व्यंग्य- देखने की चीज : रमेश जोशी
लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com

सम्पर्क : 94601 55700 

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जैसे गत लोकसभा चुनाव में सेवा करने के लिए मरा जा रहा हर देशभक्त अपने कर्मों का बखान करने की बजाय ‘मोदी की गारंटी’ हमारी छाती पर रख देता था वैसे ही आज तोताराम ने एक विश्वसनीय अखबार का शेखावाटी संस्करण हमारी आँखों में घुसेड़ते हुए कहा- ले देख। 

हमने कहा- अब देखने की चीजों का ज़माना बीत गया। देखने की चीज तो 1962 में हुआ करती थी। 

बोला- तो क्या अब इस महान राष्ट्र में कुछ देखने लायक बचा ही नहीं क्या? 

हमने कहा- बचा क्यों नहीं ? आज तो हर उचक्का ब्यूटी पार्लर में संसाधित होकर जनता के सिर पर चढ़ा आ रहा है ।लेकिन तुम्हारी बात से हमें 1962 की शक्ति सामंत की फिल्म  ‘चाइना टाउन’ के गाने

‘बार बार देखो, हजार बार देखो, 

देखने की चीज है हमारा दिलरुबा 

ताली हो, ताली हो, ताली हो।। 

की याद आ गई। 

हमने फिल्म तो नहीं देखी लेकिन तब हमारी पहली नियमित नौकरी लगी थी सीमेंट फेक्टरी सवाईमाधोपुर के स्कूल में। वहाँ समाज कल्याण विभाग की तरफ से एक गायक मंडली आई थी जिसमें एक महिला नर्तकी ने यह गीत गाया था और लोगों ने उसे वंस मोर, वंस मोर करके बहुत परेशान किया था क्योंकि उन दिनों स्टेज पर महिला कलाकारों के दर्शन बहुत कम हुआ करते थे। लड़के ही लड़कियों की भूमिकाएं निभाया करते थे। तब उससे बड़ी देखने की कोई चीज नहीं थी। हालांकि फिल्म में यह गीत मोहम्मद रफी ने गाया है और इसे शम्मी कपूर पर फिल्माया गया है लेकिन गायक मंडली में इस गीत पर नृत्य एक लड़की ने किया था। इसलिए उसका ‘ताली हो’ भी दर्शकों को ‘डार्लिंग हो’ सुनाई दे रहा था। और अब हाल यह हो गया है कि कोई ‘जोशी’- ‘जोशी’ बोलता है तो हमें ‘मोदी-मोदी’ सुनता है।     

बोला- कोई बात नहीं, एक बार ध्यान से देख तो ले। देखने की ही नहीं, पूजने और भजने की चीज है। 

हमने देखा तो मुख्य सेवक जी रूमाल से पसीना पोंछ रहे थे लेकिन उनका जलवा और रुतबा प्रधान सेवक जी से कम नहीं था। 

तोताराम ने कहा- हो गया ना मुग्ध! अरे, नीचे केपशन भी तो देख। 

अपना पसीना खुद पोंछते सी एम  

हमने ध्यान से देखा तो पाया, लिखा था- अपना पसीना खुद पोंछते सी एम 

हालांकि प्रभु हमारे बच्चों की उम्र के हैं लेकिन इतने बड़े पद पर रहते हुए, इतने अनुचरों और शुभचिंतकों के होते हुए इतनी विनम्रता कि अपना पसीना खुद पोंछ रहे हैं। 

हम मुग्ध भाव से निहार ही रहे थे कि तोताराम ने हमें वैसे ही छेड़ा जैसे किसी मुग्धा नायिका को उसकी सहेलियां छेड़ती हैं- 82 साल के इस जीवन में देखा है कभी किसी सेवक का ऐसा विनम्र विग्रह?

हमने स्वीकार किया- सच तोताराम, हमने कभी इस तरह, इस जीवन में ही क्या, पिछले जन्म में भी किसी चक्रवर्ती सम्राट, बादशाह, देवता या अवतारी पुरुष को भी ऐसा कठोर श्रमसाध्य काम करते हुए नहीं देखा। वैसे तो सुनते हैं कि राष्ट्रपति को कोट, जूते आदि पहनाने के लिए भी नौकर होते हैं लेकिन कभी किसी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को नहीं देखा कि कोई उन्हें जूते पहना रहा हो, कोई उनका पसीना पोंछ रहा हो, कोई उन्हें खाना खिला रहा हो या उन्हें स्नान करवा रहा हो। 

वैसे बड़े लोगों की बड़ी बात होती है। देखा नहीं, देवताओं और बादशाहों की मक्खियाँ उड़ाने के लिए चँवर डुलाने वाले होते हैं। उनका पान का डिब्बा साथ लेकर चलने वाली परिचारिकाएं तक हुआ करती थीं। वे चाहते तो खाना भी खुद न चबाते बल्कि कोई खाना चबाने वाला परिचारक भी रख सकते थे। 

बोला- और क्या ? ऐसा सेवा भाव और सादगी वास्तव में दुर्लभ है। प्लेन में भी चैन से नहीं बैठते । वहाँ भी फ़ाइलें देखते मिलेंगे ।पसीना भी मेहनती लोगों को आता है। लगता है इनसे पहले वाले कोई काम करते ही नहीं थे तभी किसी का पसीना पोंछते हुए कोई फ़ोटो नहीं मिलता। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)