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सांभरझील। मुहर्रम पर मुस्लिम भाइयों की ओर से परंपरागत तरीके से प्रमुख रास्तों से अनेक ताजिए निकाले गए। ताजिया देखने के लिए सभी वर्ग के लोग शामिल हुए। हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल को पूरे प्रदेश में कायम रखते हुए सरसों का ताजिया लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा। कई दशकों पहले सांभर के हिंदू परिवार की ओर से इस ताजिया को निकाले जाने की शुरुआत करवाई गई थी। इस सरसों के ताजिए का निर्माण करने के लिए करीब 15 रोज पहले से ही इसका खाका तैयार किया जाता है।
बांस की खपच्चियों से इसका ढांचा तैयार कर इसके चारों ओर रूई लपेटी जाती है। इसमें सरसों के दाने फंसा कर फिर लगातार फव्वारे से इसको सींचा जाता है। बड़ी सावधानी से इसकी देखभाल करते हैं। रुई के लगातार भीगते रहने से सरसों अंकुरित हो जाती है। देखते देखते ही कुछ दिनों बाद यह चारों ओर हरा-भरा हो जाता है। माना जाता है कि प्रदेश में एकमात्र सांभर ही में यह परंपरा आज भी कायम है। ताजिया निकालने के दौरान तक कयाल परिवार के सदस्य भी इसमें भाग लेते हैं। सरसों के ताजिए को विधि विधान से सजाकर इसको जुलूस में शामिल किया जाता है। जगह-जगह अखाड़े बाजो ने भी अपने करतब दिखाएं। इस दौरान कानून व्यवस्था के मद्देनजर पुलिस जाप्ता भी तैनात रहा। सभी ताजियों को निर्धारित स्थान पर कर्बला में दफन किया गया।