आंध्र प्रदेश में नोट के बदले वोट का खेल चरम पर

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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दक्षिण में आंध्र प्रदेश ऐसा राज्य है जहाँ लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव भी हुए हैं। हालाँकि मतदाताओं को लुभाना अथवा खरीदना लगभग आम है। यह खेल मतदान के एक दिन पहले शुरू होता है। मतदाताओं  को नकद धन के अलावा प्रेशर कुकर जैसे तोहफे दिए जाते है। यह काम रात के अँधेरे में चुपचाप होता है, कोशिश होती है कि इसकी भनक किसी को नहीं लगे। उत्तर भारत के राज्य की अपेक्षा दक्षिण के राज्यों में वोट खरीदने का यह खेल कही अधिक होता है और खुले में ही होता है। 

दक्षिण के आंध्र प्रदेश में लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में  इस खेल सभी सीमायें पार कर दी। ऐसा पहली बार हुआ कि मतदाताओं के झुण्ड के झुण्ड पार्टियों और उम्मीदवारों के चुनावी दफ्तरों के सामने धरना दे कर वोट के बदले नोट देने की मांग कर रहे थे। इनमे पुरुषों के बजाय महिलाएं अधिक थी। मामला यहाँ तक बढ़ गया कि पुलिस को आकर स्थिति संभालनी पडी। पलानाडू इलाके में तो एक पार्टी के दफ्तर में मतदाताओं का एक समूह उमीदवार के प्रतिनिधिओं से उलझ तक पड़ा। 

इस राज्य में मुकाबला सत्तारूढ़ दल वाईएसआर पार्टी, जो एक क्षेत्रीय दल है, तथा कांग्रेस के अलावा बीजेपी और तेलगु देशम पार्टी के गठबन्धन के बीच हैं। सभी 25 लोकसभा तथा 175 विधानसभा सीटों पर त्रिपक्षीय मुकाबला था। मुकाबला कड़ा भी बहुत था। इसी के चलते एक एक वोट बड़ा कीमती माना जा रहा था। राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार एक दूसरे पर हावी होने में लगे थे। इसलिए मतदाता को लुभाने के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोडी। चुनावों से लम्बे समय से जुड़े लोगो का कहना है। अभी तक पार्टी या उम्मीदवार एक मतदाता का वोट पाने के लिए 500 से लेकर 10000 रूपये की पेशकश करता आ रहा था। लेकिन इन चुनावों में एक वोट की कीमत 5000 या इससे भी ऊपर निकल गई। 

मतदान एक दिन पूर्व, जो रविवार का दिन था, राज्य के लगभग आधा दर्जन स्थानों पर मतदाताओ के प्रदर्शन अथवा धरने देखे गए। यह प्रदर्शन अलग-अलग मांगो को लेकर थे। मसलन पीतापुरम में प्रदर्शन कर रही महिलायों की मांग थी कि महंगाई को देखते हुए उनको दी जाने वाली राशि में इजाफा किया जाये। अभी तक उम्मीदवार उन्हें एक हज़ार रूपये देता आ रहा था पर अब यह राशि  कम से 15,00 रूपये होनी चाहिए। उनका दावा था कि उम्मीदवार तो पूरे पैसे देता है लेकिन बिचौलिया बीच में से पैसे खा जाता है। दक्षिण गोदावारी जिले के एक स्थान पर मतदाता इसलिए प्रदर्शन कर रहे थे क्योंकि उम्मीदवारों के एजेंट ने एक इलाके में तो नोट बांटे लेकिन पास के इलाके के लोगों को पैसे नहीं दिए गए। 

रिपोर्ट् के अनुसार एक विधानसभा क्षेत्र में एक निर्दलीय उम्मीदवार ने अपने एक छोटे चुनावी कार्यालय में मतदाताओं की बाकायदा लाइन बना कर उनको नोट दिए। इन इलाकों के कई सामाजिक संगठनों ने चुनाव अधिकारियों को शिकायत की लेकिन कोई खास कार्रवाई नहीं की गई। पुलिस ने तो इन मामलों दखल देने से इंकार ही कर दिया। यह बात साफ़ है कि चुनाव आयोग की कोशिशों के बावजूद चुनावों में कालेधन का उपयोग लगभग खुले में ही रहा है। 

कुछ साल पहले कर्नाटक में चुनावों से कुछ दिन पहले एक गोदाम पर छपा मार कर हजारों प्रेशर कुकर बरामद किये गए थे। ये कुकर के उम्मीदवार ने मतदाताओं को बांटने के लिए खरीदे थे। बाद में यह बात सामने आई कि इस मामले कोई प्रभावी करवाई नहीं की गई और मामला रफा दफा सा हो गया। इसी प्रकार बंगलूरु शहर में एक उम्मीदवार ने एक नया तरीका अपनाया। उसके आदमियों ने झुग्गी झोपड़ियों वाले इलाके में मतदाताओं के पहचान पत्र ले लिए। मतदान से पूर्व की रात उन सबको एक एक हज़ार रूपये के साथ पहचान पत्र लौटा  कर निदेश दिया कि वे इस उम्मीदवार को ही वोट दें। मामले ने तब तूल पकड़ किया जब एक टीवी चैनल ने इसे कैमरों में कैद कर समाचार के रूप में दिखा दिया। इसके चलते यहाँ चुनाव रद्द कर दिया गया था। 

चुनाव आयोग का कहना है वह काले धन के उपयोग को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करता रहा है। लगातार छापे मार कर कालाधन जब्त किया जाता रहा है। इन चुनावों ने अकेले कर्नाटक में 563 करोड़ की राशि जब्त की गई थी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)