मां शाकंभरी का शाकाहारी स्वरूप सभी धर्मों की आस्था का केंद्र

नवरात्र पर मां शाकंभरी की होती है विशेष पूजा अर्चना 

शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

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सांभरझील। यहां से करीब 25 किमी दूर पहाड़ी पर स्थित मां शाकंभरी का अति प्राचीन मंदिर सभी धर्मों की प्रमुख आस्था का केंद्र है। यूं तो यहां पर नवरात्र पर्व पर मां शाकंभरी की विशेष पूजा अर्चना होती है, लेकिन वार्षिक मेले के आयोजन के दौरान प्रदेश सहित अनेक राज्यों से भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु आना नहीं भूलते हैं। 

मां शाकंभरी का इतिहास महाभारत और शिव पुराण में भी मिलता है। वैसे तो मां शाकंभरी को चौहान शासको की कुलदेवी माना जाता है, लेकिन मां की असीम कृपा से सभी धर्मों के लोग अपनी मन्नतें पूरी होने पर दोबारा से आकर मां के चरणों में नमन करते हैं, क्योंकि मां शक्ति का प्रतिरूप है, इसीलिए अपने नोनिहालों का जडूला उतारने व अपने परिवार पर सदैव खुशहाली की कामना को लेकर महिलाएं मां को पूजती हैं, उपवास रखकर बच्चों व पति की दीर्घायु की भी कामना करती है। 

मंदिर के सामने झील में स्थित भैरव मंदिर है, मां के धोक लगाने के बाद यहां पर नारियल अर्पित कर भैंरुजी से भी अरदास की जाती है। इतिहासकारों के मुताबिक मां शाकंभरी पहाड़ी से प्रकट हुई थी। मां शाकंभरी से सांभर का नाम शाकंभर हुआ था, लेकिन कालांतर में यह नाम अपभ्रंश हो गया और "शाकंभर" को "सांभर" के नाम से जाना जाने लगा। इसी मंदिर के नजदीक मुगल शासक जहांगीर द्वारा मां के चमत्कार से अभिभूत होकर एक विशाल छतरी बनवाई गई थी जो यहां पर मौजूद है जिसे देखने के लिए भी काफी पर्यटक आते है।