विश्व कविता दिवस और एंटायर महाकाव्य : रमेश जोशी
लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com

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आज तोताराम ने बाहर से ही बहुत जोर से आवाज लगाई-  महाकवि, प्रणाम । बधाई हो । 

जैसे कर्नाटक के 2023 के विधान सभा के चुनावों में   ‘जय  बजरंग बली’  का नारा गूँजा था वैसी ठसक तोताराम की आवाज में थी । कर्नाटक का नारा भी अद्भुत रहा । जहां गूँजा वहाँ तो कुछ नहीं हुआ लेकिन छह महीने बाद हमारा बरामदा अर्थात राजस्थान में कांग्रेस की सरकार गिर गई ।वैसे ही हम भी चारपाई से गिरते गिरते बचे । पता नहीं आवाज की तरंगें थीं या प्रशंसा का नशा । सच है,  निंदा तो आदमी एक बार फिर भी मन मसोसकर झेल जाता है लेकिन प्रशंसा उसे हिलाकर गिरा ही देती है ।  

हमने बैठे बैठे ही कहा- यहाँ कोई महाकवि नहीं रहता । 

बोला- मजाक मत कर। मैं तुझे ही कह रहा हूँ। मुंह मीठा करवा या नहीं लेकिन दरवाजा तो खोल। 

हमने कहा- हमें तुम्हारी यह प्रशंसा  मजाक लगती है। यह प्रशंसा वैसी ही है जैसे वरुण गांधी और मेनका गांधी को प्रियंका या राहुल के खिलाफ भाजपा का टिकट दे दिया जाए। हाँ और ना दोनों में फंसे। अरे, जब मोदी जी ने बीसियों लड़के लड़कियों को इसी महीने में क्रियेटर्स अवॉर्ड दिए तब भी हमें याद नहीं किया। और कुछ नहीं तो तुझे 60 साल से चाय पिलाने के लिए  ‘भोजन श्रेणी’ में ही नामांकित कर देते। 

बोला- लेकिन हम लोगों को तो स्वयं को पुरस्कारों से उसी तरह दूर कर लेना चाहिए जैसे लता मंगेशकर ने खुद को फिल्मफेयर पुरस्कारों से दूर कर लिया था  या जैसे आडवाणी जी ने उम्र को देखते हुए सक्रिय राजनीति से सन्यास लेकर बरामदे में बैठना स्वीकार कर लिया है। 

हमने कहा- लेकिन आडवाणी जी को जबरदस्ती बैठाया गया है।  उन्होंने भारतरत्न लेने से मना कर दिया क्या?

बोला- भारतरत्न है ही ऐसी चीज।  

हमने कहा- इस सम्मान की औकात तो तीन से बढ़ाकर पाँच करने पर ही पता चल गई थी। हो सकता है अगर लोकसभा चुनाव को देखते हुए जरूरत पड़ी तो और दस बीस लोगों को दिया जा सकता है। राष्ट्रीय लोक दल को पटाने के लिए चरणसिंह को भारतरत्न दिया जबकि चरणसिंह भाजपा की पूर्ववर्ती जनसंघ को पसंद नहीं करते थे। लेकिन छोड़, यह बता, हमें किस बात की बधाई दे रहा है? 

बोला- आज ‘विश्व कविता दिवस’ है ना, महाकवि। 

हमने कहा- हमने कौनसा महाकाव्य लिख दिया जो महाकवि संबोधित कर रहा है। हमने तो पिछले तीस बरसों में नरसिंहा राव, मनमोहन सिंह, अटल जी और मोदी जी पर कुछ फब्तियाँ कसने के अलावा और लिखा ही क्या है? जैसे वाल्मीकि और तुलसी राम के कारण हैं वैसे ही अन्य व्यंग्यकारों की तरह हम भी इन्हीं महापुरुषों के कारण हैं। हमारा क्या है? 

मोदीमय तिहुं लोक बखाना 

हम सब केवल भक्त समाना 

बोला- सही पकड़े हैं। न लिखा हो महाकाव्य लेकिन यह जन भावना है जैसे राम-कृष्ण सभी केवल नायक है लेकिन अमिताभ बच्चन महानायक है। बहुत से प्रधानमंत्री हुए लेकिन राम मंदिर के रुपए-पैसे संभालने वाले चंपत राय के अनुसार विष्णु के अवतार केवल मोदी जी ही हैं। 

ऐसे में अगर मैं तुझे महाकवि मानता हूँ तो किसी को क्या ऐतराज है। 

हमने कहा- तोताराम, अपने इलाके के एक कवि हुए हैं परमेश्वर द्विरेफ। वे तुलसीदास को भी महाकवि नहीं मानते थे क्योंकि उनके रामचरितमानस में केवल सात सर्ग हैं जबकि परिभाषा के अनुसार महाकाव्य में कम से कम आठ सर्ग होने चाहियें। 

बोला- इस हिसाब से तो पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द जी को सबसे बड़ा महाकवि माना जाना चाहिए। तुलसीदास उन्हें कवियों की श्रेणी में मानते हैं- 

जम कुबेर दिक्पाल जहाँ ते 

कवि कोविद कहि सके कहाँ ते 

और फिर उन्होंने तो ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ की महिमा पर मात्र 191 दिनों में साढ़े अठारह पेज का एक महाकाव्य लिख मारा है - वन नेशन वन इलेक्शन । दुनिया के सबसे बड़े महाकाव्य ‘महाभारत’ से भी बड़ा। 

हमने कहा-  'एक देश, एक चुनाव' पर कमेटी ने 62 पार्टियों से संपर्क साधा था। इनमें से 47 ने जवाब दिया। 32 पार्टियो ने एकसाथ चुनाव कराने का समर्थन किया, 15 पार्टियों ने इसका विरोध किया और 15 पार्टियों ने इसका जवाब नहीं दिया। 

वह तो एक रिपोर्ट है और वह भी गद्य में है। 

बोला- ‘गद्य काव्य’ क्या काव्य नहीं होता? और फिर इसकी आत्मा तो देख । बीज वाक्य ‘वन नेशन :वन इलेक्शन’ ही जब काव्यात्मक है तो यह एक काव्य ही है। एक वाक्य का भी महाकाव्य हो सकता है। 

मुझे तो मोदी जी का साढ़े चार शब्दों का एक छंद ही इस देश का, इसकी आत्मा का, इसके लोकतंत्र का ‘एन्टायर पॉलिटिकल साइंस’ की तरह एक ‘एन्टायर महाकाव्य’ लगता है- ‘अबकी बार : चार सौ पार’। 

हमने कहा- ठीक है। 

बोला- ठीक है तो एक चाय और मँगवा। इसी ‘एन्टायर महाकाव्य’ पर चर्चा करते हैं। 

हमने कहा- चर्चा में क्या रखा है? काम से काम चलेगा। चर्चा तो ठलुओं का काम है। 

बोला- मुझे भी पता है। जिन्हें कुछ नहीं  करना होता वे ‘बनाने’ के लिए चर्चा ही करते हैं। 

हमने पूछा- क्या बनाने के लिए?

बोला- वही जो बाबाजी ने एक बार पत्रकार को कहा था। 

हमने कहा- वह तो एक गाली था। 

बोला- गाली नहीं, हमारी उत्तर भारत की हिन्दी पट्टी का एक शृंगारिक और निकट सामाजिक रिश्ता स्थापित करने वाला  विशेषण है। 

(लेखक का अपना अध्ययन, एवं अपने व्यग्यात्मक विचार है)