प्रधानमंत्री 'अति वृद्ध जन सशक्तीकरण योजना’
लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com

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तोताराम यथासमय उपस्थित। चाय शुरु। चर्चा हमने ही प्रारंभ की, कहा- तोताराम, आजकल डबल इंजन की सरकार और मोदी जी की गारंटी के प्रतिदन पहले पेज पर आने वाले विज्ञापन नहीं दिखते। क्या बात है? बोला- हमारी पार्टी तो वैसे ही आदर्शों से बंधी हुई है। हम व्यर्थ की, आत्मप्रशंसा वाली बातें कभी नहीं करते लेकिन क्या किया जाए अब आचार संहिता लागू हो गई है। चुनाव खत्म होते ही फिर देख लेना आकाशी उपलब्धियों के सचित्र विज्ञापन। क्या करें। ये उपलब्धियां होती ही बहुत बदमाश हैं। पता नहीं, फ़ाइलों से निकलकर कहाँ गायब हो जाती हैं। इसलिए अपनी गांठ की और खून पसीने की कमाई से विज्ञापन देकर जनता को बताना पड़ता है कि तुम्हारा अमुक-अमुक भला हो गया है। अब खुश हो जाओ, गर्व करो।

हमने कहा- लेकिन तोताराम, अब तो हम भी कह सकते हैं कि अपने राजस्थान में जो काम कांग्रेस की सरकार में नहीं हुआ वह इस डबल इंजन की सरकार के आते ही हो गया। बोला- बहुत सकारात्मक हो रहा है। कहीं तेरे यहाँ शाम को कोई ई डी वाले तो नहीं आए थे जो रात रात में ही गौरव वल्लभ की तरह ट्रिलियन के जीरो भूल गया और बिजेंदर की तरह सारी पहलवानी निकल गई।   

हमने कहा- ई डी वालों को विपक्षी नेताओं को निबटाने से ही फुरसत नहीं है। ऐसे में हमारे जैसों के यहाँ क्या लेने आएंगे। वैसे स्टेट बैंक वाले पूनिया जी ने बेकार ही डरा दिया। जब घाटे में चलने वाली कंपनियां भी 100-200 करोड़ के बॉन्ड खरीद कर दे सकती हैं तो हमें तो हर महिने पेंशन मिलती है। हजार-हजार के ही सही दो-चार बॉन्ड खरीद लेते हो आज किस्मत सँवर जाती। देखा नहीं, चन्दा देने पर लोगों को जमानत मिल गई, केस वापिस हो गए, और तो और चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का टिकट भी मिल गया। न सही कर्नाटक के बेल्लारी से लोकसभा का टिकट, अगर वार्ड मेम्बर का टिकट भी मिल जाता तो बुढ़ापा शान से कट जाता। घर के सामने की सड़क सीमेंटेड होती, जिस नाली की महीनों सफाई नहीं होती वह रोज साफ होती। नल के अनेक कनेक्शन लगवाते और खंभे पर तार डालकर मुफ़्त की बिजली का मज़ा लेते।

बोला- वह तो कल्पना का हेतुहेतुमद्भूत है लेकिन यह तो बता कि डबल इंजन की सरकार आने से ऐसा क्या हो गया जो कांग्रेस की पिछली सरकार में नहीं हुआ?

हमने कहा- नवंबर 2023 में हम अस्सी से ऊपर थे और कांग्रेस सरकार के कारण हम इतने अक्षम थे कि विधान सभा चुनाव में बूथ पर जाकर वोट भी नहीं डाल सकते थे सो राज्य सरकार ने चुनाव पार्टी को घर भेजा और वोट डलवाया। अब भाजपा की केंद्र सरकार ने राज्य की भाजपा सरकार के सहयोग से हमें दो-तीन महिने में ही इतना सक्षम बना दिया कि हम दो किलोमीटर जाकर, लाइन में लगाकर वोट डाल सकते हैं।

बोला- यह हमारी सरकार की ‘प्रधानमंत्री अति वृद्ध जन सशक्तीकरण योजना’ है। इस गरमी में यदि तू इस मतदान-यात्रा में शहीद हो गया तो हो सकता है तुझे इमरजेंसी में जेल गए लोगों की ‘लोकतंत्र प्रहरी-पेंशन’ और मस्जिद विध्वंस के लिए अयोध्या गए वीरों की ‘कार सेवक पेंशन’ की तरह कोई ‘मतदान शहीद पेंशन’ ही मिल जाए। हमने कहा- ये सब तो वैसे ही चंडूखाने की चर्चाएं हैं लेकिन इस बारे में एक बात बताएं- कल मतदान वाले तेरी भाभी का घर से वोट डलवाने आए थे तो हमने देखा कि मत पेटी के सील नहीं लगी थी। अगर ऊपर कोई चंडीगढ़ वाला मसीही मसीहा बैठा हुआ तो कुछ गड़बड़ भी हो सकती है।

बोला- जब चुनाव जीतने के लिए लोगों को जेल में डाला जा सकता है, गला दबाकर चन्दा लिया जा सकता है, विपक्षी पार्टी का बैंक खाता सील किया जा सकता है, जीते हुए नेता खरीदे जा सकते हैं तो हमारे एक वोट का क्या रोना। हमने कहा- और क्या? 2019 के लोकसभा चुनावों में डाले गए, निकले और गिने गए मतों की संख्याओं में लाखों का अंतर था। बोला- वह तो ठीक है मास्टर लेकिन यह भी ठीक है कि 140-150 करोड़ के देश में सरकारी योजनाओं के हिसाब-किताब में एक आदमी के पीछे एक दिन में एक रुपए की हेराफेरी भी की जाए रोज के डेढ़ सौ करोड़ बैठते हैं। हमने कहा- लेकिन फिर वही बात। यही एक देश है दुनिया में जहाँ अस्सी करोड़ लोग पाँच पाँच किलो अनाज के लिए भिखमंगों की तरह लाइन लगाते हैं और फिर भी उसे ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता है।

बोला- क्योंकि एक रामभक्त सेठ की एक दिन की कमाई ही 35 करोड़ रुपए है।

(ऊपर व्यक्त विचार लेखक का अपने अध्ययन एवं अपने विचार हैं)