वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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मुख्यमंत्री सिद्धरामिया की पत्नी पार्वती को जमीन के एक टुकड़े के आवंटन का विवाद अब और गहरा गया है। अब इसको लेकर मुख्यमंत्री और राज्य के राज्यपाल थेवरचंद गहलोत में टकराव की स्थिति बन गई है। कांग्रेस पार्टी के नेताओं का कहना है राज्य में मुख्य विपक्षी दल बीजेपी राज्यपाल के साथ मिलकर राज्य में उनकी सरकार को हटाने के दिशा में काम कर रही है।
पिछले महीने के उतरार्ध में राज्यपाल ने मुख्यमंत्री सिद्धारामिया को भेजे एक नोटिस में कहा कि क्यों न उनके खिलाफ अभियोजन की अनुमति दे दें क्योंकि सारा मामला बहुत गंभीर है। उन्हें नोटिस का जवाब एक हफ्ते के भीतर देने के लिए कहा गया था। यह नोटिस तब जारी किया गया जब सिद्धारामिया स्वयं गहलोत से मिलकर सारी स्थित स्पष्ट कर चुके थे। इस भेंट के कुछ दिन बाद सिद्धारामिया ने एक विधिवत पत्र लिख आवंटन में किसी प्रकार की कोई अनियमितता नहीं होने का दावा किया था।
इस मामले को लेकर राज्य मंत्रिमंडल की एक बैठक में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया। राज्यपाल को भेजे मंत्रिमंडल द्वारा पारित प्रस्ताव में कहा गया था कि चूँकि पार्वती को आवंटित किये भू-खंड में सारी प्रक्रिया का पालन किया गया था इसलिए सिद्धारामिया को नोटिस भेजे जाने का कोई औचित्य नहीं है . राज्य के उप मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार ने कहा है कि अगर नोटिस वापिस नहीं लिया गया तो वे इस मामले को न्यायालय में ले जायेंगे।
हाल ही संपन हुए विधानसभा के मानसून स्तर में बीजेपी तथा उसके सहयोगी जनता दल (स) के सदस्यों ने इस मामले बड़े जोर से उठाया था तथा सिद्धारामिया के त्यागपत्र की मांग थी। इसके साथ ही दोनों दलों ने अपनी मांग के लिए बंगलूर से मैसूरू तक दस दिन के यात्रा करने की घोषणा की थी। उल्लेखनीय है मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वती को मैसूरू शहर के एक महंगे इलाके में 14 आवासीय भूखंड आवंटित किये थे। यह आवंटन उनको शहर के बाहरी अलाके में मैसूर नगर विकास प्राधिकरण दवारा बनाई जाने वाली एक आवासिया योजना के लिए पार्वती की अधिग्रहित की जमीन के एवज के रूप में आवंटित की गई थी।
यहाँ सारा मामला मैसूरू के सामाजिक कार्यकर्ता तथा सूचना का अधिकार कार्यकर्त्ता टी के अब्राहम ने उजागर किया था। हुआ यह था प्राधिकरण के एक अवकाश प्राप्त अधिकारी ने तत्कालीन जिलाधीश को एक पत्र लिख कर कहा था कि पार्वती को नियमों कर उल्लंघन कर ये जमीन दी गई थी। यह जमीन कुल मिलकर 3.16 एकड़ थी। उधर सिद्धारामिया का कहना है कि जिस समय आवासीय भू खंडो का आवंटन किया गया उस समय राज्य में बीजेपी की सरकार थी। यहीं से अब्राहम ने मामले को आगे बढाया तथा जिलाधीश के कार्यालय से संपर्क किया।
जैसे ही मामला अख़बारों की सुर्खिया बना सिद्धारामिया ने तुरंत मैसूरू के जिलाधीश का स्थानातरण कर दिया तथा इसके साथ ही मामला न्यायिक जाँच के लिए सौंप दिया। लेकिन इसके बाबजूद मामला शांत नहीं हुआ। अब्राहम का कहना है कि मुख्यमंत्री का दावा हैकि इन भू खण्डों का आवंटन 2020 में किया गया था। लेकिन उन्होंने 2023 में हुये विधानसभा चुनावों में अपने नामांकन के दस्तावजों में इसका कही उल्लेख नहीं किया है। जबकि प्रक्रिया के अनुसार उम्मीदवार को नामांकन पत्र के साथ अपनी और अपने परिवार के सदस्यों की सम्पति का विवरण भी देना होता है। इसी बीच सिद्धरामिया ने एक और विवादपूर्ण बयान दिया कि इस समय इन भू खण्डों की कीमत 66 करोड़ है। अगर सरकार यह राशि उनकी पत्नी को दे तो वह ये भू-खंड प्राधिकरण को लौटा देगी।
इन सारे विवादों की बीच अब्राहम ने राज्यपाल को एक पत्र लिखकर यह कहा कि उसे मुख्यमंत्री के खिलाफ कानूनी कदम उठाने की अनुमति दी जाये। नियमो के अनुसार किसी मुख्यमंत्री के कानून कार्यवाही राज्यपाल की अनुमति के बाद ही की जा सकती है। राज्यपाल ने इस पत्र पर कदम उठाते हुए सिद्धारामिया को नोटिस जारी कर दिया। राजभवन की ओर से यहाँ बताया गया कि राज्यपाल ने यह कदम कानूनी सलाह लेने के बाद ही उठाया है। जबकि कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि राज्यपाल ने यह कदम बीजेपी नेताओं के दवाब में आकर लिया है। उधर कांग्रेस पार्टी के भीतर ही सिद्धरामिया के खिलाफ माने जाने वाले नेताओं ने पार्टी आलाकमान से यह आग्रह किया बताया कि इससे पहले की विवाद और आगे बढे सिद्धारामिया को उनके पद से हटा दिया जाये। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)