान देते थे। दूसरे क्रम वाले श्री विश्वनाथ जी आयुर्वेदिक चिकित्सा करते थे। वह विधायक पद के लिए यह सोचकर निर्दलीय उम्मीद‌वार के रूप में आम चुनाव में खड़े हो गए थे कि उन्होंने जिन लोगों को खेती करने में मदद की है, वे सब उन्हें वोट देंगे। मगर वह चुनाव हारने के कारण पागल हो गए। वह आत्म हत्या न कर लें यह ध्यान रखने की जिम्मेदारी मेरी पत्नी को दे दी गई। इससे उनकी पढ़‌ाई में बाधा पड़ गई। 

इसी से वह आम चुनाव में 1980 में मेरे उम्मीदवार बनने के विरुद्ध थी। यह प्रसंग मैं बाद में बताऊंगा विस्तार से।तीसरे क्रम पर थे डा. सिद्धेश्वर नाथ। जो डा. एस. नाथ के नाम से पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रसिद्ध थे। उन्होंने लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कालेज से एम.बी.बी.एस.किया था। बाद में आगे पढाई के लिए परिवार ने उन्हें आस्ट्रिया भेज दिया। लौट कर उन्होंने लहुराबीर, काशी में आंख का अस्पताल खोल लिया। उनके लिए लहुराबीर, काशी में जो भवन बनाया गया, उसके लिए ईंटे पकाने के उद्देश्य से एक भट्टा शुरू किया गया और भवन बन जाने के बाद भट्टा बंद कर दिया गया। 

इस भवन में नीचे स्वागत कक्ष, आपरेशन थिएटर कई वार्ड, कई शैौचालय, सब्जी का खेत, ड्राईवर, चौकीदार और माली के रहने के लिए फ़्लैट बनाए गए। पहली मंजिल में रहने की व्यवस्था थी। उन्होंने भारत के राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री कमलापति त्रिपाठी और मुख्यमंत्री रहे डॉ. संपूर्णानंदजी का मोतिया  बिंद का सफल आपरेशन किया था। काशी के प्रतिष्ठित लोग उनसे ही मोतिया बिंद का आपरेशन कराना चाहते थे । काशी के सांसद श्री सुधाकर पांडे उन्हें काशी की विभूति कहते थे। चौथे भाई भोला नाथ जी कोलकाता में ZOOLOGICAL SURVEY OF INDIA में थे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं ौंके अपने विचार हैं)



मेरी ससुराल (3)


मेरी ससुराल में 13 डाक्टर, 3 इंजीनियर और दो प्रोफेसर थे। डाक्टरों में से 3 लेडी डॉक्टर थीं। तीनों डा. एस. नाथ ( मेरी पत्नी के चाचा) की पुत्रियां थीं। डाक्टरों में मेरी पत्नी के चाचा, उनके पुत्र डा. रमन, मेरे दो सगे साले, उनके चाचा स्वर्गीय विश्वनाथ जी के पुत्र डा. मोतीलाल जी और डा. गुड़गुड़ (घर में यही नाम था) और सत्या के चाचा (डा. एस. नाथ) के चार दामाद थे। प्रोफेसरों में सत्या के चाचा की सबसे बड़ी पुत्री श्रीमती ललिताजी और मेरी पत्नी (डा.सत्या) थी। दोनों अर्थशास्त्र पढ़ाती थीं। मेरी ससुराल के छह सदस्य परिवार के खर्च पर इंग्लैंड, अमरीका, जर्मनी और कनाडा पढने गए। डा. नाथ के एक दामाद डा. जगदीश जी तो अमरीका में ही बस गए थे। इन सबकी संतान भी डाक्टर बनी। मेरी पत्नी (डा. सत्या) के चार भाई थे। सबसे बड़े स्वर्गीय बालकृष्ण जी काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से इंजीनियरिंग पढ़ने के बाद जर्मनी और इंग्लैंड गए। लौट कर टाटा नगर (जमशेदपुर) में उच्च पद पर रहे।बाद में रक्षा मंत्रालय के अन्तर्गत युद्ध पोत बनाने वाले मझगांव डॉक पर और ऊंचे पद पर सेवा करते रहे। वह बेहद ईमानदार थे। एक बार उन्होंने कई लाख रुपयों का टेंडर पास किया था। जिस कारोबारी को टेंडर मिला, वह चुपके से उनके फ्लैट में मेरी सास को सोने के सिक्कों से भरा टाफी वाला डिब्बा यह कह कर दे गया कि साहब ने मिठाई भेजी है। उस समय मेरी पत्नी की भाभी बाजार गई हुई थी और मेरी सास ने बिना खोले हुए डिब्बे को फ्रिज में रख दिया। बालकृष्ण जी जब लंच के लिए आए तो मेरी सास ने खाते हुए उनसे पूछा-" मिठाई खाओगे।" बालकृष्ण जी ने पूछा- 'मिठाई कहां से आई है। "मेरी सास ने कहा"- एक आदमी दे गया था। उसने बोला कि तुमने भेजी है। बालकृष्ण जी ने कहा "डिब्बा दिखाओ।" मेरी सास ने डिब्बा उन्हें दे दिया।

उन्होंने डिब्बा खोला तो देखा कि उसमें सोने के सिक्के भरे हुए थे। उन्होंने खाना बीच में छोड़ दिया और डिब्बा लेकर दफ्तर पहुंच गए। टेंडर की फाइल खोलकर उसका फोन नम्बर ढूंढा और फोन पर उसे तुरंत आने को कहा। वह खुशी खुशी आया। बालकृष्ण जी ने कहा- यह पकड़ो अपना डिब्बा। मैने तुम्हारा टेंडर रद्द कर दिया है। (Balkrishna can not be purchased, you are Blacklisted. उनके मातहतों ने बंगले बना लिये।उनके कई सहकर्मियों ने खूब घूस ली। मगर वह दो कमरों के फ्लैट में खुश रहे। उन्होंने अपने बेटे से कहा "मैं तुम्हारी सिफारिश नहीं करूँगा। अपनी मेहनत करो।"