क्या केरल में कमल ?

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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दक्षिण के केरल राज्य में वर्षों से राजनीति का धुर्वीकरण चला आ रहा है। एक तरफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट के नेतृत्व वाला वाम लोकतान्त्रिक मोर्चा है।  दूसरा कांग्रेस नीत संयुक्त लोकतान्त्रिक मोर्चा है। दोनों मोर्चे बारी-बारी से सत्ता में आते रहे है। हालाँकि 2021 के विधान सभा चुनावों में वाममोर्चा  यह क्रम   तोड़ने में सफल रहा और लगातार दूसरी बार सत्ता में आया। हालाँकि भारतीय जनता पार्टी यहाँ काफी समय से मैदान में है लेकिन अपन कोई बड़ा वजूद   बनाने में असफल रही। हाँ एक बार इसका एक विधायक सदन में पहुँचने में सफ़ल रहा। स्थानीय तथा पंचायतों के चुनावों में यह कुछ स्थानों पर काबिज़ होने सफल रही। इसका वोट प्रतिशत  भी 9 से बढ़ कर 14 हो गया इन सब के बावजूद इस पार्टी का कोई उम्मीदवार लोकसभा में पहुचने में कभी सफल नहीं हुआ।   

राज्य में कुल 20 सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस नीत मोर्चा 19 स्थानों पर जीतने में सफल रहा। इन चुनावों में कई स्थानों पर बीजेपी ने भी उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन कोई जीत नहीं सका हालाँकि राज्य की राजधानी थिरुवन्त्पुरम तथा त्रिचूर में पार्टी अपनी बड़ी उपस्थिति दर्जन करवाने सफल रही। राज्य के राजधानी की सीट पर इसके उम्मीदवार का मुकाबला कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर से था। यदयपि बीजेपी उम्मीदवार  अपने कांग्रेस  उम्मीदवार से काफी पीछे रहा फिर भी इसे कुल 32 प्रतिशत वोट मिले। मजे की बात यह हुई कभी यहाँ से से जीतने वाला भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का   उम्मीदवार बीजेपी से भी पीछे रहा। त्रिशूर में  बीजेपी के उम्मीदवार और फिल्म अभिनेता सुरेश गोपी जीत तो नहीं पाए लेकिन उन्हें कुल 28 प्रतिशत वोट मिले जबकि 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को 17 प्रतिशत वोट मिले। 

इस बार पार्टी  राज्य में जीत का आगाज़ करने की हरचंद कोशिश कर रही है। इस बात का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना चुनाव अभियान दक्षिण के इस राज्य से ही किया। वे अब तक यहाँ आधा दर्ज़न से भी अधिक बार यह आ चुके है। उन्होने अपनी चुनाव सभायों  में  बार-बार दोहराया कि इस बार पार्टी यहाँ कम से कम दस सीटों पर जीतेगी। पार्टी की अधिक नज़र ऐसी आधा दर्जन सीटों पर लगी हुई जहाँ पार्टी को पहले 15  प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। राजधानी में इसने अपने केंद्रीय मंत्री राजीव चन्द्रशेखर को उतारा है। वाम मोर्चे के उम्मीद्वार पंडीयन रवीन्द्रन है। यहाँ मुकाबला त्रिकोणीय है इसलिए बीजेपी इस सीट से जीतने की उम्मीद लगाये हुए है। थरूर यह से लगातार दो बार जीत चुके है। उन्हें तीसरी बार यह सीट जीतने के लिए बहुत जोर लगाना पड़ेगा। 

राज्य में आमतौर पर ईसाई समुदाय कांग्रेस के पक्ष में वोट देते आ रहा  है। मुसलमानों का एक वर्ग  भी कांग्रेस के साथ है। वहीं वाममोर्चे के वोट आमतौर से हिंदू वर्ग से आते है। हिन्दुओं नायर जाति वर्ग कुछ समय से बीजेपी के साथ जुड़ रहा है। बीजेपी काफी समय से ईसाई  मतों के अपने से जोड़ने में सफल रही  है। राज्य के चर्चों के कई बड़े धार्मिक नेता यह मानते है कि इस राज्य में ईसाई समुदाय को हिन्दू संगठनो की बजाय कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनो से अधिक खतरा है। लव जिहाद के चलते इस्लामी तत्व ईसाई समुदाय को अपना निशाना बना रहे है। ईसाई  युवतियों को प्रलोभन के जरिये इस्लाम में लाया जा रहा है। राज्य में जब हिन्दू संगठनों ने लव जिहाद के खिलाफ जब मुहीम चलाई थी तो कई ईसाई धार्मिक नेताओं ने इसमें अपने योगदान दिया था। 

लेकिन यह माना जा रहा है कि विदेशों में केन्द्रित बड़े ईसाई धार्मिक नेता स्थानीय चर्च नेताओं पर दवाब बना रहे है कि वे किसी भी हालत में बीजेपी साथ नहीं दें। इसके बावजूद बीजेपी नेताओं को विश्वास है कि इस बार ईसाई समुदाय का एक बड़ा वर्ग बीजेपी का साथ देगा। उधर पिछले कुछ समय से कांग्रेस के लोग भी  बीजेपी आ रहे है। पूर्व रक्षा मंत्री तथा कांग्रेस के बड़े नेता ए.के. अन्थोनी के बेटे अनिल अन्थोनी  बीजेपी में आ चुके है तथा इन लोकसभा चुनावों में  पार्टी के उम्मीदवार भी है। इसी प्रकार राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तथा कभी कांग्रेस के बड़े नेता रहे करुणाकरण की बेटी पद्मजा वेणुगोपाल भी बीजेपी में शामिल हो चुकी है। शायद यही कारण है कि बीजेपी इस राज्य में उत्साह में है। यह कितनी सीटें जीतती है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह लगभग निश्चित सा माना  जा रहा है कि बीजेपी को इन लोकसभा चुनावों में दक्षिण के इस राज्य में कमल खिलने की पूरी उम्मीद है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)