टी.वी. एवं मोबाइल शिक्षा के प्रति रूचि कम कर देता है : प्रो डॉ.सोहन राज तातेड़

लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 

पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान

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टी.वी. और मोबाइल संस्कृति आधुनिक सभ्यता की देन है। मनोरंजन के ये उत्तम साधन है। प्राचीनकाल में भारत में अनेक मनोरंजन के साधन थे। रामलीला मंडली, नाटक मंडली, नौटंकी, मदारियों के खेल इत्यादि अनेक मनोरंजन के साधन हुआ करते थे। ये सब साधन मानव के लिए ज्ञानवर्धन और सामाजिक संस्कृति को बढ़ावा देने वाले थे। मनुष्य एक स्थान पर उपस्थित होकर सामूहिक रूप से इन आयोजनों में भाग लेता था और अपने विचारों का आदान प्रदान भी करता था। इन सब कार्यक्रमों में भारतीय संस्कृति के अनेक विषयों पर रंगमंचन किया जाता था। इससे लोगों को अपनी सांस्कृतिक परंपरा का ज्ञान होता था। किन्तु जब से टी.वी. एवं मोबाइल का प्रचार-प्रसार बढ़ा है तब से परम्परागत नाटक मंडली, रामलीला मंडली, रास मंडली इत्यादि का ह्रास हो गया। टी.वी. एक ऐसा उपकरण है जिसके लाभ और हानि दोनों है। इस पर अनेक कार्यक्रम प्रसारित किये जाते है जो कि शिक्षाप्रद और लाभप्रद है। 

योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और विज्ञान से संबंधित विषयों पर टी.वी. चैनलों पर वार्ताये चलती रहती है। टेलीविजन विज्ञान की एक शानदार और सृजनात्मक उपलब्धि है इसमें समाचारों, रेडियो ओर सिनेमा तीनों की उपयोगिता का समाहार है। आज के युग में टेलीविजन एवं मोबाइल की उपयोगिता और प्रभावोत्पादकता सर्वविदित है। यह मनोरंजन का उत्तम साधन है। ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार में इसकी भूमिका सराहनीय है। एक और इसके माध्यम से देश-विदेश के समाचार समसामयिक क्रियाकलापों पर परिचर्चा का लाभ मिलता है, तो दूसरी और इसकी सहायता से शिक्षा जगत् का महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हो रहा है। अनेक शिल्प और प्रौद्योगिकीय विषयों के प्रशिक्षण में भी इसका योगदान कम नहीं है। टेलीविजन एवं मोबाइल दर्शकों के ज्ञान क्षितिज को व्यापक करके उन्हें अधिकाधिक प्रबुद्ध बनाने का सराहनीय कार्य कर रहा है। विज्ञान की एक अनूठी देन दूरस्थ, दूर्गम स्थानों के और समाज की मुख्य धारा से पृथक पड़े लोगों के प्रबोधन एवं उन्नयन का शक्तिशाली साधन है। 

टेलीविजन एवं मोबाइल विज्ञापन का सबसे सशक्त साधन है। वाणिज्यिक एवं व्यावसायिक उपयोगिता इसकी सिद्ध हो चुकी है। टेलीविजन एवं मोबाइल से प्रसारित मनोरंजक विज्ञापन दर्शकों को अपनी और आकर्षित कर लेते है। विज्ञान के इस आविष्कार ने संसार को हमारे निकट ला दिया है। टेलीविजन एवं मोबाइल ने संसार को एकता के सूत्र में बांधने का भूतपूर्व कार्य किया है। एक और जहां टेलीविजन एवं मोबाइल की सर्वक्षेत्रीय उपयोगिता के बारे में दो राय नहीं हो सकती, वहीं दूसरी और हमारे बच्चों, किशोरों और नवयुवकों पर पड़ रहे इसके दुष्परिणामों के बारे में भी आम सहमति है। टेलीविजन एवं मोबाइल ने हमारे घरों में प्रवेश करके नयी पीढ़ी को अपने मोह जाल में फंसा लिया है। नवयुवकों के मन पर इसकी पकड़ मजबूत होती जा रही है। इसके प्रभाव से बच्चों में एक नई संस्कृति विकसित हो रही है जो अनेक दृष्टियों से भारतीय परिवेश के साथ मेल नहीं खाती। बच्चों में टेलीविजन एवं मोबाइल चलाकर इसको देखने की लत पैदा हो गई है। उनकी इन्द्रियां अवसादपूर्ण रहती है। घर के बड़े-बुजुर्ग यदि उन्हें रोकते है तो वे उन्हें सबसे बड़ा शत्रु मानते है। 

टेलीविजन एवं मोबाइल पर्दे से चिपके रहने से उन्हें भूख-प्यास भी नहीं सताती। इससे उन्हें कोई मतलब नहीं कि पर्दे पर आ रहा कार्यक्रम उनकी समझ में आ रहा है या नहीं, उन्हें बस देखते रहने से मतलब है। किन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि इससे उन्हें कोई हानि नहीं होती। केवल उनका बहुमुल्य समय बर्बाद होता है। बच्चे टेलीविजन एवं मोबाइल पर जो कुछ भी देखते है उसका प्रभाव अच्छा या बुरा अवश्य पड़ता है। बच्चों में इतना विवेक नहीं होता कि वे अच्छे या बुरे का भेद कर सके। उनमें इतना संयम भी नहीं होता कि वे मात्र अच्छे को अपनाये और बुरे को त्याग दे। इन माध्यमो पर जो कुछ भी आता रहता है वह अपनी छाप सकारात्मक और नकारात्मक डालता रहता है। इस छाप की बच्चों के चरित्र निर्माण में बड़ी नाजुक भूमिका और दूरगामी परिणाम होते है। अधिक समय तक टेलीविजन एवं मोबाइल चलाने वाले बच्चों में घोर भौतिकवादी दृष्टिकोण पैदा हो जाता है इससे बच्चों का चरित्र एकांगी हो जाता है। 

टेलीविजन एवं मोबाइल एक प्रकार का व्यसन है जो बच्चों में शिक्षा के प्रति रूचि कम कर देता है। जो बच्चे अधिक  समय तक टेलीविजन एवं मोबाइल चलाने में व्यस्त रहते है वह बच्चे अन्तर्मुखी हो जाते है। अतः बच्चों को टेलीविजन एवं मोबाइल चलाने से रोका जाना चाहिए। बच्चों को नयी खोजों, नये प्रयोगों और आधुनिकतम उपलब्धियों से संबंधित कार्यक्रम अवश्य दिखलाये जाने चाहिए। आजकल टेलीविजन चैनलों पर कृषिदर्शन कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है इससे कृषि की गुणवत्ता, नये-नये बीजों और फसलों को कैसे और कब बोया जाये इस पर चर्चाएं प्रसारित की जाती है और वैज्ञानिकों के द्वारा अनेक नयी-नयी बाते बताई जाती है जिनकों सुनकर और देखकर हम लाभान्वित हो सकते है। इसी प्रकार स्वास्थ्य के बारे में भी इन चैनलों पर समय-समय पर प्रसारण होता रहता है। समसामयिक बीमारियों के रोकथाम के विषय में और टीकाकरण के विषय में अनेक जानकारियां चैनलो पर प्रसारित होती रहती है। अतः टेलीविजन एवं मोबाइल संस्कृति से लाभ और हानि दोनों है जिसका जैसा दृष्टिकोण रहता है वह वैसा ही ग्रहण करता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)