राजा भी नंगा है, जनता बेहाल
लेखक : वेदव्यास

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार हैं

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पिछले कई वर्षों से इस एक भारत और श्रेष्ठ भारत को भगवान ही चला रहा है। कोई अदृश्य शक्ति है जो हमें लगातार कह रही है कि निमित्त मात्र हूं, मैं.....। तुम अपना कर्म करो और फल की इच्छा मुझ पर छोड़ दो। हम देख रहे हैं और सुन रहे हैं कि द्रोपदी का चीरहरण कौरवों की भरी सभा में जारी है और परमवीर भीष्म पितामह सिर झुकाए चुप बैठे हैं। अब पाण्डवों की कोई नहीं सुन रहा है और दोस्त तथा दुश्मन मिलकर एक दूसरे को फूल-मालाएं पहना रहे हैं। तालियां बजा रहे हैं और कह रहे हैं- निमित्त मात्र हूं मैं।

लोकतंत्र की इस इन्द्र सभा में सभी तीस मारखां इस अदृश्य शक्ति को संविधान की व्याख्याएं सुना रहे हैं। भोजन पानी का लुत्फ उठा रहे हैं और ज्ञानपति इस निमित्त मात्र के चरण स्पर्श करते हुए आशीर्वाद ले रहे हैं। कोई नहीं बोल रहा है, क्योंकि अशोक स्तंभ की छत्रछाया में वह अदृश्य शक्ति बैठी है और अपने जन्म को इस मातृभूमि का वरदान कह रही है। हजारों साल से गुलामी और अपमान झेलते हुए सभी दरबारियों की कमर झुक गई है फिर भी भक्तों की भीड़ ये ही प्रार्थना गा रही हैं कि प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी। कैसा समय आया है कि कोरोना की महामारी से लाखों-लाख बेकसूर बिना दवा के, बिना हवा के, बिना पैसों के और बिना दाहसंस्कार के मां गंगा की गोद में समा गए। अध जले बह गए और उनके करोड़ों परिजन-बाल-बच्चे अनाथ हो गए। कोई कर भी क्या सकता था, क्योंकि मरना-जीना तो एक भारत श्रेष्ठ भारत में निमित्त मात्र है। हम देख रहे हैं, दुनिया देख रही है। गरीबों और शहीदों की चिताओं पर कोई मेला नहीं लग रहा है। संतों के प्रवचन निरंतर सुनाई दे रहे हैं कि मृत्यु पर विलाप मत करो, हम देख रहे हैं।

अब कोई नहीं कह रहा है कि मेरा वोट, लोकतंत्र की शोभा के लिए निमित्त मात्र हैं। सभी कह रहे हैं कि हमने गांधी को देखा है, अंबेडकर को देखा है अंग्रेजों को देखा है, मुगलों को देखा है। लेकिन मैं उस अदृश्य शक्ति का निमित्त मात्र हूं, जो मस्जिद को गिराकर मंदिर बनाता है और बौद्ध मठों को गिराकर हिंदु-राजाओं को मान बढ़ाता है। कोई बताए कि ज्ञान और विज्ञान की इस 21वीं शताब्दी में ये निमित्त मात्र कौन है? जो संसद से सड़क तक और राजपथ से जनपथ तक हम भारत के लोगों को शासन की पालकी ढोने के लिए ही बनाता है और केंद्र को सर्वशक्तिमान बनाकर सभी राज्यों को अपना दासानुदास कहता है?

हम इस निमित्त मात्र की आत्मकथा को जब पढ़ते हैं तो पता चलता है कि ये कोई सियार है जो अब शेर की खाल ओढ़कर राजधानी में घुस आया है। ये संविधान को हिंदु, मुसलमान, सिख, ईसाई में बांटकर पढ़ता है और अपने अलावा देश के किसी की नहीं सुनता। ये एक ऐसी अदृश्य शक्ति है, जो सभी असहमत आवाजों को देशद्रोही मानता है।

अपने मन की बात के अलावा उसे दूसरे की हर आवाज बगावत लगती है। ये प्रतिरोध को जेलों में डाल देता है, किसानों को सड़कों पर बैठाकर उनकी मखौल उड़ाता है, प्रवासी मजदूरों को बेरोजगार बनाता है, बूढ़े-बच्चों से उनकी खुशियां छीनता है और महंगाई में पेट्रोल-डीजल तथा रसोई गैस के लगातार दाम बढ़ाकर अपना खजाना भरता है। ये निमित्त मात्र नाम का प्राणी किसी अदृश्य राम का, निमित्त मात्र ऐसा हनुमान है जो राजपुरुष बनकर जनता को नरक में अकेला छोड़कर और लोकतंत्र के अपनी जागीर समझकर अपना बुढ़ापा किसी निमित्त मात्र की तरह किसी एक दूसरे निमित्त मात्र के लिए बिता रहा है।

हमें आश्चर्य है कि अब इस लोकतंत्र में सिंहासन पर बैठा हर प्राणी ये कह रहा है कि जैसे थानेदार किसी चोर के लिए निमित्त मात्र है। यानि अब संविधान के निमित्त मात्र यहां कोई नहीं है और कुलपति एक राज्यपाल के लिए निमित्त मात्र है तो एक राज्यपाल केवल अपनी पार्टी और संगठन के निमित्त मात्र है। लोकतंत्र के इस तमाशे का ये हाल है कि सभी यहां अपनी कुर्सी के निमित्त मात्र है। जनता के लिए यहां कोई निमित्त मात्र नहीं है और आजादी के लिए यहां कोई वफादार नहीं है।

देशवासियों को अब तो यह सच्चाई समझ लेनी चाहिए कि गुलामों के इस देश में अब सभी गुलाम शासन और प्रशासन के निमित्त मात्र हैं। यही हमारे लोकतंत्र की सबसे कमजोर कड़ी है कि यहां सभी को लोकतंत्र की हत्या के लिए निमित्त मात्र बनाया जा रहा है, नचाया जा रहा है, लटकाया जा रहा है, भटकाया जा रहा है और अटकाया जा रहा है। क्योंकि ये लोकतंत्र और संविधान अब केवल शासन-प्रशासन का निमित्त मात्र है और इस निमित्त मात्र की आम जनता के लिए कोई जिम्मेदारी और जवाबदेही नहीं है। यहां सभी राम की बंदरिया हैं और राम ही उन्हें नचा रहा है। ऐसे में जनता के लिए यही एक भारत ही श्रेष्ठ भारत है, क्योंकि भगवान को यही मंजूर है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने निजी विचार हैं)